अल-मआरिज
يُبَصَّرُونَهُمْ ۚ يَوَدُّ الْمُجْرِمُ لَوْ يَفْتَدِي مِنْ عَذَابِ يَوْمِئِذٍ بِبَنِيهِ11
हालाँकि वे एक-दूसरे को दिखाए जाएँगे। अपराधी चाहेगा कि किसी प्रकार वह उस दिन की यातना से छूटने के लिए अपने बेटों,
وَصَاحِبَتِهِ وَأَخِيهِ12
अपनी पत्नी , अपने भाई
وَفَصِيلَتِهِ الَّتِي تُؤْوِيهِ13
और अपने उस परिवार को जो उसको आश्रय देता है,
وَمَنْ فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ثُمَّ يُنْجِيهِ14
और उन सभी लोगों को जो धरती में रहते है, फ़िदया (मुक्ति-प्रतिदान) के रूप में दे डाले फिर वह उसको छुटकारा दिला दे
كَلَّا ۖ إِنَّهَا لَظَىٰ15
कदापि नहीं! वह लपट मारती हुई आग है,
نَزَّاعَةً لِلشَّوَىٰ16
जो मांस और त्वचा को चाट जाएगी,
تَدْعُو مَنْ أَدْبَرَ وَتَوَلَّىٰ17
उस व्यक्ति को बुलाती है जिसने पीठ फेरी और मुँह मोड़ा,
وَجَمَعَ فَأَوْعَىٰ18
और (धन) एकत्र किया और सैंत कर रखा
إِنَّ الْإِنْسَانَ خُلِقَ هَلُوعًا19
निस्संदेह मनुष्य अधीर पैदा हुआ है
إِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ جَزُوعًا20
जि उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो घबरा उठता है,
وَإِذَا مَسَّهُ الْخَيْرُ مَنُوعًا21
किन्तु जब उसे सम्पन्नता प्राप्त होती ही तो वह कृपणता दिखाता है
إِلَّا الْمُصَلِّينَ22
किन्तु नमाज़ अदा करनेवालों की बात और है,
الَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَاتِهِمْ دَائِمُونَ23
जो अपनी नमाज़ पर सदैव जमें रहते है,
وَالَّذِينَ فِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ مَعْلُومٌ24
और जिनके मालों में
لِلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ25
माँगनेवालों और वंचित का एक ज्ञात और निश्चित हक़ होता है,
وَالَّذِينَ يُصَدِّقُونَ بِيَوْمِ الدِّينِ26
जो बदले के दिन को सत्य मानते है,
وَالَّذِينَ هُمْ مِنْ عَذَابِ رَبِّهِمْ مُشْفِقُونَ27
जो अपने रब की यातना से डरते है -
إِنَّ عَذَابَ رَبِّهِمْ غَيْرُ مَأْمُونٍ28
उनके रब की यातना है ही ऐसी जिससे निश्चिन्त न रहा जाए -
وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ29
जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है।
إِلَّا عَلَىٰ أَزْوَاجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ30
अपनी पत्नि यों या जो उनकी मिल्क में हो उनके अतिरिक्त दूसरों से तो इस बात पर उनकी कोई भर्त्सना नही। -
فَمَنِ ابْتَغَىٰ وَرَاءَ ذَٰلِكَ فَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْعَادُونَ31
किन्तु जिस किसी ने इसके अतिरिक्त कुछ और चाहा तो ऐसे ही लोग सीमा का उल्लंघन करनेवाले है।-
وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ32
जो अपने पास रखी गई अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करते है,
وَالَّذِينَ هُمْ بِشَهَادَاتِهِمْ قَائِمُونَ33
जो अपनी गवाहियों पर क़़ायम रहते है,
وَالَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ34
और जो अपनी नमाज़ की रक्षा करते है
أُولَـٰئِكَ فِي جَنَّاتٍ مُكْرَمُونَ35
वही लोग जन्नतों में सम्मानपूर्वक रहेंगे
فَمَالِ الَّذِينَ كَفَرُوا قِبَلَكَ مُهْطِعِينَ36
फिर उन इनकार करनेवालो को क्या हुआ है कि वे तुम्हारी ओर दौड़े चले आ रहे है?
عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ عِزِينَ37
दाएँ और बाएँ से गिरोह के गिरोह
أَيَطْمَعُ كُلُّ امْرِئٍ مِنْهُمْ أَنْ يُدْخَلَ جَنَّةَ نَعِيمٍ38
क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति इसकी लालसा रखता है कि वह अनुकम्पा से परिपूर्ण जन्नत में प्रविष्ट हो?
كَلَّا ۖ إِنَّا خَلَقْنَاهُمْ مِمَّا يَعْلَمُونَ39
कदापि नहीं, हमने उन्हें उस चीज़ से पैदा किया है, जिसे वे भली-भाँति जानते है