अल-अनफाल
وَاذْكُرُوا إِذْ أَنْتُمْ قَلِيلٌ مُسْتَضْعَفُونَ فِي الْأَرْضِ تَخَافُونَ أَنْ يَتَخَطَّفَكُمُ النَّاسُ فَآوَاكُمْ وَأَيَّدَكُمْ بِنَصْرِهِ وَرَزَقَكُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ26
और याद करो जब तुम थोड़े थे, धरती में निर्बल थे, डरे-सहमे रहते कि लोग कहीं तु्म्हें उचक न ले जाएँ, फिर उसने तुम्हें ठिकाना दिया और अपनी सहायता से तुम्हें शक्ति प्रदान की और अच्छी-स्वच्छ चीज़ों की तुम्हें रोजी दी, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَخُونُوا اللَّهَ وَالرَّسُولَ وَتَخُونُوا أَمَانَاتِكُمْ وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ27
ऐ ईमान लानेवालो! जानते-बुझते तुम अल्लाह और उसके रसूल के साथ विश्वासघात न करना और न अपनी अमानतों में ख़ियानत करना
وَاعْلَمُوا أَنَّمَا أَمْوَالُكُمْ وَأَوْلَادُكُمْ فِتْنَةٌ وَأَنَّ اللَّهَ عِنْدَهُ أَجْرٌ عَظِيمٌ28
और जान रखो कि तुम्हारे माल और तुम्हारी संतान परीक्षा-सामग्री हैं और यह कि अल्लाह के पास बड़ा प्रतिदान है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنْ تَتَّقُوا اللَّهَ يَجْعَلْ لَكُمْ فُرْقَانًا وَيُكَفِّرْ عَنْكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۗ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ29
ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुम अल्लाह का डर रखोगे तो वह तुम्हें एक विशिष्टता प्रदान करेगा और तुमसे तुम्हारी बुराइयाँ दूर करेगा और तुम्हे क्षमा करेगा। अल्लाह बड़ा अनुग्राहक है
وَإِذْ يَمْكُرُ بِكَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِيُثْبِتُوكَ أَوْ يَقْتُلُوكَ أَوْ يُخْرِجُوكَ ۚ وَيَمْكُرُونَ وَيَمْكُرُ اللَّهُ ۖ وَاللَّهُ خَيْرُ الْمَاكِرِينَ30
और याद करो जब इनकार करनेवाले तुम्हारे साथ चालें चल रहे थे कि तम्हें क़ैद रखें या तुम्हे क़त्ल कर दें या तुम्हे निकाल बाहर करे। वे अपनी चालें चल रहे थे और अल्लाह भी अपनी चाल चल रहा था। अल्लाह सबसे अच्छी चाल चलता है
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا قَالُوا قَدْ سَمِعْنَا لَوْ نَشَاءُ لَقُلْنَا مِثْلَ هَـٰذَا ۙ إِنْ هَـٰذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ31
जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती है, तो वे कहते है, "हम सुन चुके। यदि हम चाहें तो ऐसी बातें हम भी बना लें; ये तो बस पहले के लोगों की कहानियाँ हैं।"
وَإِذْ قَالُوا اللَّهُمَّ إِنْ كَانَ هَـٰذَا هُوَ الْحَقَّ مِنْ عِنْدِكَ فَأَمْطِرْ عَلَيْنَا حِجَارَةً مِنَ السَّمَاءِ أَوِ ائْتِنَا بِعَذَابٍ أَلِيمٍ32
और याद करो जब उन्होंने कहा, "ऐ अल्लाह! यदि यही तेरे यहाँ से सत्य हो तो हमपर आकाश से पत्थर बरसा दे, या हम पर कोई दुखद यातना ही ले आ
وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُعَذِّبَهُمْ وَأَنْتَ فِيهِمْ ۚ وَمَا كَانَ اللَّهُ مُعَذِّبَهُمْ وَهُمْ يَسْتَغْفِرُونَ33
और अल्लाह ऐसा नहीं कि तुम उनके बीच उपस्थित हो और वह उन्हें यातना देने लग जाए, और न अल्लाह ऐसा है कि वे क्षमा-याचना कर रहे हो और वह उन्हें यातना से ग्रस्त कर दे