अर-रअद
مَثَلُ الْجَنَّةِ الَّتِي وُعِدَ الْمُتَّقُونَ ۖ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ أُكُلُهَا دَائِمٌ وَظِلُّهَا ۚ تِلْكَ عُقْبَى الَّذِينَ اتَّقَوْا ۖ وَعُقْبَى الْكَافِرِينَ النَّارُ35
डर रखनेवालों के लिए जिस जन्नत का वादा है उसकी शान यह है कि उसके नीचे नहरें बह रही है, उसके फल शाश्वत है और इसी प्रकार उसकी छाया भी। यह परिणाम है उनका जो डर रखते है, जबकि इनकार करनेवालों का परिणाम आग है
وَالَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَفْرَحُونَ بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْكَ ۖ وَمِنَ الْأَحْزَابِ مَنْ يُنْكِرُ بَعْضَهُ ۚ قُلْ إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللَّهَ وَلَا أُشْرِكَ بِهِ ۚ إِلَيْهِ أَدْعُو وَإِلَيْهِ مَآبِ36
जिन लोगों को हमने किताब प्रदान की है वे उससे, जो तुम्हारी ओर उतारा है, हर्षित होते है और विभिन्न गिरोहों के कुछ लोग ऐसे भी है जो उसकी कुछ बातों का इनकार करते है। कह दो, "मुझे पर बस यह आदेश हुआ है कि मैं अल्लाह की बन्दगी करूँ और उसका सहभागी न ठहराऊँ। मैं उसी की ओर बुलाता हूँ और उसी की ओर मुझे लौटकर जाना है।"
وَكَذَٰلِكَ أَنْزَلْنَاهُ حُكْمًا عَرَبِيًّا ۚ وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءَهُمْ بَعْدَ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ مَا لَكَ مِنَ اللَّهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا وَاقٍ37
और इसी प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को एक अरबी फ़रमान के रूप में उतारा है। अब यदि तुम उस ज्ञान के पश्चात भी, जो तुम्हारे पास आ चुका है, उनकी इच्छाओं के पीछे चले तो अल्लाह के मुक़ाबले में न तो तुम्हारा कोई सहायक मित्र होगा और न कोई बचानेवाला
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلًا مِنْ قَبْلِكَ وَجَعَلْنَا لَهُمْ أَزْوَاجًا وَذُرِّيَّةً ۚ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَنْ يَأْتِيَ بِآيَةٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ۗ لِكُلِّ أَجَلٍ كِتَابٌ38
तुमसे पहले भी हम, कितने ही रसूल भेज चुके है और हमने उन्हें पत्नियों और बच्चे भी दिए थे, और किसी रसूल को यह अधिकार नहीं था कि वह अल्लाह की अनुमति के बिना कोई निशानी स्वयं ला लेता। हर चीज़ के एक समय जो अटल लिखित है
يَمْحُو اللَّهُ مَا يَشَاءُ وَيُثْبِتُ ۖ وَعِنْدَهُ أُمُّ الْكِتَابِ39
अल्लाह जो कुछ चाहता है मिटा देता है। इसी तरह वह क़ायम भी रखता है। मूल किताब तो स्वयं उसी के पास है
وَإِنْ مَا نُرِيَنَّكَ بَعْضَ الَّذِي نَعِدُهُمْ أَوْ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِنَّمَا عَلَيْكَ الْبَلَاغُ وَعَلَيْنَا الْحِسَابُ40
हम जो वादा उनसे कर रहे है चाहे उसमें से कुछ हम तुम्हें दिखा दें, या तुम्हें उठा लें। तुम्हारा दायित्व तो बस सन्देश का पहुँचा देना ही है, हिसाब लेना तो हमारे ज़िम्मे है
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا نَأْتِي الْأَرْضَ نَنْقُصُهَا مِنْ أَطْرَافِهَا ۚ وَاللَّهُ يَحْكُمُ لَا مُعَقِّبَ لِحُكْمِهِ ۚ وَهُوَ سَرِيعُ الْحِسَابِ41
क्या उन्होंने देखा नहीं कि हम धरती पर चले आ रहे है, उसे उसके किनारों से घटाते हुए? अल्लाह ही फ़ैसला करता है। कोई नहीं जो उसके फ़ैसले को पीछे डाल सके। वह हिसाब भी जल्द लेता है
وَقَدْ مَكَرَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَلِلَّهِ الْمَكْرُ جَمِيعًا ۖ يَعْلَمُ مَا تَكْسِبُ كُلُّ نَفْسٍ ۗ وَسَيَعْلَمُ الْكُفَّارُ لِمَنْ عُقْبَى الدَّارِ42
उनसे पहले जो लोग गुज़रे है, वे भी चालें चल चुके है, किन्तु वास्तविक चाल तो पूरी की पूरी अल्लाह ही के हाथ में है। प्रत्येक व्यक्ति जो कमाई कर रहा है उसे वह जानता है। इनकार करनेवालों को शीघ्र ही ज्ञात हो जाएगा कि परलोक-गृह के शुभ परिणाम के अधिकारी कौन है