अल-अनाम
وَهُوَ الَّذِي يَتَوَفَّاكُمْ بِاللَّيْلِ وَيَعْلَمُ مَا جَرَحْتُمْ بِالنَّهَارِ ثُمَّ يَبْعَثُكُمْ فِيهِ لِيُقْضَىٰ أَجَلٌ مُسَمًّى ۖ ثُمَّ إِلَيْهِ مَرْجِعُكُمْ ثُمَّ يُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ60
और वही है जो रात को तुम्हें मौत देता है और दिन में जो कुछ तुमने किया उसे जानता है। फिर वह इसलिए तुम्हें उठाता है, ताकि निश्चित अवधि पूरा हो जाए; फिर उसी की ओर तुम्हें लौटना है, फिर वह तुम्हें बता देगा जो कुछ तुम करते रहे हो
وَهُوَ الْقَاهِرُ فَوْقَ عِبَادِهِ ۖ وَيُرْسِلُ عَلَيْكُمْ حَفَظَةً حَتَّىٰ إِذَا جَاءَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ تَوَفَّتْهُ رُسُلُنَا وَهُمْ لَا يُفَرِّطُونَ61
और वही अपने बन्दों पर पूरा-पूरा क़ाबू रखनेवाला है और वह तुमपर निगरानी करनेवाले को नियुक्त करके भेजता है, यहाँ तक कि जब तुममें से किसी की मृत्यु आ जाती है, जो हमारे भेजे हुए कार्यकर्त्ता उसे अपने क़ब्ज़े में कर लेते है और वे कोई कोताही नहीं करते
ثُمَّ رُدُّوا إِلَى اللَّهِ مَوْلَاهُمُ الْحَقِّ ۚ أَلَا لَهُ الْحُكْمُ وَهُوَ أَسْرَعُ الْحَاسِبِينَ62
फिर सब अल्लाह की ओर, जो उसका वास्तविक स्वामी है, लौट जाएँगे। जान लो, निर्णय का अधिकार उसी को है और वह बहुत जल्द हिसाब लेनेवाला है
قُلْ مَنْ يُنَجِّيكُمْ مِنْ ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ تَدْعُونَهُ تَضَرُّعًا وَخُفْيَةً لَئِنْ أَنْجَانَا مِنْ هَـٰذِهِ لَنَكُونَنَّ مِنَ الشَّاكِرِينَ63
कहो, "कौन है जो थल और जल के अँधेरो से तुम्हे छुटकारा देता है, जिसे तुम गिड़गिड़ाते हुए और चुपके-चुपके पुकारने लगते हो कि यदि हमें इससे बचा लिया तो हम अवश्य की कृतज्ञ हो जाएँगे?"
قُلِ اللَّهُ يُنَجِّيكُمْ مِنْهَا وَمِنْ كُلِّ كَرْبٍ ثُمَّ أَنْتُمْ تُشْرِكُونَ64
कहो, "अल्लाह तुम्हें इनसे और हरके बेचैनी और पीड़ा से छुटकारा देता है, लेकिन फिर तुम उसका साझीदार ठहराने लगते हो।"
قُلْ هُوَ الْقَادِرُ عَلَىٰ أَنْ يَبْعَثَ عَلَيْكُمْ عَذَابًا مِنْ فَوْقِكُمْ أَوْ مِنْ تَحْتِ أَرْجُلِكُمْ أَوْ يَلْبِسَكُمْ شِيَعًا وَيُذِيقَ بَعْضَكُمْ بَأْسَ بَعْضٍ ۗ انْظُرْ كَيْفَ نُصَرِّفُ الْآيَاتِ لَعَلَّهُمْ يَفْقَهُونَ65
कहो, "वह इसकी सामर्थ्य रखता है कि तुमपर तुम्हारे ऊपर से या तुम्हारे पैरों के नीचे से कोई यातना भेज दे या तुम्हें टोलियों में बाँटकर परस्पर भिड़ा दे और एक को दूसरे की लड़ाई का मज़ा चखाए।" देखो, हम आयतों को कैसे, तरह-तरह से, बयान करते है, ताकि वे समझे
وَكَذَّبَ بِهِ قَوْمُكَ وَهُوَ الْحَقُّ ۚ قُلْ لَسْتُ عَلَيْكُمْ بِوَكِيلٍ66
तुम्हारी क़ौम ने तो उसे झुठला दिया, हालाँकि वह सत्य है। कह दो, मैं "तुमपर कोई संरक्षक नियुक्त नहीं हूँ
لِكُلِّ نَبَإٍ مُسْتَقَرٌّ ۚ وَسَوْفَ تَعْلَمُونَ67
"हर ख़बर का एक निश्चित समय है और शीघ्र ही तुम्हें ज्ञात हो जाएगा।"
وَإِذَا رَأَيْتَ الَّذِينَ يَخُوضُونَ فِي آيَاتِنَا فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ حَتَّىٰ يَخُوضُوا فِي حَدِيثٍ غَيْرِهِ ۚ وَإِمَّا يُنْسِيَنَّكَ الشَّيْطَانُ فَلَا تَقْعُدْ بَعْدَ الذِّكْرَىٰ مَعَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ68
और जब तुम उन लोगों को देखो, जो हमारी आयतों पर नुक्ताचीनी करने में लगे हुए है, तो उनसे मुँह फेर लो, ताकि वे किसी दूसरी बात में लग जाएँ। और यदि कभी शैतान तुम्हें भुलावे में डाल दे, तो याद आ जाने के बाद उन अत्याचारियों के पास न बैठो