अल-इंसान
وَمِنَ اللَّيْلِ فَاسْجُدْ لَهُ وَسَبِّحْهُ لَيْلًا طَوِيلًا26
और रात के कुछ हिस्से में भी उसे सजदा करो, लम्बी-लम्बी रात तक उसकी तसबीह करते रहो
إِنَّ هَـٰؤُلَاءِ يُحِبُّونَ الْعَاجِلَةَ وَيَذَرُونَ وَرَاءَهُمْ يَوْمًا ثَقِيلًا27
निस्संदेह ये लोग शीघ्र प्राप्त होनेवाली चीज़ (संसार) से प्रेम रखते है और एक भारी दिन को अपने परे छोड़ रह है
نَحْنُ خَلَقْنَاهُمْ وَشَدَدْنَا أَسْرَهُمْ ۖ وَإِذَا شِئْنَا بَدَّلْنَا أَمْثَالَهُمْ تَبْدِيلًا28
हमने उन्हें पैदा किया और उनके जोड़-बन्द मज़बूत किेए और हम जब चाहे उन जैसों को पूर्णतः बदल दें
إِنَّ هَـٰذِهِ تَذْكِرَةٌ ۖ فَمَنْ شَاءَ اتَّخَذَ إِلَىٰ رَبِّهِ سَبِيلًا29
निश्चय ही यह एक अनुस्मृति है, अब जो चाहे अपने रब की ओर मार्ग ग्रहण कर ले
وَمَا تَشَاءُونَ إِلَّا أَنْ يَشَاءَ اللَّهُ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا30
और तुम नहीं चाह सकते सिवाय इसके कि अल्लाह चाहे। निस्संदेह अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है
يُدْخِلُ مَنْ يَشَاءُ فِي رَحْمَتِهِ ۚ وَالظَّالِمِينَ أَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا31
वह जिसे चाहता है अपनी दयालुता में दाख़िल करता है। रहे ज़ालिम, तो उनके लिए उसने दुखद यातना तैयार कर रखी है
अल-मुरसालात
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالْمُرْسَلَاتِ عُرْفًا1
साक्षी है वे (हवाएँ) जिनकी चोटी छोड़ दी जाती है
فَالْعَاصِفَاتِ عَصْفًا2
फिर ख़ूब तेज़ हो जाती है,
وَالنَّاشِرَاتِ نَشْرًا3
और (बादलों को) उठाकर फैलाती है,
فَالْفَارِقَاتِ فَرْقًا4
फिर मामला करती है अलग-अलग,
فَالْمُلْقِيَاتِ ذِكْرًا5
फिर पेश करती है याददिहानी
عُذْرًا أَوْ نُذْرًا6
इल्ज़ाम उतारने या चेतावनी देने के लिए,
إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَوَاقِعٌ7
निस्संदेह जिसका वादा तुमसे किया जा रहा है वह निश्चित ही घटित होकर रहेगा
فَإِذَا النُّجُومُ طُمِسَتْ8
अतः जब तारे विलुप्त (प्रकाशहीन) हो जाएँगे,
وَإِذَا السَّمَاءُ فُرِجَتْ9
और जब आकाश फट जाएगा
وَإِذَا الْجِبَالُ نُسِفَتْ10
और पहाड़ चूर्ण-विचूर्ण होकर बिखर जाएँगे;
وَإِذَا الرُّسُلُ أُقِّتَتْ11
और जब रसूलों का हाल यह होगा कि उन का समय नियत कर दिया गया होगा -
لِأَيِّ يَوْمٍ أُجِّلَتْ12
किस दिन के लिए वे टाले गए है?
لِيَوْمِ الْفَصْلِ13
फ़ैसले के दिन के लिए
وَمَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الْفَصْلِ14
और तुम्हें क्या मालूम कि वह फ़ैसले का दिन क्या है? -
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ15
तबाही है उस दिन झूठलाने-वालों की!
أَلَمْ نُهْلِكِ الْأَوَّلِينَ16
क्या ऐसा नहीं हुआ कि हमने पहलों को विनष्ट किया?
ثُمَّ نُتْبِعُهُمُ الْآخِرِينَ17
फिर उन्हीं के पीछे बादवालों को भी लगाते रहे?
كَذَٰلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ18
अपराधियों के साथ हम ऐसा ही करते है
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ19
तबाही है उस दिन झुठलानेवालो की!