अल-अंबिया
وَكَمْ قَصَمْنَا مِنْ قَرْيَةٍ كَانَتْ ظَالِمَةً وَأَنْشَأْنَا بَعْدَهَا قَوْمًا آخَرِينَ11
कितनी ही बस्तियों को, जो ज़ालिम थीं, हमने तोड़कर रख दिया और उनके बाद हमने दूसरे लोगों को उठाया
فَلَمَّا أَحَسُّوا بَأْسَنَا إِذَا هُمْ مِنْهَا يَرْكُضُونَ12
फिर जब उन्हें हमारी यातना का आभास हुआ तो लगे वहाँ से भागने
لَا تَرْكُضُوا وَارْجِعُوا إِلَىٰ مَا أُتْرِفْتُمْ فِيهِ وَمَسَاكِنِكُمْ لَعَلَّكُمْ تُسْأَلُونَ13
कहा गया, "भागो नहीं! लौट चलो, उसी भोग-विलास की ओर जो तुम्हें प्राप्त था और अपने घरों की ओर ताकि तुमसे पूछा जाए।"
قَالُوا يَا وَيْلَنَا إِنَّا كُنَّا ظَالِمِينَ14
कहने लगे, "हाय हमारा दुर्भाग्य! निस्संदेह हम ज़ालिम थे।"
فَمَا زَالَتْ تِلْكَ دَعْوَاهُمْ حَتَّىٰ جَعَلْنَاهُمْ حَصِيدًا خَامِدِينَ15
फिर उनकी निरन्तर यही पुकार रही, यहाँ तक कि हमने उन्हें ऐसा कर दिया जैसे कटी हुई खेती, बुझी हुई आग हो
وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاءَ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لَاعِبِينَ16
और हमने आकाश और धरती को और जो कुछ उसके मध्य में है कुछ इस प्रकार नहीं बनाया कि हम कोई खेल करने वाले हो
لَوْ أَرَدْنَا أَنْ نَتَّخِذَ لَهْوًا لَاتَّخَذْنَاهُ مِنْ لَدُنَّا إِنْ كُنَّا فَاعِلِينَ17
यदि हम कोई खेल-तमाशा करना चाहते हो अपने ही पास से कर लेते, यदि हम ऐसा करने ही वाले होते
بَلْ نَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَى الْبَاطِلِ فَيَدْمَغُهُ فَإِذَا هُوَ زَاهِقٌ ۚ وَلَكُمُ الْوَيْلُ مِمَّا تَصِفُونَ18
नहीं, बल्कि हम तो असत्य पर सत्य की चोट लगाते है, तो वह उसका सिर तोड़ देता है। फिर क्या देखते है कि वह मिटकर रह जाता है और तुम्हारे लिए तबाही है उन बातों के कारण जो तुम बनाते हो!
وَلَهُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَمَنْ عِنْدَهُ لَا يَسْتَكْبِرُونَ عَنْ عِبَادَتِهِ وَلَا يَسْتَحْسِرُونَ19
और आकाशों और धरती में जो कोई है उसी का है। और जो (फ़रिश्ते) उसके पास है वे न तो अपने को बड़ा समझकर उसकी बन्दगी से मुँह मोड़ते है औऱ न वे थकते है
يُسَبِّحُونَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ لَا يَفْتُرُونَ20
रात और दिन तसबीह करते रहते है, दम नहीं लेते
أَمِ اتَّخَذُوا آلِهَةً مِنَ الْأَرْضِ هُمْ يُنْشِرُونَ21
(क्या उन्होंने आकाश से कुछ पूज्य बना लिए है)... या उन्होंने धरती से ऐसे इष्ट -पूज्य बना लिए है, जो पुनर्जीवित करते हों?
لَوْ كَانَ فِيهِمَا آلِهَةٌ إِلَّا اللَّهُ لَفَسَدَتَا ۚ فَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَرْشِ عَمَّا يَصِفُونَ22
यदि इन दोनों (आकाश और धरती) में अल्लाह के सिवा दूसरे इष्ट-पूज्य भी होते तो दोनों की व्यवस्था बिगड़ जाती। अतः महान और उच्च है अल्लाह, राजासन का स्वामी, उन बातों से जो ये बयान करते है
لَا يُسْأَلُ عَمَّا يَفْعَلُ وَهُمْ يُسْأَلُونَ23
जो कुछ वह करता है उससे उसकी कोई पूछ नहीं हो सकती, किन्तु इनसे पूछ होगी
أَمِ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِهِ آلِهَةً ۖ قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ ۖ هَـٰذَا ذِكْرُ مَنْ مَعِيَ وَذِكْرُ مَنْ قَبْلِي ۗ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ الْحَقَّ ۖ فَهُمْ مُعْرِضُونَ24
(क्या ये अल्लाह के हक़ को नहीं पहचानते) या उसे छोड़कर इन्होंने दूसरे इष्ट-पूज्य बना लिए है (जिसके लिए इनके पास कुछ प्रमाण है)? कह दो, "लाओ, अपना प्रमाण! यह अनुस्मृति है उनकी जो मेरे साथ है और अनुस्मृति है उनकी जो मुझसे पहले हुए है, किन्तु बात यह है कि इनमें अधिकतर सत्य को जानते नहीं, इसलिए कतरा रहे है