अल-इसरा
قُلْ كُونُوا حِجَارَةً أَوْ حَدِيدًا50
कह दो, "तुम पत्थर या लोहो हो जाओ,
أَوْ خَلْقًا مِمَّا يَكْبُرُ فِي صُدُورِكُمْ ۚ فَسَيَقُولُونَ مَنْ يُعِيدُنَا ۖ قُلِ الَّذِي فَطَرَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ ۚ فَسَيُنْغِضُونَ إِلَيْكَ رُءُوسَهُمْ وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هُوَ ۖ قُلْ عَسَىٰ أَنْ يَكُونَ قَرِيبًا51
या कोई और चीज़ जो तुम्हारे जी में अत्यन्त विकट हो।" तब वे कहेंगे, "कौन हमें पलटाकर लाएगा?" कह दो, "वहीं जिसने तुम्हें पहली बार पैदा किया।" तब वे तुम्हारे आगे अपने सिरों को हिला-हिलाकर कहेंगे, "अच्छा तो वह कह होगा?" कह दो, "कदाचित कि वह निकट ही हो।"
يَوْمَ يَدْعُوكُمْ فَتَسْتَجِيبُونَ بِحَمْدِهِ وَتَظُنُّونَ إِنْ لَبِثْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا52
जिस दिन वह तुम्हें पुकारेगा, तो तुम उसकी प्रशंसा करते हुए उसकी आज्ञा को स्वीकार करोगे और समझोगे कि तुम बस थोड़ी ही देर ठहरे रहे हो
وَقُلْ لِعِبَادِي يَقُولُوا الَّتِي هِيَ أَحْسَنُ ۚ إِنَّ الشَّيْطَانَ يَنْزَغُ بَيْنَهُمْ ۚ إِنَّ الشَّيْطَانَ كَانَ لِلْإِنْسَانِ عَدُوًّا مُبِينًا53
मेरे बन्दों से कह दो कि "बात वहीं कहें जो उत्तम हो। शैतान तो उनके बीच उकसाकर फ़साद डालता रहता है। निस्संदेह शैतान मनुष्य का प्रत्यक्ष शत्रु है।"
رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِكُمْ ۖ إِنْ يَشَأْ يَرْحَمْكُمْ أَوْ إِنْ يَشَأْ يُعَذِّبْكُمْ ۚ وَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ وَكِيلًا54
तुम्हारा रब तुमसे भली-भाँति परिचित है। वह चाहे तो तुमपर दया करे या चाहे तो तुम्हें यातना दे। हमने तुम्हें उनकी ज़िम्मेदारी लेनेवाला कोई क्यक्ति बनाकर नहीं भेजा है (कि उन्हें अनिवार्यतः संमार्ग पर ला ही दो)
وَرَبُّكَ أَعْلَمُ بِمَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۗ وَلَقَدْ فَضَّلْنَا بَعْضَ النَّبِيِّينَ عَلَىٰ بَعْضٍ ۖ وَآتَيْنَا دَاوُودَ زَبُورًا55
तुम्हारा रब उससे भी भली-भाँति परिचित है जो कोई आकाशों और धरती में है, और हमने कुछ नबियों को कुछ की अपेक्षा श्रेष्ठता दी और हमने ही दाऊद को ज़बूर प्रदान की थी
قُلِ ادْعُوا الَّذِينَ زَعَمْتُمْ مِنْ دُونِهِ فَلَا يَمْلِكُونَ كَشْفَ الضُّرِّ عَنْكُمْ وَلَا تَحْوِيلًا56
कह दो, "तुम उससे इतर जिनको भी पूज्य-प्रभु समझते हो उन्हें पुकार कर देखो। वे न तुमसे कोई कष्ट दूर करने का अधिकार रखते है और न उसे बदलने का।"
أُولَـٰئِكَ الَّذِينَ يَدْعُونَ يَبْتَغُونَ إِلَىٰ رَبِّهِمُ الْوَسِيلَةَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ وَيَرْجُونَ رَحْمَتَهُ وَيَخَافُونَ عَذَابَهُ ۚ إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحْذُورًا57
जिनको ये लोग पुकारते है वे तो स्वयं अपने रब का सामीप्य ढूँढते है कि कौन उनमें से सबसे अधिक निकटता प्राप्त कर ले। और वे उसकी दयालुता की आशा रखते है और उसकी यातना से डरते रहते है। तुम्हारे रब की यातना तो है ही डरने की चीज़!
وَإِنْ مِنْ قَرْيَةٍ إِلَّا نَحْنُ مُهْلِكُوهَا قَبْلَ يَوْمِ الْقِيَامَةِ أَوْ مُعَذِّبُوهَا عَذَابًا شَدِيدًا ۚ كَانَ ذَٰلِكَ فِي الْكِتَابِ مَسْطُورًا58
कोई भी (अवज्ञाकारी) बस्ती ऐसी नहीं जिसे हम क़ियामत के दिन से पहले विनष्टअ न कर दें या उसे कठोर यातना न दे। यह बात किताब में लिखी जा चुकी है