अन-नमल
وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنْفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا ۚ فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ14
उन्होंने ज़ुल्म और सरकशी से उनका इनकार कर दिया, हालाँकि उनके जी को उनका विश्वास हो चुका था। अब देख लो इन बिगाड़ पैदा करनेवालों का क्या परिणाम हुआ?
وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ عِلْمًا ۖ وَقَالَا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي فَضَّلَنَا عَلَىٰ كَثِيرٍ مِنْ عِبَادِهِ الْمُؤْمِنِينَ15
हमने दाऊद और सुलैमान को बड़ा ज्ञान प्रदान किया था, (उन्होंने उसके महत्व को जाना) और उन दोनों ने कहा, "सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अपने बहुत-से ईमानवाले बन्दों के मुक़ाबले में श्रेष्ठता प्रदान की।"
وَوَرِثَ سُلَيْمَانُ دَاوُودَ ۖ وَقَالَ يَا أَيُّهَا النَّاسُ عُلِّمْنَا مَنْطِقَ الطَّيْرِ وَأُوتِينَا مِنْ كُلِّ شَيْءٍ ۖ إِنَّ هَـٰذَا لَهُوَ الْفَضْلُ الْمُبِينُ16
दाऊद का उत्तराधिकारी सुलैमान हुआ औऱ उसने कहा, "ऐ लोगों! हमें पक्षियों की बोली सिखाई गई है और हमें हर चीज़ दी गई है। निस्संदेह वह स्पष्ट बड़ाई है।"
وَحُشِرَ لِسُلَيْمَانَ جُنُودُهُ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ وَالطَّيْرِ فَهُمْ يُوزَعُونَ17
सुलैमान के लिए जिन्न और मनुष्य और पक्षियों मे से उसकी सेनाएँ एकत्र कर गई फिर उनकी दर्जाबन्दी की जा रही थी
حَتَّىٰ إِذَا أَتَوْا عَلَىٰ وَادِ النَّمْلِ قَالَتْ نَمْلَةٌ يَا أَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوا مَسَاكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَانُ وَجُنُودُهُ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ18
यहाँ तक कि जब वे चींटियों की घाटी में पहुँचे तो एक चींटी ने कहा, "ऐ चींटियों! अपने घरों में प्रवेश कर जाओ। कहीं सुलैमान और उसकी सेनाएँ तुम्हें कुचल न डालें और उन्हें एहसास भी न हो।"
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًا مِنْ قَوْلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَدْخِلْنِي بِرَحْمَتِكَ فِي عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ19
तो वह उसकी बात पर प्रसन्न होकर मुस्कराया और कहा, "मेरे रब! मुझे संभाले रख कि मैं तेरी उस कृपा पर कृतज्ञता दिखाता रहूँ जो तूने मुझपर और मेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि अच्छा कर्म करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी दयालुता से मुझे अपने अच्छे बन्दों में दाखिल कर।"
وَتَفَقَّدَ الطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِيَ لَا أَرَى الْهُدْهُدَ أَمْ كَانَ مِنَ الْغَائِبِينَ20
उसने पक्षियों की जाँच-पड़ताल की तो कहा, "क्या बात है कि मैं हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ, (वह यहीं कहीं है) या ग़ायब हो गया है?
لَأُعَذِّبَنَّهُ عَذَابًا شَدِيدًا أَوْ لَأَذْبَحَنَّهُ أَوْ لَيَأْتِيَنِّي بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ21
मैं उसे कठोर दंड दूँगा या उसे ज़बह ही कर डालूँगा या फिर वह मेरे सामने कोई स्पष्ट॥ कारण प्रस्तुत करे।"
فَمَكَثَ غَيْرَ بَعِيدٍ فَقَالَ أَحَطْتُ بِمَا لَمْ تُحِطْ بِهِ وَجِئْتُكَ مِنْ سَبَإٍ بِنَبَإٍ يَقِينٍ22
फिर कुछ अधिक देर नहीं ठहरा कि उसने आकर कहा, "मैंने वह जानकारी प्राप्त की है जो आपको मालूम नहीं है। मैं सबा से आपके पास एक विश्वसनीय सूचना लेकर आया हूँ