अल-मोमिनून
مَا تَسْبِقُ مِنْ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسْتَأْخِرُونَ43
कोई समुदाय न तो अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ सकता है और न पीछे रह सकता है
ثُمَّ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا تَتْرَىٰ ۖ كُلَّ مَا جَاءَ أُمَّةً رَسُولُهَا كَذَّبُوهُ ۚ فَأَتْبَعْنَا بَعْضَهُمْ بَعْضًا وَجَعَلْنَاهُمْ أَحَادِيثَ ۚ فَبُعْدًا لِقَوْمٍ لَا يُؤْمِنُونَ44
फिर हमने निरन्तर अपने रसूल भेजे। जब भी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। अतः हम एक दूसरे के पीछे (विनाश के लिए) लगाते चले गए और हमने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे कहानियाँ होकर रह गए। फिटकार हो उन लोगों पर जो ईमान न लाएँ
ثُمَّ أَرْسَلْنَا مُوسَىٰ وَأَخَاهُ هَارُونَ بِآيَاتِنَا وَسُلْطَانٍ مُبِينٍ45
फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी निशानियों और खुले प्रमाण के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर भेजा।
إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَاسْتَكْبَرُوا وَكَانُوا قَوْمًا عَالِينَ46
किन्तु उन्होंने अहंकार किया। वे थे ही सरकश लोग
فَقَالُوا أَنُؤْمِنُ لِبَشَرَيْنِ مِثْلِنَا وَقَوْمُهُمَا لَنَا عَابِدُونَ47
तो व कहने लगे, "क्या हम अपने ही जैसे दो मनुष्यों की बात मान लें, जबकि उनकी क़ौम हमारी ग़ुलाम भी है?"
فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُوا مِنَ الْمُهْلَكِينَ48
अतः उन्होंने उन दोनों को झुठला दिया और विनष्ट होनेवालों में सम्मिलित होकर रहे
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ49
और हमने मूसा को किताब प्रदान की, ताकि वे लोग मार्ग पा सकें
وَجَعَلْنَا ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ آيَةً وَآوَيْنَاهُمَا إِلَىٰ رَبْوَةٍ ذَاتِ قَرَارٍ وَمَعِينٍ50
और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया। और हमने उन्हें रहने योग्य स्रोतबाली ऊँची जगह शरण दी,
يَا أَيُّهَا الرُّسُلُ كُلُوا مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا ۖ إِنِّي بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ51
"ऐ पैग़म्बरो! अच्छी पाक चीज़े खाओ और अच्छा कर्म करो। जो कुछ तुम करते हो उसे मैं जानता हूँ
وَإِنَّ هَـٰذِهِ أُمَّتُكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَأَنَا رَبُّكُمْ فَاتَّقُونِ52
और निश्चय ही यह तुम्हारा समुदाय, एक ही समुदाय है और मैं तुम्हारा रब हूँ। अतः मेरा डर रखो।"
فَتَقَطَّعُوا أَمْرَهُمْ بَيْنَهُمْ زُبُرًا ۖ كُلُّ حِزْبٍ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُونَ53
किन्तु उन्होंने स्वयं अपने मामले (धर्म) को परस्पर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। हर गिरोह उसी पर खुश है, जो कुछ उसके पास है
فَذَرْهُمْ فِي غَمْرَتِهِمْ حَتَّىٰ حِينٍ54
अच्छा तो उन्हें उनकी अपनी बेहोशी में डूबे हुए ही एक समय तक छोड़ दो
أَيَحْسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُمْ بِهِ مِنْ مَالٍ وَبَنِينَ55
क्या वे समझते है कि हम जो उनकी धन और सन्तान से सहायता किए जा रहे है,
نُسَارِعُ لَهُمْ فِي الْخَيْرَاتِ ۚ بَلْ لَا يَشْعُرُونَ56
तो यह उनके भलाइयों में कोई जल्दी कर रहे है?
إِنَّ الَّذِينَ هُمْ مِنْ خَشْيَةِ رَبِّهِمْ مُشْفِقُونَ57
नहीं, बल्कि उन्हें इसका एहसास नहीं है। निश्चय ही जो लोग अपने रब के भय से काँपते रहते हैं;
وَالَّذِينَ هُمْ بِآيَاتِ رَبِّهِمْ يُؤْمِنُونَ58
और जो लोग अपने रब की आयतों पर ईमान लाते है;
وَالَّذِينَ هُمْ بِرَبِّهِمْ لَا يُشْرِكُونَ59
और जो लोग अपने रब के साथ किसी को साझी नहीं ठहराते;