अल-अनाम
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَجَعَلَ الظُّلُمَاتِ وَالنُّورَ ۖ ثُمَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِرَبِّهِمْ يَعْدِلُونَ1
प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और अँधरों और उजाले का विधान किया; फिर भी इनकार करनेवाले लोग दूसरों को अपने रब के समकक्ष ठहराते है
هُوَ الَّذِي خَلَقَكُمْ مِنْ طِينٍ ثُمَّ قَضَىٰ أَجَلًا ۖ وَأَجَلٌ مُسَمًّى عِنْدَهُ ۖ ثُمَّ أَنْتُمْ تَمْتَرُونَ2
वही है जिसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर (जीवन की) एक अवधि निश्चित कर दी और उसके यहाँ (क़ियामत की) एक अवधि और निश्चित है; फिर भी तुम संदेह करते हो!
وَهُوَ اللَّهُ فِي السَّمَاوَاتِ وَفِي الْأَرْضِ ۖ يَعْلَمُ سِرَّكُمْ وَجَهْرَكُمْ وَيَعْلَمُ مَا تَكْسِبُونَ3
वही अल्लाह है, आकाशों में भी और धरती में भी। वह तुम्हारी छिपी और तुम्हारी खुली बातों को जानता है, और जो कुछ तुम कमाते हो, वह उससे भी अवगत है
وَمَا تَأْتِيهِمْ مِنْ آيَةٍ مِنْ آيَاتِ رَبِّهِمْ إِلَّا كَانُوا عَنْهَا مُعْرِضِينَ4
हाल यह है कि उनके रब की निशानियों में से कोई निशानी भी उनके पास ऐसी नहीं आई, जिससे उन्होंने मुँह न मोड़ लिया हो
فَقَدْ كَذَّبُوا بِالْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ ۖ فَسَوْفَ يَأْتِيهِمْ أَنْبَاءُ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ5
उन्होंने सत्य को झुठला दिया, जबकि वह उनके पास आया। अतः जिस चीज़ को वे हँसी उड़ाते रहे हैं, जल्द ही उसके सम्बन्ध में उन्हें ख़बरे मिल जाएगी
أَلَمْ يَرَوْا كَمْ أَهْلَكْنَا مِنْ قَبْلِهِمْ مِنْ قَرْنٍ مَكَّنَّاهُمْ فِي الْأَرْضِ مَا لَمْ نُمَكِّنْ لَكُمْ وَأَرْسَلْنَا السَّمَاءَ عَلَيْهِمْ مِدْرَارًا وَجَعَلْنَا الْأَنْهَارَ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهِمْ فَأَهْلَكْنَاهُمْ بِذُنُوبِهِمْ وَأَنْشَأْنَا مِنْ بَعْدِهِمْ قَرْنًا آخَرِينَ6
क्या उन्होंने नहीं देखा कि उनसे पहले कितने ही गिरोहों को हम विनष्ट कर चुके है। उन्हें हमने धरती में ऐसा जमाव प्रदान किया था, जो तुम्हें नहीं प्रदान किया। और उनपर हमने आकाश को ख़ूब बरसता छोड़ दिया और उनके नीचे नहरें बहाई। फिर हमने आकाश को ख़ूब बरसता छोड़ दिया और उनके नीचे नहरें बहाई। फिर हमने उन्हें उनके गुनाहों के कारण विनष्ट़ कर दिया और उनके पश्चात दूसरे गिरोहों को उठाया
وَلَوْ نَزَّلْنَا عَلَيْكَ كِتَابًا فِي قِرْطَاسٍ فَلَمَسُوهُ بِأَيْدِيهِمْ لَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِنْ هَـٰذَا إِلَّا سِحْرٌ مُبِينٌ7
और यदि हम तुम्हारे ऊपर काग़ज़ में लिखी-लिखाई किताब भी उतार देते और उसे लोग अपने हाथों से छू भी लेते तब भी, जिन्होंने इनकार किया है, वे यही कहते, "यह तो बस एक खुला जादू हैं।"
وَقَالُوا لَوْلَا أُنْزِلَ عَلَيْهِ مَلَكٌ ۖ وَلَوْ أَنْزَلْنَا مَلَكًا لَقُضِيَ الْأَمْرُ ثُمَّ لَا يُنْظَرُونَ8
उनका तो कहना है, "इस (नबी) पर कोई फ़रिश्ता (खुले रूप में) क्यों नहीं उतारा गया?" हालाँकि यदि हम फ़रिश्ता उतारते तो फ़ैसला हो चुका होता। फिर उन्हें कोई मुहल्लत न मिलती