अल-क़लम
سَنَسِمُهُ عَلَى الْخُرْطُومِ16
शीघ्र ही हम उसकी सूँड पर दाग़ लगाएँगे
إِنَّا بَلَوْنَاهُمْ كَمَا بَلَوْنَا أَصْحَابَ الْجَنَّةِ إِذْ أَقْسَمُوا لَيَصْرِمُنَّهَا مُصْبِحِينَ17
हमने उन्हें परीक्षा में डाला है जैसे बाग़वालों को परीक्षा में डाला था, जबकि उन्होंने क़सम खाई कि वे प्रातःकाल अवश्य उस (बाग़) के फल तोड़ लेंगे
وَلَا يَسْتَثْنُونَ18
और वे इसमें छूट की कोई गुंजाइश नहीं रख रहे थे
فَطَافَ عَلَيْهَا طَائِفٌ مِنْ رَبِّكَ وَهُمْ نَائِمُونَ19
अभी वे सो ही रहे थे कि तुम्हारे रब की ओर से गर्दिश का एक झोंका आया
فَأَصْبَحَتْ كَالصَّرِيمِ20
और वह ऐसा हो गया जैसे कटी हुई फ़सल
فَتَنَادَوْا مُصْبِحِينَ21
फिर प्रातःकाल होते ही उन्होंने एक-दूसरे को आवाज़ दी
أَنِ اغْدُوا عَلَىٰ حَرْثِكُمْ إِنْ كُنْتُمْ صَارِمِينَ22
कि "यदि तुम्हें फल तोड़ना है तो अपनी खेती पर सवेरे ही पहुँचो।"
فَانْطَلَقُوا وَهُمْ يَتَخَافَتُونَ23
अतएव वे चुपके-चुपके बातें करते हुए चल पड़े
أَنْ لَا يَدْخُلَنَّهَا الْيَوْمَ عَلَيْكُمْ مِسْكِينٌ24
कि आज वहाँ कोई मुहताज तुम्हारे पास न पहुँचने पाए
وَغَدَوْا عَلَىٰ حَرْدٍ قَادِرِينَ25
और वे आज तेज़ी के साथ चले मानो (मुहताजों को) रोक देने की उन्हें सामर्थ्य प्राप्त है
فَلَمَّا رَأَوْهَا قَالُوا إِنَّا لَضَالُّونَ26
किन्तु जब उन्होंने उसको देखा, कहने लगे, "निश्चय ही हम भटक गए है।
بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ27
नहीं, बल्कि हम वंचित होकर रह गए।"
قَالَ أَوْسَطُهُمْ أَلَمْ أَقُلْ لَكُمْ لَوْلَا تُسَبِّحُونَ28
उनमें जो सबसे अच्छा था कहने लगा, "क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था? तुम तसबीह क्यों नहीं करते?"
قَالُوا سُبْحَانَ رَبِّنَا إِنَّا كُنَّا ظَالِمِينَ29
वे पुकार उठे, "महान और उच्च है हमारा रब! निश्चय ही हम ज़ालिम थे।"
فَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ يَتَلَاوَمُونَ30
फिर वे परस्पर एक-दूसरे की ओर रुख़ करके लगे एक-दूसरे को मलामत करने।
قَالُوا يَا وَيْلَنَا إِنَّا كُنَّا طَاغِينَ31
उन्होंने कहा, "अफ़सोस हम पर! निश्चय ही हम सरकश थे।
عَسَىٰ رَبُّنَا أَنْ يُبْدِلَنَا خَيْرًا مِنْهَا إِنَّا إِلَىٰ رَبِّنَا رَاغِبُونَ32
"आशा है कि हमारा रब बदले में हमें इससे अच्छा प्रदान करे। हम अपने रब की ओर उन्मुख है।"
كَذَٰلِكَ الْعَذَابُ ۖ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَكْبَرُ ۚ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ33
यातना ऐसी ही होती है, और आख़िरत की यातना तो निश्चय ही इससे भी बड़ी है, काश वे जानते!
إِنَّ لِلْمُتَّقِينَ عِنْدَ رَبِّهِمْ جَنَّاتِ النَّعِيمِ34
निश्चय ही डर रखनेवालों के लिए उनके रब के यहाँ नेमत भरी जन्नतें है
أَفَنَجْعَلُ الْمُسْلِمِينَ كَالْمُجْرِمِينَ35
तो क्या हम मुस्लिमों (आज्ञाकारियों) को अपराधियों जैसा कर देंगे?
مَا لَكُمْ كَيْفَ تَحْكُمُونَ36
तुम्हें क्या हो गया है, कैसा फ़ैसला करते हो?
أَمْ لَكُمْ كِتَابٌ فِيهِ تَدْرُسُونَ37
क्या तुम्हारे पास कोई किताब है जिसमें तुम पढ़ते हो
إِنَّ لَكُمْ فِيهِ لَمَا تَخَيَّرُونَ38
कि उसमें तुम्हारे लिए वह कुछ है जो तुम पसन्द करो?
أَمْ لَكُمْ أَيْمَانٌ عَلَيْنَا بَالِغَةٌ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ۙ إِنَّ لَكُمْ لَمَا تَحْكُمُونَ39
या तुमने हमसे क़समें ले रखी है जो क़ियामत के दिन तक बाक़ी रहनेवाली है कि तुम्हारे लिए वही कुछ है जो तुम फ़ैसला करो!
سَلْهُمْ أَيُّهُمْ بِذَٰلِكَ زَعِيمٌ40
उनसे पूछो, "उनमें से कौन इसकी ज़मानत लेता है!
أَمْ لَهُمْ شُرَكَاءُ فَلْيَأْتُوا بِشُرَكَائِهِمْ إِنْ كَانُوا صَادِقِينَ41
या उनके ठहराए हुए कुछ साझीदार है? फिर तो यह चाहिए कि वे अपने साझीदारों को ले आएँ, यदि वे सच्चे है
يَوْمَ يُكْشَفُ عَنْ سَاقٍ وَيُدْعَوْنَ إِلَى السُّجُودِ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ42
जिस दिन पिंडली खुल जाएगी और वे सजदे के लिए बुलाए जाएँगे, तो वे (सजदा) न कर सकेंगे