अल-अंबिया
وَمِنَ الشَّيَاطِينِ مَنْ يَغُوصُونَ لَهُ وَيَعْمَلُونَ عَمَلًا دُونَ ذَٰلِكَ ۖ وَكُنَّا لَهُمْ حَافِظِينَ82
और कितने ही शैतानों को भी अधीन किया था, जो उसके लिए गोते लगाते और इसके अतिरिक्त दूसरा काम भी करते थे। और हम ही उनको संभालनेवाले थे
وَأَيُّوبَ إِذْ نَادَىٰ رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنْتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ83
और अय्यूब पर भी दया दर्शाई। याद करो जबकि उसने अपने रब को पुकारा कि "मुझे बहुत तकलीफ़ पहुँची है, और तू सबसे बढ़कर दयावान है।"
فَاسْتَجَبْنَا لَهُ فَكَشَفْنَا مَا بِهِ مِنْ ضُرٍّ ۖ وَآتَيْنَاهُ أَهْلَهُ وَمِثْلَهُمْ مَعَهُمْ رَحْمَةً مِنْ عِنْدِنَا وَذِكْرَىٰ لِلْعَابِدِينَ84
अतः हमने उसकी सुन ली और जिस तकलीफ़ में वह पड़ा था उसको दूर कर दिया, और हमने उसे उसके परिवार के लोग दिए और उनके साथ उनके जैसे और भी दिए अपने यहाँ दयालुता के रूप में और एक याददिहानी के रूप में बन्दगी करनेवालों के लिए
وَإِسْمَاعِيلَ وَإِدْرِيسَ وَذَا الْكِفْلِ ۖ كُلٌّ مِنَ الصَّابِرِينَ85
और इसमाईल और इदरीस और ज़ुलकिफ़्ल पर भी कृपा-स्पष्ट की। इनमें से प्रत्येक धैर्यवानों में से था
وَأَدْخَلْنَاهُمْ فِي رَحْمَتِنَا ۖ إِنَّهُمْ مِنَ الصَّالِحِينَ86
औऱ उन्हें हमने अपनी दयालुता में प्रवेश कराया। निस्संदेह वे सब अच्छे लोगों में से थे
وَذَا النُّونِ إِذْ ذَهَبَ مُغَاضِبًا فَظَنَّ أَنْ لَنْ نَقْدِرَ عَلَيْهِ فَنَادَىٰ فِي الظُّلُمَاتِ أَنْ لَا إِلَـٰهَ إِلَّا أَنْتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنْتُ مِنَ الظَّالِمِينَ87
और ज़ुन्नून (मछलीवाले) पर भी दया दर्शाई। याद करो जबकि वह अत्यन्त क्रद्ध होकर चल दिया और समझा कि हम उसे तंगी में न डालेंगे। अन्त में उसनें अँधेरों में पुकारा, "तेरे सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं, महिमावान है तू! निस्संदेह मैं दोषी हूँ।"
فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَنَجَّيْنَاهُ مِنَ الْغَمِّ ۚ وَكَذَٰلِكَ نُنْجِي الْمُؤْمِنِينَ88
तब हमने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और उसे ग़म से छुटकारा दिया। इसी प्रकार तो हम मोमिनों को छुटकारा दिया करते है
وَزَكَرِيَّا إِذْ نَادَىٰ رَبَّهُ رَبِّ لَا تَذَرْنِي فَرْدًا وَأَنْتَ خَيْرُ الْوَارِثِينَ89
और ज़करिया पर भी कृपा की। याद करो जबकि उसने अपने रब को पुकारा, "ऐ मेरे रब! मुझे अकेला न छोड़ यूँ, सबसे अच्छा वारिस तो तू ही है।"
فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَوَهَبْنَا لَهُ يَحْيَىٰ وَأَصْلَحْنَا لَهُ زَوْجَهُ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا يُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ وَيَدْعُونَنَا رَغَبًا وَرَهَبًا ۖ وَكَانُوا لَنَا خَاشِعِينَ90
अतः हमने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उसे याह्या् प्रदान किया और उसके लिए उसकी पत्नी को स्वस्थ कर दिया। निश्चय ही वे नेकी के कामों में एक-दूसरे के मुक़ाबले में जल्दी करते थे। और हमें ईप्सा (चाह) और भय के साथ पुकारते थे और हमारे आगे दबे रहते थे