अज़-ज़ुख़रुफ़
وَكَذَٰلِكَ مَا أَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ فِي قَرْيَةٍ مِنْ نَذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتْرَفُوهَا إِنَّا وَجَدْنَا آبَاءَنَا عَلَىٰ أُمَّةٍ وَإِنَّا عَلَىٰ آثَارِهِمْ مُقْتَدُونَ23
इसी प्रकार हमने जिस किसी बस्ती में तुमसे पहले कोई सावधान करनेवाला भेजा तो वहाँ के सम्पन्न लोगों ने बस यही कहा कि "हमने तो अपने बाप-दादा को एक तरीक़े पर पाया और हम उन्हीं के पद-चिन्हों पर है, उनका अनुसरण कर रहे है।"
قَالَ أَوَلَوْ جِئْتُكُمْ بِأَهْدَىٰ مِمَّا وَجَدْتُمْ عَلَيْهِ آبَاءَكُمْ ۖ قَالُوا إِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُمْ بِهِ كَافِرُونَ24
उसने कहा, "क्या यदि मैं उससे उत्तम मार्गदर्शन लेकर आया हूँ, जिसपर तूने अपने बाप-दादा को पाया है, तब भी (तुम अपने बाप-दादा के पद-चिह्मों का ही अनुसरण करोगं)?" उन्होंने कहा, "तुम्हें जो कुछ देकर भेजा गया है, हम तो उसका इनकार करते है।"
فَانْتَقَمْنَا مِنْهُمْ ۖ فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِينَ25
अन्ततः हमने उनसे बदला लिया। तो देख लो कि झुठलानेवालों का कैसा परिणाम हुआ?
وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ إِنَّنِي بَرَاءٌ مِمَّا تَعْبُدُونَ26
याद करो, जबकि इबराहीम ने अपने बाप और अपनी क़ौम से कहा, "तुम जिनको पूजते हो उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं,
إِلَّا الَّذِي فَطَرَنِي فَإِنَّهُ سَيَهْدِينِ27
सिवाय उसके जिसने मुझे पैदा किया। अतः निश्चय ही वह मुझे मार्ग दिखाएगा।"
وَجَعَلَهَا كَلِمَةً بَاقِيَةً فِي عَقِبِهِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ28
और यही बात वह अपने पीछे (अपनी सन्तान में) बाक़ी छोड़ गया, ताकि वे रुजू करें
بَلْ مَتَّعْتُ هَـٰؤُلَاءِ وَآبَاءَهُمْ حَتَّىٰ جَاءَهُمُ الْحَقُّ وَرَسُولٌ مُبِينٌ29
नहीं,बल्कि मैं उन्हें और उनके बाप-दादा को जीवन-सुख प्रदान करता रहा, यहाँ तक कि उनके पास सत्य और खोल-खोलकर बतानेवाला रसूल आ गया
وَلَمَّا جَاءَهُمُ الْحَقُّ قَالُوا هَـٰذَا سِحْرٌ وَإِنَّا بِهِ كَافِرُونَ30
किन्तु जब वह हक़ लेकर उनके पास आया तो वे कहने लगे, "यह तो जादू है। और हम तो इसका इनकार करते है।"
وَقَالُوا لَوْلَا نُزِّلَ هَـٰذَا الْقُرْآنُ عَلَىٰ رَجُلٍ مِنَ الْقَرْيَتَيْنِ عَظِيمٍ31
वे कहते है, "यह क़ुरआन इन दो बस्तियों के किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं अवतरित हुआ?"
أَهُمْ يَقْسِمُونَ رَحْمَتَ رَبِّكَ ۚ نَحْنُ قَسَمْنَا بَيْنَهُمْ مَعِيشَتَهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۚ وَرَفَعْنَا بَعْضَهُمْ فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجَاتٍ لِيَتَّخِذَ بَعْضُهُمْ بَعْضًا سُخْرِيًّا ۗ وَرَحْمَتُ رَبِّكَ خَيْرٌ مِمَّا يَجْمَعُونَ32
क्या वे तुम्हारे रब की दयालुता को बाँटते है? सांसारिक जीवन में उनके जीवन-यापन के साधन हमने उनके बीच बाँटे है और हमने उनमें से कुछ लोगों को दूसरे कुछ लोगों से श्रेणियों की दृष्टि से उच्च रखा है, ताकि उनमें से वे एक-दूसरे से काम लें। और तुम्हारे रब की दयालुता उससे कहीं उत्तम है जिसे वे समेट रहे है
وَلَوْلَا أَنْ يَكُونَ النَّاسُ أُمَّةً وَاحِدَةً لَجَعَلْنَا لِمَنْ يَكْفُرُ بِالرَّحْمَـٰنِ لِبُيُوتِهِمْ سُقُفًا مِنْ فِضَّةٍ وَمَعَارِجَ عَلَيْهَا يَظْهَرُونَ33
यदि इस बात की सम्भावना न होती कि सब लोग एक ही समुदाय (अधर्मी) हो जाएँगे, तो जो लोग रहमान के साथ कुफ़्र करते है उनके लिए हम उनके घरों की छतें चाँदी की कर देते है और सीढ़ियाँ भी जिनपर वे चढ़ते।