अल-अनाम
بَلْ بَدَا لَهُمْ مَا كَانُوا يُخْفُونَ مِنْ قَبْلُ ۖ وَلَوْ رُدُّوا لَعَادُوا لِمَا نُهُوا عَنْهُ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ28
कुछ नहीं, बल्कि जो कुछ वे पहले छिपाया करते थे, वह उनके सामने आ गया। और यदि वे लौटा भी दिए जाएँ, तो फिर वही कुछ करने लगेंगे जिससे उन्हें रोका गया था। निश्चय ही वे झूठे है
وَقَالُوا إِنْ هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا الدُّنْيَا وَمَا نَحْنُ بِمَبْعُوثِينَ29
और वे कहते है, "जो कुछ है बस यही हमारा सांसारिक जीवन है; हम कोई फिर उठाए जानेवाले नहीं हैं।"
وَلَوْ تَرَىٰ إِذْ وُقِفُوا عَلَىٰ رَبِّهِمْ ۚ قَالَ أَلَيْسَ هَـٰذَا بِالْحَقِّ ۚ قَالُوا بَلَىٰ وَرَبِّنَا ۚ قَالَ فَذُوقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُونَ30
और यदि तुम देख सकते जब वे अपने रब के सामने खड़े किेए जाएँगे! वह कहेगा, "क्या यह यर्थाथ नहीं है?" कहेंगे, "क्यों नही, हमारे रब की क़सम!" वह कहेगा, "अच्छा तो उस इनकार के बदले जो तुम करते रहें हो, यातना का मज़ा चखो।"
قَدْ خَسِرَ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِلِقَاءِ اللَّهِ ۖ حَتَّىٰ إِذَا جَاءَتْهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً قَالُوا يَا حَسْرَتَنَا عَلَىٰ مَا فَرَّطْنَا فِيهَا وَهُمْ يَحْمِلُونَ أَوْزَارَهُمْ عَلَىٰ ظُهُورِهِمْ ۚ أَلَا سَاءَ مَا يَزِرُونَ31
वे लोग घाटे में पड़े, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठलाया, यहाँ तक कि जब अचानक उनपर वह घड़ी आ जाएगी तो वे कहेंगे, "हाय! अफ़सोस, उस कोताही पर जो इसके विषय में हमसे हुई।" और हाल यह होगा कि वे अपने बोझ अपनी पीठों पर उठाए होंगे। देखो, कितना बुरा बोझ है जो ये उठाए हुए है!
وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا لَعِبٌ وَلَهْوٌ ۖ وَلَلدَّارُ الْآخِرَةُ خَيْرٌ لِلَّذِينَ يَتَّقُونَ ۗ أَفَلَا تَعْقِلُونَ32
सांसारिक जीवन तो एक खेल और तमाशे (ग़फलत) के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है जबकि आख़िरत का घर उन लोगों के लिए अच्छा है, जो डर रखते है। तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?
قَدْ نَعْلَمُ إِنَّهُ لَيَحْزُنُكَ الَّذِي يَقُولُونَ ۖ فَإِنَّهُمْ لَا يُكَذِّبُونَكَ وَلَـٰكِنَّ الظَّالِمِينَ بِآيَاتِ اللَّهِ يَجْحَدُونَ33
हमें मालूम है, जो कुछ वे कहते है उससे तुम्हें दुख पहुँचता है। तो वे वास्तव में तुम्हें नहीं झुठलाते, बल्कि उन अत्याचारियो को तो अल्लाह की आयतों से इनकार है
وَلَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِنْ قَبْلِكَ فَصَبَرُوا عَلَىٰ مَا كُذِّبُوا وَأُوذُوا حَتَّىٰ أَتَاهُمْ نَصْرُنَا ۚ وَلَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَاتِ اللَّهِ ۚ وَلَقَدْ جَاءَكَ مِنْ نَبَإِ الْمُرْسَلِينَ34
तुमसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाए जा चुके है, तो वे अपने झुठलाए जाने और कष्ट पहुँचाए जाने पर धैर्य से काम लेते रहे, यहाँ तक कि उन्हें हमारी सहायता पहुँच गई। कोई नहीं जो अल्लाह की बातों को बदल सके। तुम्हारे पास तो रसूलों की कुछ ख़बरें पहुँच ही चुकी है
وَإِنْ كَانَ كَبُرَ عَلَيْكَ إِعْرَاضُهُمْ فَإِنِ اسْتَطَعْتَ أَنْ تَبْتَغِيَ نَفَقًا فِي الْأَرْضِ أَوْ سُلَّمًا فِي السَّمَاءِ فَتَأْتِيَهُمْ بِآيَةٍ ۚ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَجَمَعَهُمْ عَلَى الْهُدَىٰ ۚ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْجَاهِلِينَ35
और यदि उनकी विमुखता तुम्हारे लिए असहनीय है, तो यदि तुमसे हो सके कि धरती में कोई सुरंग या आकाश में कोई सीढ़ी ढूँढ़ निकालो और उनके पास कोई निशानी ले आओ, तो (ऐसा कर देखो), यदि अल्लाह चाहता तो उन सबको सीधे मार्ग पर इकट्ठा कर देता। अतः तुम उजड्ड और नादान न बनना