अल-हज
يَا أَيُّهَا النَّاسُ ضُرِبَ مَثَلٌ فَاسْتَمِعُوا لَهُ ۚ إِنَّ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ لَنْ يَخْلُقُوا ذُبَابًا وَلَوِ اجْتَمَعُوا لَهُ ۖ وَإِنْ يَسْلُبْهُمُ الذُّبَابُ شَيْئًا لَا يَسْتَنْقِذُوهُ مِنْهُ ۚ ضَعُفَ الطَّالِبُ وَالْمَطْلُوبُ73
ऐ लोगों! एक मिसाल पेश की जाती है। उसे ध्यान से सुनो, अल्लाह से हटकर तुम जिन्हें पुकारते हो वे एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकते। यद्यपि इसके लिए वे सब इकट्ठे हो जाएँ और यदि मक्खी उनसे कोई चीज़ छीन ले जाए तो उससे वे उसको छुड़ा भी नहीं सकते। बेबस और असहाय रहा चाहनेवाला भी (उपासक) और उसका अभीष्ट (उपास्य) भी
مَا قَدَرُوا اللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَقَوِيٌّ عَزِيزٌ74
उन्होंने अल्लाह की क़द्र ही नहीं पहचानी जैसी कि उसकी क़द्र पहचाननी चाहिए थी। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त बलवान, प्रभुत्वशाली है
اللَّهُ يَصْطَفِي مِنَ الْمَلَائِكَةِ رُسُلًا وَمِنَ النَّاسِ ۚ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ75
अल्लाह फ़रिश्तों में से संदेशवाहक चुनता और मनुष्यों में से भी। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है
يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۗ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ76
वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ارْكَعُوا وَاسْجُدُوا وَاعْبُدُوا رَبَّكُمْ وَافْعَلُوا الْخَيْرَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ ۩77
ऐ ईमान लानेवालो! झुको और सजदा करो और अपने रब की बन्दही करो और भलाई करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो
وَجَاهِدُوا فِي اللَّهِ حَقَّ جِهَادِهِ ۚ هُوَ اجْتَبَاكُمْ وَمَا جَعَلَ عَلَيْكُمْ فِي الدِّينِ مِنْ حَرَجٍ ۚ مِلَّةَ أَبِيكُمْ إِبْرَاهِيمَ ۚ هُوَ سَمَّاكُمُ الْمُسْلِمِينَ مِنْ قَبْلُ وَفِي هَـٰذَا لِيَكُونَ الرَّسُولُ شَهِيدًا عَلَيْكُمْ وَتَكُونُوا شُهَدَاءَ عَلَى النَّاسِ ۚ فَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَاعْتَصِمُوا بِاللَّهِ هُوَ مَوْلَاكُمْ ۖ فَنِعْمَ الْمَوْلَىٰ وَنِعْمَ النَّصِيرُ78
और परस्पर मिलकर जिहाद करो अल्लाह के मार्ग में, जैसा कि जिहाद का हक़ है। उसने तुम्हें चुन लिया है - और धर्म के मामले में तुमपर कोई तंगी और कठिनाई नहीं रखी। तुम्हारे बाप इबराहीम के पंथ को तुम्हारे लिए पसन्द किया। उसने इससे पहले तुम्हारा नाम मुस्लिम (आज्ञाकारी) रखा था और इस ध्येय से - ताकि रसूल तुमपर गवाह हो और तुम लोगों पर गवाह हो। अतः नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और अल्लाह को मज़बूती से पकड़े रहो। वही तुम्हारा संरक्षक है। तो क्या ही अच्छा संरक्षक है और क्या ही अच्छा सहायक!