यूसुफ़
وَرَاوَدَتْهُ الَّتِي هُوَ فِي بَيْتِهَا عَنْ نَفْسِهِ وَغَلَّقَتِ الْأَبْوَابَ وَقَالَتْ هَيْتَ لَكَ ۚ قَالَ مَعَاذَ اللَّهِ ۖ إِنَّهُ رَبِّي أَحْسَنَ مَثْوَايَ ۖ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ23
जिस स्त्री के घर में वह रहता था, वह उस पर डोरे डालने लगी। उसने दरवाज़े बन्द कर दिए और कहने लगी, "लो, आ जाओ!" उसने कहा, "अल्लाह की पनाह! मेरे रब ने मुझे अच्छा स्थान दिया है। अत्याचारी कभी सफल नहीं होते।"
وَلَقَدْ هَمَّتْ بِهِ ۖ وَهَمَّ بِهَا لَوْلَا أَنْ رَأَىٰ بُرْهَانَ رَبِّهِ ۚ كَذَٰلِكَ لِنَصْرِفَ عَنْهُ السُّوءَ وَالْفَحْشَاءَ ۚ إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُخْلَصِينَ24
उसने उसका इरादा कर लिया था। यदि वह अपने रब का स्पष्ट॥ प्रमाण न देख लेता तो वह भी उसका इरादा कर लेता। ऐसा इसलिए हुआ ताकि हम बुराई और अश्लीलता को उससे दूर रखें। निस्संदेह वह हमारे चुने हुए बन्दों में से था
وَاسْتَبَقَا الْبَابَ وَقَدَّتْ قَمِيصَهُ مِنْ دُبُرٍ وَأَلْفَيَا سَيِّدَهَا لَدَى الْبَابِ ۚ قَالَتْ مَا جَزَاءُ مَنْ أَرَادَ بِأَهْلِكَ سُوءًا إِلَّا أَنْ يُسْجَنَ أَوْ عَذَابٌ أَلِيمٌ25
वे दोनों दरवाज़े की ओर झपटे और उस स्त्री ने उसका कुर्ता पीछे से फाड़ डाला। दरवाज़े पर दोनों ने उस स्त्री के पति को उपस्थित पाया। वह बोली, "जो कोई तुम्हारी घरवाली के साथ बुरा इरादा करे, उसका बदला इसके सिवा और क्या होगा कि उसे बन्दी बनाया जाए या फिर कोई दुखद यातना दी जाए?"
قَالَ هِيَ رَاوَدَتْنِي عَنْ نَفْسِي ۚ وَشَهِدَ شَاهِدٌ مِنْ أَهْلِهَا إِنْ كَانَ قَمِيصُهُ قُدَّ مِنْ قُبُلٍ فَصَدَقَتْ وَهُوَ مِنَ الْكَاذِبِينَ26
उसने कहा, "यही मुझपर डोरे डाल रही थी।" उस स्त्री के लोगों में से एक गवाह ने गवाही दी, "यदि इसका कुर्ता आगे से फटा है तो यह सच्ची है और यह झूठा है,
وَإِنْ كَانَ قَمِيصُهُ قُدَّ مِنْ دُبُرٍ فَكَذَبَتْ وَهُوَ مِنَ الصَّادِقِينَ27
और यदि उसका कुर्ता पीछे से फटा है तो यह झूठी है और यह सच्चा है।"
فَلَمَّا رَأَىٰ قَمِيصَهُ قُدَّ مِنْ دُبُرٍ قَالَ إِنَّهُ مِنْ كَيْدِكُنَّ ۖ إِنَّ كَيْدَكُنَّ عَظِيمٌ28
फिर जब देखा कि उसका कुर्ता पीछे से फटा है तो उसने कहा, "यह तुम स्त्रियों की चाल है। निश्चय ही तुम्हारी चाल बड़े ग़ज़ब की होती है
يُوسُفُ أَعْرِضْ عَنْ هَـٰذَا ۚ وَاسْتَغْفِرِي لِذَنْبِكِ ۖ إِنَّكِ كُنْتِ مِنَ الْخَاطِئِينَ29
यूसुफ़! इस मामले को जाने दे और स्त्री तू अपने गुनाह की माफ़ी माँग। निस्संदेह ख़ता तेरी ही है।"
وَقَالَ نِسْوَةٌ فِي الْمَدِينَةِ امْرَأَتُ الْعَزِيزِ تُرَاوِدُ فَتَاهَا عَنْ نَفْسِهِ ۖ قَدْ شَغَفَهَا حُبًّا ۖ إِنَّا لَنَرَاهَا فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ30
नगर की स्त्रियाँ कहने लगी, "अज़ीज़ की पत्नी अपने नवयुवक ग़ुलाम पर डोरे डालना चाहती है। वह प्रेम-प्रेरणा से उसके मन में घर कर गया है। हम तो उसे देख रहे हैं कि वह खुली ग़लती में पड़ गई है।"