अन्नब'अ
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
عَمَّ يَتَسَاءَلُونَ1
किस चीज़ के विषय में वे आपस में पूछ-गच्छ कर रहे है?
عَنِ النَّبَإِ الْعَظِيمِ2
उस बड़ी ख़बर के सम्बन्ध में,
الَّذِي هُمْ فِيهِ مُخْتَلِفُونَ3
जिसमें वे मतभेद रखते है
كَلَّا سَيَعْلَمُونَ4
कदापि नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे।
ثُمَّ كَلَّا سَيَعْلَمُونَ5
फिर कदापि नहीं, शीघ्र ही वे जान लेंगे।
أَلَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ مِهَادًا6
क्या ऐसा नहीं है कि हमने धरती को बिछौना बनाया
وَالْجِبَالَ أَوْتَادًا7
और पहाड़ों को मेख़े?
وَخَلَقْنَاكُمْ أَزْوَاجًا8
और हमने तुम्हें जोड़-जोड़े पैदा किया,
وَجَعَلْنَا نَوْمَكُمْ سُبَاتًا9
और तुम्हारी नींद को थकन दूर करनेवाली बनाया,
وَجَعَلْنَا اللَّيْلَ لِبَاسًا10
रात को आवरण बनाया,
وَجَعَلْنَا النَّهَارَ مَعَاشًا11
और दिन को जीवन-वृति के लिए बनाया
وَبَنَيْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعًا شِدَادًا12
और तुम्हारे ऊपर सात सुदृढ़ आकाश निर्मित किए,
وَجَعَلْنَا سِرَاجًا وَهَّاجًا13
और एक तप्त और प्रकाशमान प्रदीप बनाया,
وَأَنْزَلْنَا مِنَ الْمُعْصِرَاتِ مَاءً ثَجَّاجًا14
और बरस पड़नेवाली घटाओं से हमने मूसलाधार पानी उतारा,
لِنُخْرِجَ بِهِ حَبًّا وَنَبَاتًا15
ताकि हम उसके द्वारा अनाज और वनस्पति उत्पादित करें
وَجَنَّاتٍ أَلْفَافًا16
और सघन बांग़ भी।
إِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ كَانَ مِيقَاتًا17
निस्संदेह फ़ैसले का दिन एक नियत समय है,
يَوْمَ يُنْفَخُ فِي الصُّورِ فَتَأْتُونَ أَفْوَاجًا18
जिस दिन नरसिंघा में फूँक मारी जाएगी, तो तुम गिरोह को गिरोह चले आओगे।
وَفُتِحَتِ السَّمَاءُ فَكَانَتْ أَبْوَابًا19
और आकाश खोल दिया जाएगा तो द्वार ही द्वार हो जाएँगे;
وَسُيِّرَتِ الْجِبَالُ فَكَانَتْ سَرَابًا20
और पहाड़ चलाए जाएँगे, तो वे बिल्कुल मरीचिका होकर रह जाएँगे
إِنَّ جَهَنَّمَ كَانَتْ مِرْصَادًا21
वास्तव में जहन्नम एक घात-स्थल है;
لِلطَّاغِينَ مَآبًا22
सरकशों का ठिकाना है
لَابِثِينَ فِيهَا أَحْقَابًا23
वस्तुस्थिति यह है कि वे उसमें मुद्दत पर मुद्दत बिताते रहेंगे
لَا يَذُوقُونَ فِيهَا بَرْدًا وَلَا شَرَابًا24
वे उसमे न किसी शीतलता का मज़ा चखेगे और न किसी पेय का,
إِلَّا حَمِيمًا وَغَسَّاقًا25
सिवाय खौलते पानी और बहती पीप-रक्त के
جَزَاءً وِفَاقًا26
यह बदले के रूप में उनके कर्मों के ठीक अनुकूल होगा
إِنَّهُمْ كَانُوا لَا يَرْجُونَ حِسَابًا27
वास्तव में किसी हिसाब की आशा न रखते थे,
وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا كِذَّابًا28
और उन्होंने हमारी आयतों को ख़ूब झुठलाया,
وَكُلَّ شَيْءٍ أَحْصَيْنَاهُ كِتَابًا29
और हमने हर चीज़ लिखकर गिन रखी है
فَذُوقُوا فَلَنْ نَزِيدَكُمْ إِلَّا عَذَابًا30
"अब चखो मज़ा कि यातना के अतिरिक्त हम तुम्हारे लिए किसी और चीज़ में बढ़ोत्तरी नहीं करेंगे। "
إِنَّ لِلْمُتَّقِينَ مَفَازًا31
निस्सदेह डर रखनेवालों के लिए एक बड़ी सफलता है,
حَدَائِقَ وَأَعْنَابًا32
बाग़ है और अंगूर,
وَكَوَاعِبَ أَتْرَابًا33
और नवयौवना समान उम्रवाली,
وَكَأْسًا دِهَاقًا34
और छलक़ता जाम
لَا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا وَلَا كِذَّابًا35
वे उसमें न तो कोई व्यर्थ बात सुनेंगे और न कोई झुठलाने की बात
جَزَاءً مِنْ رَبِّكَ عَطَاءً حِسَابًا36
यह तुम्हारे रब की ओर से बदला होगा, हिसाब के अनुसार प्रदत्त
رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا الرَّحْمَـٰنِ ۖ لَا يَمْلِكُونَ مِنْهُ خِطَابًا37
वह आकाशों और धरती का और जो कुछ उनके बीच है सबका रब है, अत्यन्त कृपाशील है, उसके सामने बात करना उनके बस में नहीं होगा
يَوْمَ يَقُومُ الرُّوحُ وَالْمَلَائِكَةُ صَفًّا ۖ لَا يَتَكَلَّمُونَ إِلَّا مَنْ أَذِنَ لَهُ الرَّحْمَـٰنُ وَقَالَ صَوَابًا38
जिस दिन रूह और फ़रिश्ते पक्तिबद्ध खड़े होंगे, वे बोलेंगे नहीं, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे रहमान अनुमति दे और जो ठीक बात कहे
ذَٰلِكَ الْيَوْمُ الْحَقُّ ۖ فَمَنْ شَاءَ اتَّخَذَ إِلَىٰ رَبِّهِ مَآبًا39
वह दिन सत्य है। अब जो कोई चाहे अपने रब की ओर रुज करे
إِنَّا أَنْذَرْنَاكُمْ عَذَابًا قَرِيبًا يَوْمَ يَنْظُرُ الْمَرْءُ مَا قَدَّمَتْ يَدَاهُ وَيَقُولُ الْكَافِرُ يَا لَيْتَنِي كُنْتُ تُرَابًا40
हमने तुम्हें निकट आ लगी यातना से सावधान कर दिया है। जिस दिन मनुष्य देख लेगा जो कुछ उसके हाथों ने आगे भेजा, और इनकार करनेवाला कहेगा, "ऐ काश! कि मैं मिट्टी होता!"
अन-नाज़िआत
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالنَّازِعَاتِ غَرْقًا1
गवाह है वे (हवाएँ) जो ज़ोर से उखाड़ फैंके,
وَالنَّاشِطَاتِ نَشْطًا2
और गवाह है वे (हवाएँ) जो नर्मी के साथ चलें,
وَالسَّابِحَاتِ سَبْحًا3
और गवाह है वे जो वायुमंडल में तैरें,
فَالسَّابِقَاتِ سَبْقًا4
फिर एक-दूसरे से अग्रसर हों,
فَالْمُدَبِّرَاتِ أَمْرًا5
और मामले की तदबीर करें
يَوْمَ تَرْجُفُ الرَّاجِفَةُ6
जिस दिन हिला डालेगी हिला डालनेवाले घटना,
تَتْبَعُهَا الرَّادِفَةُ7
उसके पीछ घटित होगी दूसरी (घटना)
قُلُوبٌ يَوْمَئِذٍ وَاجِفَةٌ8
कितने ही दिल उस दिन काँप रहे होंगे,
أَبْصَارُهَا خَاشِعَةٌ9
उनकी निगाहें झुकी होंगी
يَقُولُونَ أَإِنَّا لَمَرْدُودُونَ فِي الْحَافِرَةِ10
वे कहते है, "क्या वास्तव में हम पहली हालत में फिर लौटाए जाएँगे?
أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا نَخِرَةً11
क्या जब हम खोखली गलित हड्डियाँ हो चुके होंगे?"
قَالُوا تِلْكَ إِذًا كَرَّةٌ خَاسِرَةٌ12
वे कहते है, "तब तो लौटना बड़े ही घाटे का होगा।"
فَإِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَاحِدَةٌ13
वह तो बस एक ही झिड़की होगी,
فَإِذَا هُمْ بِالسَّاهِرَةِ14
फिर क्या देखेंगे कि वे एक समतल मैदान में उपस्थित है
هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ مُوسَىٰ15
क्या तुम्हें मूसा की ख़बर पहुँची है?
إِذْ نَادَاهُ رَبُّهُ بِالْوَادِ الْمُقَدَّسِ طُوًى16
जबकि उसके रब ने पवित्र घाटी 'तुवा' में उसे पुकारा था
اذْهَبْ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَىٰ17
कि "फ़िरऔन के पास जाओ, उसने बहुत सिर उठा रखा है
فَقُلْ هَلْ لَكَ إِلَىٰ أَنْ تَزَكَّىٰ18
"और कहो, क्या तू यह चाहता है कि स्वयं को पाक-साफ़ कर ले,
وَأَهْدِيَكَ إِلَىٰ رَبِّكَ فَتَخْشَىٰ19
"और मैं तेरे रब की ओर तेरा मार्गदर्शन करूँ कि तु (उससे) डरे?"
فَأَرَاهُ الْآيَةَ الْكُبْرَىٰ20
फिर उसने (मूसा ने) उसको बड़ी निशानी दिखाई,
فَكَذَّبَ وَعَصَىٰ21
किन्तु उसने झुठला दिया और कहा न माना,
ثُمَّ أَدْبَرَ يَسْعَىٰ22
फिर सक्रियता दिखाते हुए पलटा,
فَحَشَرَ فَنَادَىٰ23
फिर (लोगों को) एकत्र किया और पुकारकर कहा,
فَقَالَ أَنَا رَبُّكُمُ الْأَعْلَىٰ24
"मैं तुम्हारा उच्चकोटि का स्वामी हूँ!"
فَأَخَذَهُ اللَّهُ نَكَالَ الْآخِرَةِ وَالْأُولَىٰ25
अन्ततः अल्लाह ने उसे आख़िरत और दुनिया की शिक्षाप्रद यातना में पकड़ लिया
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبْرَةً لِمَنْ يَخْشَىٰ26
निस्संदेह इसमें उस व्यक्ति के लिए बड़ी शिक्षा है जो डरे!
أَأَنْتُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَمِ السَّمَاءُ ۚ بَنَاهَا27
क्या तुम्हें पैदा करना अधिक कठिन कार्य है या आकाश को? अल्लाह ने उसे बनाया,
رَفَعَ سَمْكَهَا فَسَوَّاهَا28
उसकी ऊँचाई को ख़ूब ऊँचा करके उसे ठीक-ठाक किया;
وَأَغْطَشَ لَيْلَهَا وَأَخْرَجَ ضُحَاهَا29
और उसकी रात को अन्धकारमय बनाया और उसका दिवस-प्रकाश प्रकट किया
وَالْأَرْضَ بَعْدَ ذَٰلِكَ دَحَاهَا30
और धरती को देखो! इसके पश्चात उसे फैलाया;
أَخْرَجَ مِنْهَا مَاءَهَا وَمَرْعَاهَا31
उसमें से उसका पानी और उसका चारा निकाला
وَالْجِبَالَ أَرْسَاهَا32
और पहाड़ो को देखो! उन्हें उस (धरती) में जमा दिया,
مَتَاعًا لَكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ33
तुम्हारे लिए और तुम्हारे मवेशियों के लिए जीवन-सामग्री के रूप में
فَإِذَا جَاءَتِ الطَّامَّةُ الْكُبْرَىٰ34
फिर जब वह महाविपदा आएगी,
يَوْمَ يَتَذَكَّرُ الْإِنْسَانُ مَا سَعَىٰ35
उस दिन मनुष्य जो कुछ भी उसने प्रयास किया होगा उसे याद करेगा
وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِمَنْ يَرَىٰ36
और भड़कती आग (जहन्नम) देखने वालों के लिए खोल दी जाएगी
فَأَمَّا مَنْ طَغَىٰ37
तो जिस किसी ने सरकशी की
وَآثَرَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا38
और सांसारिक जीवन को प्राथमिकता दो होगी,
فَإِنَّ الْجَحِيمَ هِيَ الْمَأْوَىٰ39
तो निस्संदेह भड़कती आग ही उसका ठिकाना है
وَأَمَّا مَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ وَنَهَى النَّفْسَ عَنِ الْهَوَىٰ40
और रहा वह व्यक्ति जिसने अपने रब के सामने खड़े होने का भय रखा और अपने जी को बुरी इच्छा से रोका,
فَإِنَّ الْجَنَّةَ هِيَ الْمَأْوَىٰ41
तो जन्नत ही उसका ठिकाना है
يَسْأَلُونَكَ عَنِ السَّاعَةِ أَيَّانَ مُرْسَاهَا42
वे तुमसे उस घड़ी के विषय में पूछते है कि वह कब आकर ठहरेगी?
فِيمَ أَنْتَ مِنْ ذِكْرَاهَا43
उसके बयान करने से तुम्हारा क्या सम्बन्ध?
إِلَىٰ رَبِّكَ مُنْتَهَاهَا44
उसकी अन्तिम पहुँच तो तेरे से ही सम्बन्ध रखती है
إِنَّمَا أَنْتَ مُنْذِرُ مَنْ يَخْشَاهَا45
तुम तो बस उस व्यक्ति को सावधान करनेवाले हो जो उससे डरे
كَأَنَّهُمْ يَوْمَ يَرَوْنَهَا لَمْ يَلْبَثُوا إِلَّا عَشِيَّةً أَوْ ضُحَاهَا46
जिस दिन वे उसे देखेंगे तो (ऐसा लगेगा) मानो वे (दुनिया में) बस एक शाम या उसकी सुबह ही ठहरे है
अबस
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
عَبَسَ وَتَوَلَّىٰ1
उसने त्योरी चढ़ाई और मुँह फेर लिया,
أَنْ جَاءَهُ الْأَعْمَىٰ2
इस कारण कि उसके पास अन्धा आ गया।
وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّهُ يَزَّكَّىٰ3
और तुझे क्या मालूम शायद वह स्वयं को सँवारता-निखारता हो
أَوْ يَذَّكَّرُ فَتَنْفَعَهُ الذِّكْرَىٰ4
या नसीहत हासिल करता हो तो नसीहत उसके लिए लाभदायक हो?
أَمَّا مَنِ اسْتَغْنَىٰ5
रहा वह व्यक्ति जो धनी हो गया ह
فَأَنْتَ لَهُ تَصَدَّىٰ6
तू उसके पीछे पड़ा है -
وَمَا عَلَيْكَ أَلَّا يَزَّكَّىٰ7
हालाँकि वह अपने को न निखारे तो तुझपर कोई ज़िम्मेदारी नहीं आती -
وَأَمَّا مَنْ جَاءَكَ يَسْعَىٰ8
और रहा वह व्यक्ति जो स्वयं ही तेरे पास दौड़ता हुआ आया,
وَهُوَ يَخْشَىٰ9
और वह डरता भी है,
فَأَنْتَ عَنْهُ تَلَهَّىٰ10
तो तू उससे बेपरवाई करता है
كَلَّا إِنَّهَا تَذْكِرَةٌ11
कदापि नहीं, वे (आयतें) तो महत्वपूर्ण नसीहत है -
فَمَنْ شَاءَ ذَكَرَهُ12
तो जो चाहे उसे याद कर ले -
فِي صُحُفٍ مُكَرَّمَةٍ13
पवित्र पन्नों में अंकित है,
مَرْفُوعَةٍ مُطَهَّرَةٍ14
प्रतिष्ठि्त, उच्च,
بِأَيْدِي سَفَرَةٍ15
ऐसे कातिबों के हाथों में रहा करते है
كِرَامٍ بَرَرَةٍ16
जो प्रतिष्ठित और नेक है
قُتِلَ الْإِنْسَانُ مَا أَكْفَرَهُ17
विनष्ट हुआ मनुष्य! कैसा अकृतज्ञ है!
مِنْ أَيِّ شَيْءٍ خَلَقَهُ18
उसको किस चीज़ से पैदा किया?
مِنْ نُطْفَةٍ خَلَقَهُ فَقَدَّرَهُ19
तनिक-सी बूँद से उसको पैदा किया, तो उसके लिए एक अंदाजा ठहराया,
ثُمَّ السَّبِيلَ يَسَّرَهُ20
फिर मार्ग को देखो, उसे सुगम कर दिया,
ثُمَّ أَمَاتَهُ فَأَقْبَرَهُ21
फिर उसे मृत्यु दी और क्रब में उसे रखवाया,
ثُمَّ إِذَا شَاءَ أَنْشَرَهُ22
फिर जब चाहेगा उसे (जीवित करके) उठा खड़ा करेगा। -
كَلَّا لَمَّا يَقْضِ مَا أَمَرَهُ23
कदापि नहीं, उसने उसको पूरा नहीं किया जिसका आदेश अल्लाह ने उसे दिया है
فَلْيَنْظُرِ الْإِنْسَانُ إِلَىٰ طَعَامِهِ24
अतः मनुष्य को चाहिए कि अपने भोजन को देखे,
أَنَّا صَبَبْنَا الْمَاءَ صَبًّا25
कि हमने ख़ूब पानी बरसाया,
ثُمَّ شَقَقْنَا الْأَرْضَ شَقًّا26
फिर धरती को विशेष रूप से फाड़ा,
فَأَنْبَتْنَا فِيهَا حَبًّا27
फिर हमने उसमें उगाए अनाज,
وَعِنَبًا وَقَضْبًا28
और अंगूर और तरकारी,
وَزَيْتُونًا وَنَخْلًا29
और ज़ैतून और खजूर,
وَحَدَائِقَ غُلْبًا30
और घने बाग़,
وَفَاكِهَةً وَأَبًّا31
और मेवे और घास-चारा,
مَتَاعًا لَكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ32
तुम्हारे लिए और तुम्हारे चौपायों के लिेए जीवन-सामग्री के रूप में
فَإِذَا جَاءَتِ الصَّاخَّةُ33
फिर जब वह बहरा कर देनेवाली प्रचंड आवाज़ आएगी,
يَوْمَ يَفِرُّ الْمَرْءُ مِنْ أَخِيهِ34
जिस दिन आदमी भागेगा अपने भाई से,
وَأُمِّهِ وَأَبِيهِ35
और अपनी माँ और अपने बाप से,
وَصَاحِبَتِهِ وَبَنِيهِ36
और अपनी पत्नी और अपने बेटों से
لِكُلِّ امْرِئٍ مِنْهُمْ يَوْمَئِذٍ شَأْنٌ يُغْنِيهِ37
उनमें से प्रत्येक व्यक्ति को उस दिन ऐसी पड़ी होगी जो उसे दूसरों से बेपरवाह कर देगी
وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ مُسْفِرَةٌ38
कितने ही चेहरे उस दिन रौशन होंगे,
ضَاحِكَةٌ مُسْتَبْشِرَةٌ39
हँसते, प्रफुल्लित
وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ عَلَيْهَا غَبَرَةٌ40
और कितने ही चेहरे होंगे जिनपर उस दिन धूल पड़ी होगी,
تَرْهَقُهَا قَتَرَةٌ41
उनपर कलौंस छा रही होगी
أُولَـٰئِكَ هُمُ الْكَفَرَةُ الْفَجَرَةُ42
वहीं होंगे इनकार करनेवाले दुराचारी लोग!
अत-तकवीर
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِذَا الشَّمْسُ كُوِّرَتْ1
जब सूर्य लपेट दिया जाएगा,
وَإِذَا النُّجُومُ انْكَدَرَتْ2
सारे तारे मैले हो जाएँगे,
وَإِذَا الْجِبَالُ سُيِّرَتْ3
जब पहाड़ चलाए जाएँगे,
وَإِذَا الْعِشَارُ عُطِّلَتْ4
जब दस मास की गाभिन ऊँटनियाँ आज़ाद छोड़ दी जाएँगी,
وَإِذَا الْوُحُوشُ حُشِرَتْ5
जब जंगली जानवर एकत्र किए जाएँगे,
وَإِذَا الْبِحَارُ سُجِّرَتْ6
जब समुद्र भड़का दिया जाएँगे,
وَإِذَا النُّفُوسُ زُوِّجَتْ7
जब लोग क़िस्म-क़िस्म कर दिए जाएँगे,
وَإِذَا الْمَوْءُودَةُ سُئِلَتْ8
और जब जीवित गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा,
بِأَيِّ ذَنْبٍ قُتِلَتْ9
कि उसकी हत्या किस गुनाह के कारण की गई,
وَإِذَا الصُّحُفُ نُشِرَتْ10
और जब कर्म-पत्र फैला दिए जाएँगे,
وَإِذَا السَّمَاءُ كُشِطَتْ11
और जब आकाश की खाल उतार दी जाएगी,
وَإِذَا الْجَحِيمُ سُعِّرَتْ12
जब जहन्नम को दहकाया जाएगा,
وَإِذَا الْجَنَّةُ أُزْلِفَتْ13
और जब जन्नत निकट कर दी जाएगी,
عَلِمَتْ نَفْسٌ مَا أَحْضَرَتْ14
तो कोई भी क्यक्ति जान लेगा कि उसने क्या उपस्थित किया है
فَلَا أُقْسِمُ بِالْخُنَّسِ15
अतः नहीं! मैं क़सम खाता हूँ पीछे हटनेवालों की,
الْجَوَارِ الْكُنَّسِ16
चलनेवालों, छिपने-दुबकने-वालों की
وَاللَّيْلِ إِذَا عَسْعَسَ17
साक्षी है रात्रि जब वह प्रस्थान करे,
وَالصُّبْحِ إِذَا تَنَفَّسَ18
और साक्षी है प्रातः जब वह साँस ले
إِنَّهُ لَقَوْلُ رَسُولٍ كَرِيمٍ19
निश्चय ही वह एक आदरणीय संदेशवाहक की लाई हुई वाणी है,
ذِي قُوَّةٍ عِنْدَ ذِي الْعَرْشِ مَكِينٍ20
जो शक्तिवाला है, सिंहासनवाले के यहाँ जिसकी पैठ है
مُطَاعٍ ثَمَّ أَمِينٍ21
उसका आदेश माना जाता है, वहाँ वह विश्वासपात्र है
وَمَا صَاحِبُكُمْ بِمَجْنُونٍ22
तुम्हारा साथी कोई दीवाना नहीं,
وَلَقَدْ رَآهُ بِالْأُفُقِ الْمُبِينِ23
उसने तो (पराकाष्ठान के) प्रत्यक्ष क्षितिज पर होकर उस (फ़रिश्ते) को देखा है
وَمَا هُوَ عَلَى الْغَيْبِ بِضَنِينٍ24
और वह परोक्ष के मामले में कृपण नहीं है,
وَمَا هُوَ بِقَوْلِ شَيْطَانٍ رَجِيمٍ25
और वह (क़ुरआन) किसी धुतकारे हुए शैतान की लाई हुई वाणी नहीं है
فَأَيْنَ تَذْهَبُونَ26
फिर तुम किधर जा रहे हो?
إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِلْعَالَمِينَ27
वह तो सारे संसार के लिए बस एक अनुस्मृति है,
لِمَنْ شَاءَ مِنْكُمْ أَنْ يَسْتَقِيمَ28
उसके लिए तो तुममे से सीधे मार्ग पर चलना चाहे
وَمَا تَشَاءُونَ إِلَّا أَنْ يَشَاءَ اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ29
और तुम नहीं चाह सकते सिवाय इसके कि सारे जहान का रब अल्लाह चाहे
अल-इंफितार
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِذَا السَّمَاءُ انْفَطَرَتْ1
जबकि आकाश फट जाएगा
وَإِذَا الْكَوَاكِبُ انْتَثَرَتْ2
और जबकि तारे बिखर जाएँगे
وَإِذَا الْبِحَارُ فُجِّرَتْ3
और जबकि समुद्र बह पड़ेंगे
وَإِذَا الْقُبُورُ بُعْثِرَتْ4
और जबकि क़बें उखेड़ दी जाएँगी
عَلِمَتْ نَفْسٌ مَا قَدَّمَتْ وَأَخَّرَتْ5
तब हर व्यक्ति जान लेगा जिसे उसने प्राथमिकता दी और पीछे डाला
يَا أَيُّهَا الْإِنْسَانُ مَا غَرَّكَ بِرَبِّكَ الْكَرِيمِ6
ऐ मनुष्य! किस चीज़ ने तुझे अपने उदार प्रभु के विषय में धोखे में डाल रखा हैं?
الَّذِي خَلَقَكَ فَسَوَّاكَ فَعَدَلَكَ7
जिसने तेरा प्रारूप बनाया, फिर नख-शिख से तुझे दुरुस्त किया और तुझे संतुलन प्रदान किया
فِي أَيِّ صُورَةٍ مَا شَاءَ رَكَّبَكَ8
जिस रूप में चाहा उसने तुझे जोड़कर तैयार किया
كَلَّا بَلْ تُكَذِّبُونَ بِالدِّينِ9
कुछ नहीं, बल्कि तुम बदला दिए जाने का झुठलाते हो
وَإِنَّ عَلَيْكُمْ لَحَافِظِينَ10
जबकि तुमपर निगरानी करनेवाले नियुक्त हैं
كِرَامًا كَاتِبِينَ11
प्रतिष्ठित लिपिक
يَعْلَمُونَ مَا تَفْعَلُونَ12
वे जान रहे होते है जो कुछ भी तुम लोग करते हो
إِنَّ الْأَبْرَارَ لَفِي نَعِيمٍ13
निस्संदेह वफ़ादार लोग नेमतों में होंगे
وَإِنَّ الْفُجَّارَ لَفِي جَحِيمٍ14
और निश्चय ही दुराचारी भड़कती हुई आग में
يَصْلَوْنَهَا يَوْمَ الدِّينِ15
जिसमें वे बदले के दिन प्रवेश करेंगे
وَمَا هُمْ عَنْهَا بِغَائِبِينَ16
और उससे वे ओझल नहीं होंगे
وَمَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الدِّينِ17
और तुम्हें क्या मालूम कि बदले का दिन क्या है?
ثُمَّ مَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الدِّينِ18
फिर तुम्हें क्या मालूम कि बदले का दिन क्या है?
يَوْمَ لَا تَمْلِكُ نَفْسٌ لِنَفْسٍ شَيْئًا ۖ وَالْأَمْرُ يَوْمَئِذٍ لِلَّهِ19
जिस दिन कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के लिए किसी चीज़ का अधिकारी न होगा, मामला उस दिन अल्लाह ही के हाथ में होगा
अल-मुतफ़्फ़िफ़ीन
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَيْلٌ لِلْمُطَفِّفِينَ1
तबाही है घटानेवालों के लिए,
الَّذِينَ إِذَا اكْتَالُوا عَلَى النَّاسِ يَسْتَوْفُونَ2
जो नापकर लोगों पर नज़र जमाए हुए लेते हैं तो पूरा-पूरा लेते हैं,
وَإِذَا كَالُوهُمْ أَوْ وَزَنُوهُمْ يُخْسِرُونَ3
किन्तु जब उन्हें नापकर या तौलकर देते हैं तो घटाकर देते हैं
أَلَا يَظُنُّ أُولَـٰئِكَ أَنَّهُمْ مَبْعُوثُونَ4
क्या वे समझते नहीं कि उन्हें (जीवित होकर) उठना है,
لِيَوْمٍ عَظِيمٍ5
एक भारी दिन के लिए,
يَوْمَ يَقُومُ النَّاسُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ6
जिस दिन लोग सारे संसार के रब के सामने खड़े होंगे?
كَلَّا إِنَّ كِتَابَ الْفُجَّارِ لَفِي سِجِّينٍ7
कुछ नहीं, निश्चय ही दुराचारियों का काग़ज 'सिज्जीन' में है
وَمَا أَدْرَاكَ مَا سِجِّينٌ8
तुम्हें क्या मालूम कि 'सिज्जीन' क्या हैं?
كِتَابٌ مَرْقُومٌ9
मुहर लगा हुआ काग़ज
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ10
तबाही है उस दिन झुठलाने-वालों की,
الَّذِينَ يُكَذِّبُونَ بِيَوْمِ الدِّينِ11
जो बदले के दिन को झुठलाते है
وَمَا يُكَذِّبُ بِهِ إِلَّا كُلُّ مُعْتَدٍ أَثِيمٍ12
और उसे तो बस प्रत्येक वह क्यक्ति ही झूठलाता है जो सीमा का उल्लंघन करनेवाला, पापी है
إِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِ آيَاتُنَا قَالَ أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ13
जब हमारी आयतें उसे सुनाई जाती है तो कहता है, "ये तो पहले की कहानियाँ है।"
كَلَّا ۖ بَلْ ۜ رَانَ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ مَا كَانُوا يَكْسِبُونَ14
कुछ नहीं, बल्कि जो कुछ वे कमाते रहे है वह उनके दिलों पर चढ़ गया है
كَلَّا إِنَّهُمْ عَنْ رَبِّهِمْ يَوْمَئِذٍ لَمَحْجُوبُونَ15
कुछ नहीं, अवश्य ही वे उस दिन अपने रब से ओट में होंगे,
ثُمَّ إِنَّهُمْ لَصَالُو الْجَحِيمِ16
फिर वे भड़कती आग में जा पड़ेगे
ثُمَّ يُقَالُ هَـٰذَا الَّذِي كُنْتُمْ بِهِ تُكَذِّبُونَ17
फिर कहा जाएगा, "यह वही है जिस तुम झुठलाते थे"
كَلَّا إِنَّ كِتَابَ الْأَبْرَارِ لَفِي عِلِّيِّينَ18
कुछ नही, निस्संदेह वफ़ादार लोगों का काग़ज़ 'इल्लीयीन' (उच्च श्रेणी के लोगों) में है।-
وَمَا أَدْرَاكَ مَا عِلِّيُّونَ19
और तुम क्या जानो कि 'इल्लीयीन' क्या है? -
كِتَابٌ مَرْقُومٌ20
लिखा हुआ रजिस्टर
يَشْهَدُهُ الْمُقَرَّبُونَ21
जिसे देखने के लिए सामीप्य प्राप्त लोग उपस्थित होंगे,
إِنَّ الْأَبْرَارَ لَفِي نَعِيمٍ22
निस्संदेह अच्छे लोग नेमतों में होंगे,
عَلَى الْأَرَائِكِ يَنْظُرُونَ23
ऊँची मसनदों पर से देख रहे होंगे
تَعْرِفُ فِي وُجُوهِهِمْ نَضْرَةَ النَّعِيمِ24
उनके चहरों से तुम्हें नेमतों की ताज़गी और आभा को बोध हो रहा होगा,
يُسْقَوْنَ مِنْ رَحِيقٍ مَخْتُومٍ25
उन्हें मुहरबंद विशुद्ध पेय पिलाया जाएगा,
خِتَامُهُ مِسْكٌ ۚ وَفِي ذَٰلِكَ فَلْيَتَنَافَسِ الْمُتَنَافِسُونَ26
मुहर उसकी मुश्क ही होगी - जो लोग दूसरी पर बाज़ी ले जाना चाहते हो वे इस चीज़ को प्राप्त करने में बाज़ी ले जाने का प्रयास करे -
وَمِزَاجُهُ مِنْ تَسْنِيمٍ27
और उसमें 'तसनीम' का मिश्रण होगा,
عَيْنًا يَشْرَبُ بِهَا الْمُقَرَّبُونَ28
हाल यह है कि वह एक स्रोत है, जिसपर बैठकर सामीप्य प्राप्त लोग पिएँगे
إِنَّ الَّذِينَ أَجْرَمُوا كَانُوا مِنَ الَّذِينَ آمَنُوا يَضْحَكُونَ29
जो अपराधी है वे ईमान लानेवालों पर हँसते थे,
وَإِذَا مَرُّوا بِهِمْ يَتَغَامَزُونَ30
और जब उनके पास से गुज़रते तो आपस में आँखों और भौंहों से इशारे करते थे,
وَإِذَا انْقَلَبُوا إِلَىٰ أَهْلِهِمُ انْقَلَبُوا فَكِهِينَ31
और जब अपने लोगों की ओर पलटते है तो चहकते, इतराते हुए पलटते थे,
وَإِذَا رَأَوْهُمْ قَالُوا إِنَّ هَـٰؤُلَاءِ لَضَالُّونَ32
और जब उन्हें देखते तो कहते, "ये तो भटके हुए है।"
وَمَا أُرْسِلُوا عَلَيْهِمْ حَافِظِينَ33
हालाँकि वे उनपर कोई निगरानी करनेवाले बनाकर नहीं भेजे गए थे
فَالْيَوْمَ الَّذِينَ آمَنُوا مِنَ الْكُفَّارِ يَضْحَكُونَ34
तो आज ईमान लानेवाले, इनकार करनेवालों पर हँस रहे हैं,
عَلَى الْأَرَائِكِ يَنْظُرُونَ35
ऊँची मसनदों पर से देख रहे है
هَلْ ثُوِّبَ الْكُفَّارُ مَا كَانُوا يَفْعَلُونَ36
क्या मिल गया बदला इनकार करनेवालों को उसका जो कुछ वे करते रहे है?
अल-इन्शिकाक़
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِذَا السَّمَاءُ انْشَقَّتْ1
जबकि आकाश फट जाएगा,
وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ2
और वह अपने रब की सुनेगा, और उसे यही चाहिए भी
وَإِذَا الْأَرْضُ مُدَّتْ3
जब धरती फैला दी जाएगी
وَأَلْقَتْ مَا فِيهَا وَتَخَلَّتْ4
और जो कुछ उसके भीतर है उसे बाहर डालकर खाली हो जाएगी
وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ5
और वह अपने रब की सुनेगी, और उसे यही चाहिए भी
يَا أَيُّهَا الْإِنْسَانُ إِنَّكَ كَادِحٌ إِلَىٰ رَبِّكَ كَدْحًا فَمُلَاقِيهِ6
ऐ मनुष्य! तू मशक़्क़त करता हुआ अपने रब ही की ओर खिंचा चला जा रहा है और अन्ततः उससे मिलने वाला है
فَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ7
फिर जिस किसी को उसका कर्म-पत्र उसके दाहिने हाथ में दिया गया,
فَسَوْفَ يُحَاسَبُ حِسَابًا يَسِيرًا8
तो उससे आसान, सरसरी हिसाब लिया जाएगा
وَيَنْقَلِبُ إِلَىٰ أَهْلِهِ مَسْرُورًا9
और वह अपने लोगों की ओर ख़ुश-ख़ुश पलटेगा
وَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ وَرَاءَ ظَهْرِهِ10
और रह वह व्यक्ति जिसका कर्म-पत्र (उसके बाएँ हाथ में) उसकी पीठ के पीछे से दिया गया,
فَسَوْفَ يَدْعُو ثُبُورًا11
तो वह विनाश (मृत्यु) को पुकारेगा,
وَيَصْلَىٰ سَعِيرًا12
और दहकती आग में जा पड़ेगा
إِنَّهُ كَانَ فِي أَهْلِهِ مَسْرُورًا13
वह अपने लोगों में मग्न था,
إِنَّهُ ظَنَّ أَنْ لَنْ يَحُورَ14
उसने यह समझ रखा था कि उसे कभी पलटना नहीं है
بَلَىٰ إِنَّ رَبَّهُ كَانَ بِهِ بَصِيرًا15
क्यों नहीं, निश्चय ही उसका रब तो उसे देख रहा था!
فَلَا أُقْسِمُ بِالشَّفَقِ16
अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ सांध्य-लालिमा की,
وَاللَّيْلِ وَمَا وَسَقَ17
और रात की और उसके समेट लेने की,
وَالْقَمَرِ إِذَا اتَّسَقَ18
और चन्द्रमा की जबकि वह पूर्ण हो जाता है,
لَتَرْكَبُنَّ طَبَقًا عَنْ طَبَقٍ19
निश्चय ही तुम्हें मंजिल पर मंजिल चढ़ना है
فَمَا لَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ20
फिर उन्हें क्या हो गया है कि ईमान नहीं लाते?
وَإِذَا قُرِئَ عَلَيْهِمُ الْقُرْآنُ لَا يَسْجُدُونَ ۩21
और जब उन्हें कुरआन पढ़कर सुनाया जाता है तो सजदे में नहीं गिर पड़ते?
بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا يُكَذِّبُونَ22
नहीं, बल्कि इनकार करनेवाले तो झुठलाते है,
وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يُوعُونَ23
हालाँकि जो कुछ वे अपने अन्दर एकत्र कर रहे है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है
فَبَشِّرْهُمْ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ24
अतः उन्हें दुखद यातना की मंगल सूचना दे दो
إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ25
अलबत्ता जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए कभी न समाप्त॥ होनेवाला प्रतिदान है
अल-बुरूज
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالسَّمَاءِ ذَاتِ الْبُرُوجِ1
साक्षी है बुर्जोंवाला आकाश,
وَالْيَوْمِ الْمَوْعُودِ2
और वह दिन जिसका वादा किया गया है,
وَشَاهِدٍ وَمَشْهُودٍ3
और देखनेवाला, और जो देखा गया
قُتِلَ أَصْحَابُ الْأُخْدُودِ4
विनष्ट हों खाईवाले,
النَّارِ ذَاتِ الْوَقُودِ5
ईधन भरी आगवाले,
إِذْ هُمْ عَلَيْهَا قُعُودٌ6
जबकि वे वहाँ बैठे होंगे
وَهُمْ عَلَىٰ مَا يَفْعَلُونَ بِالْمُؤْمِنِينَ شُهُودٌ7
और वे जो कुछ ईमानवालों के साथ करते रहे, उसे देखेंगे
وَمَا نَقَمُوا مِنْهُمْ إِلَّا أَنْ يُؤْمِنُوا بِاللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَمِيدِ8
उन्होंने उन (ईमानवालों) से केवल इस कारण बदला लिया और शत्रुता की कि वे उस अल्लाह पर ईमान रखते थे जो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, प्रशंसनीय है,
الَّذِي لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ9
जिसके लिए आकाशों और धरती की बादशाही है। और अल्लाह हर चीज़ का साक्षी है
إِنَّ الَّذِينَ فَتَنُوا الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَتُوبُوا فَلَهُمْ عَذَابُ جَهَنَّمَ وَلَهُمْ عَذَابُ الْحَرِيقِ10
जिन लोगों ने ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को सताया और आज़माईश में डाला, फिर तौबा न की, निश्चय ही उनके लिए जहन्नम की यातना है और उनके लिए जलने की यातना है
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۚ ذَٰلِكَ الْفَوْزُ الْكَبِيرُ11
निश्चय ही जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए बाग़ है, जिनके नीचे नहरें बह रही होगी। वही है बड़ी सफलता
إِنَّ بَطْشَ رَبِّكَ لَشَدِيدٌ12
वास्तव में तुम्हारे रब की पकड़ बड़ी ही सख़्त है
إِنَّهُ هُوَ يُبْدِئُ وَيُعِيدُ13
वही आरम्भ करता है और वही पुनरावृत्ति करता है,
وَهُوَ الْغَفُورُ الْوَدُودُ14
वह बड़ा क्षमाशील, बहुत प्रेम करनेवाला है,
ذُو الْعَرْشِ الْمَجِيدُ15
सिंहासन का स्वामी है, बडा गौरवशाली,
فَعَّالٌ لِمَا يُرِيدُ16
जो चाहे उसे कर डालनेवाला
هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ الْجُنُودِ17
क्या तुम्हें उन सेनाओं की भी ख़बर पहुँची हैं,
فِرْعَوْنَ وَثَمُودَ18
फ़िरऔन और समूद की?
بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي تَكْذِيبٍ19
नहीं, बल्कि जिन लोगों ने इनकार किया है, वे झुठलाने में लगे हुए है;
وَاللَّهُ مِنْ وَرَائِهِمْ مُحِيطٌ20
हालाँकि अल्लाह उन्हें घेरे हुए है, उनके आगे-पीछे से
بَلْ هُوَ قُرْآنٌ مَجِيدٌ21
नहीं, बल्कि वह तो गौरव क़ुरआन है,
فِي لَوْحٍ مَحْفُوظٍ22
सुरक्षित पट्टिका में अंकित है
अत-तारिक़
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالسَّمَاءِ وَالطَّارِقِ1
साक्षी है आकाश, और रात में प्रकट होनेवाला -
وَمَا أَدْرَاكَ مَا الطَّارِقُ2
और तुम क्या जानो कि रात में प्रकट होनेवाला क्या है?
النَّجْمُ الثَّاقِبُ3
दमकता हुआ तारा! -
إِنْ كُلُّ نَفْسٍ لَمَّا عَلَيْهَا حَافِظٌ4
कि हर एक व्यक्ति पर एक निगरानी करनेवाला नियुक्त है
فَلْيَنْظُرِ الْإِنْسَانُ مِمَّ خُلِقَ5
अतः मनुष्य को चाहिए कि देखे कि वह किस चीज़ से पैदा किया गया है
خُلِقَ مِنْ مَاءٍ دَافِقٍ6
एक उछलते पानी से पैदा किया गया है,
يَخْرُجُ مِنْ بَيْنِ الصُّلْبِ وَالتَّرَائِبِ7
जो पीठ और पसलियों के मध्य से निकलता है
إِنَّهُ عَلَىٰ رَجْعِهِ لَقَادِرٌ8
निश्चय ही वह उसके लौटा देने की सामर्थ्य रखता है
يَوْمَ تُبْلَى السَّرَائِرُ9
जिस दिन छिपी चीज़ें परखी जाएँगी,
فَمَا لَهُ مِنْ قُوَّةٍ وَلَا نَاصِرٍ10
तो उस समय उसके पास न तो अपनी कोई शक्ति होगी और न कोई सहायक
وَالسَّمَاءِ ذَاتِ الرَّجْعِ11
साक्षी है आवर्तन (उलट-फेर) वाला आकाश,
وَالْأَرْضِ ذَاتِ الصَّدْعِ12
और फट जानेवाली धरती
إِنَّهُ لَقَوْلٌ فَصْلٌ13
वह दो-टूक बात है,
وَمَا هُوَ بِالْهَزْلِ14
वह कोई हँसी-मज़ाक नही है
إِنَّهُمْ يَكِيدُونَ كَيْدًا15
वे एक चाल चल रहे है,
وَأَكِيدُ كَيْدًا16
और मैं भी एक चाल चल रहा हूँ
فَمَهِّلِ الْكَافِرِينَ أَمْهِلْهُمْ رُوَيْدًا17
अत मुहलत दे दो उन इनकार करनेवालों को; मुहलत दे दो उन्हें थोड़ी-सी
अल-आ'ला
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
سَبِّحِ اسْمَ رَبِّكَ الْأَعْلَى1
तसबीह करो, अपने सर्वाच्च रब के नाम की,
الَّذِي خَلَقَ فَسَوَّىٰ2
जिसने पैदा किया, फिर ठीक-ठाक किया,
وَالَّذِي قَدَّرَ فَهَدَىٰ3
जिसने निर्धारित किया, फिर मार्ग दिखाया,
وَالَّذِي أَخْرَجَ الْمَرْعَىٰ4
जिसने वनस्पति उगाई,
فَجَعَلَهُ غُثَاءً أَحْوَىٰ5
फिर उसे ख़ूब घना और हरा-भरा कर दिया
سَنُقْرِئُكَ فَلَا تَنْسَىٰ6
हम तुम्हें पढ़ा देंगे, फिर तुम भूलोगे नहीं
إِلَّا مَا شَاءَ اللَّهُ ۚ إِنَّهُ يَعْلَمُ الْجَهْرَ وَمَا يَخْفَىٰ7
बात यह है कि अल्लाह की इच्छा ही क्रियान्वित है। निश्चय ही वह जानता है खुले को भी और उसे भी जो छिपा रहे
وَنُيَسِّرُكَ لِلْيُسْرَىٰ8
हम तुम्हें सहज ढंग से उस चीज़ की पात्र बना देंगे जो सहज एवं मृदुल (आरामदायक) है
فَذَكِّرْ إِنْ نَفَعَتِ الذِّكْرَىٰ9
अतः नसीहत करो, यदि नसीहत लाभप्रद हो!
سَيَذَّكَّرُ مَنْ يَخْشَىٰ10
नसीहत हासिल कर लेगा जिसको डर होगा,
وَيَتَجَنَّبُهَا الْأَشْقَى11
किन्तु उससे कतराएगा वह अत्यन्त दुर्भाग्यवाला,
الَّذِي يَصْلَى النَّارَ الْكُبْرَىٰ12
जो बड़ी आग में पड़ेगा,
ثُمَّ لَا يَمُوتُ فِيهَا وَلَا يَحْيَىٰ13
फिर वह उसमें न मरेगा न जिएगा
قَدْ أَفْلَحَ مَنْ تَزَكَّىٰ14
सफल हो गया वह जिसने अपने आपको निखार लिया,
وَذَكَرَ اسْمَ رَبِّهِ فَصَلَّىٰ15
और अपने रब के नाम का स्मरण किया, अतः नमाज़ अदा की
بَلْ تُؤْثِرُونَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا16
नहीं, बल्कि तुम तो सांसारिक जीवन को प्राथमिकता देते हो,
وَالْآخِرَةُ خَيْرٌ وَأَبْقَىٰ17
हालाँकि आख़िरत अधिक उत्तम और शेष रहनेवाली है
إِنَّ هَـٰذَا لَفِي الصُّحُفِ الْأُولَىٰ18
निस्संदेह यही बात पहले की किताबों में भी है;
صُحُفِ إِبْرَاهِيمَ وَمُوسَىٰ19
इबराईम और मूसा की किताबों में
अल-ग़ाशिया
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ الْغَاشِيَةِ1
क्या तुम्हें उस छा जानेवाली की ख़बर पहुँची है?
وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ خَاشِعَةٌ2
उस दिन कितने ही चेहरे गिरे हुए होंगे,
عَامِلَةٌ نَاصِبَةٌ3
कठिन परिश्रम में पड़े, थके-हारे
تَصْلَىٰ نَارًا حَامِيَةً4
दहकती आग में प्रवेश करेंगे
تُسْقَىٰ مِنْ عَيْنٍ آنِيَةٍ5
खौलते हुए स्रोत से पिएँगे,
لَيْسَ لَهُمْ طَعَامٌ إِلَّا مِنْ ضَرِيعٍ6
उनके लिए कोई खाना न होगा सिवाय एक प्रकार के ज़री के,
لَا يُسْمِنُ وَلَا يُغْنِي مِنْ جُوعٍ7
जो न पुष्ट करे और न भूख मिटाए
وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ نَاعِمَةٌ8
उस दिन कितने ही चेहरे प्रफुल्लित और सौम्य होंगे,
لِسَعْيِهَا رَاضِيَةٌ9
अपने प्रयास पर प्रसन्न,
فِي جَنَّةٍ عَالِيَةٍ10
उच्च जन्नत में,
لَا تَسْمَعُ فِيهَا لَاغِيَةً11
जिसमें कोई व्यर्थ बात न सुनेंगे
فِيهَا عَيْنٌ جَارِيَةٌ12
उसमें स्रोत प्रवाहित होगा,
فِيهَا سُرُرٌ مَرْفُوعَةٌ13
उसमें ऊँची-ऊँची मसनदें होगी,
وَأَكْوَابٌ مَوْضُوعَةٌ14
प्याले ढंग से रखे होंगे,
وَنَمَارِقُ مَصْفُوفَةٌ15
क्रम से गाव तकिए लगे होंगे,
وَزَرَابِيُّ مَبْثُوثَةٌ16
और हर ओर क़ालीने बिछी होंगी
أَفَلَا يَنْظُرُونَ إِلَى الْإِبِلِ كَيْفَ خُلِقَتْ17
फिर क्या वे ऊँट की ओर नहीं देखते कि कैसा बनाया गया?
وَإِلَى السَّمَاءِ كَيْفَ رُفِعَتْ18
और आकाश की ओर कि कैसा ऊँचा किया गया?
وَإِلَى الْجِبَالِ كَيْفَ نُصِبَتْ19
और पहाड़ो की ओर कि कैसे खड़े किए गए?
وَإِلَى الْأَرْضِ كَيْفَ سُطِحَتْ20
और धरती की ओर कि कैसी बिछाई गई?
فَذَكِّرْ إِنَّمَا أَنْتَ مُذَكِّرٌ21
अच्छा तो नसीहत करो! तुम तो बस एक नसीहत करनेवाले हो
لَسْتَ عَلَيْهِمْ بِمُصَيْطِرٍ22
तुम उनपर कोई दरोग़ा नही हो
إِلَّا مَنْ تَوَلَّىٰ وَكَفَرَ23
किन्तु जिस किसी ने मुँह फेरा और इनकार किया,
فَيُعَذِّبُهُ اللَّهُ الْعَذَابَ الْأَكْبَرَ24
तो अल्लाह उसे बड़ी यातना देगा
إِنَّ إِلَيْنَا إِيَابَهُمْ25
निस्संदेह हमारी ओर ही है उनका लौटना,
ثُمَّ إِنَّ عَلَيْنَا حِسَابَهُمْ26
फिर हमारे ही ज़िम्मे है उनका हिसाब लेना
अल-फ़जर
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالْفَجْرِ1
साक्षी है उषाकाल,
وَلَيَالٍ عَشْرٍ2
साक्षी है दस रातें,
وَالشَّفْعِ وَالْوَتْرِ3
साक्षी है युग्म और अयुग्म,
وَاللَّيْلِ إِذَا يَسْرِ4
साक्षी है रात जब वह विदा हो रही हो
هَلْ فِي ذَٰلِكَ قَسَمٌ لِذِي حِجْرٍ5
क्या इसमें बुद्धिमान के लिए बड़ी गवाही है?
أَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِعَادٍ6
क्या तुमने देखा नहीं कि तुम्हारे रब ने क्या किया आद के साथ,
إِرَمَ ذَاتِ الْعِمَادِ7
स्तम्भों वाले 'इरम' के साथ?
الَّتِي لَمْ يُخْلَقْ مِثْلُهَا فِي الْبِلَادِ8
वे ऐसे थे जिनके सदृश बस्तियों में पैदा नहीं हुए
وَثَمُودَ الَّذِينَ جَابُوا الصَّخْرَ بِالْوَادِ9
और समूद के साथ, जिन्होंने घाटी में चट्टाने तराशी थी,
وَفِرْعَوْنَ ذِي الْأَوْتَادِ10
और मेखोवाले फ़िरऔन के साथ?
الَّذِينَ طَغَوْا فِي الْبِلَادِ11
वे लोग कि जिन्होंने देशो में सरकशी की,
فَأَكْثَرُوا فِيهَا الْفَسَادَ12
और उनमें बहुत बिगाड़ पैदा किया
فَصَبَّ عَلَيْهِمْ رَبُّكَ سَوْطَ عَذَابٍ13
अततः तुम्हारे रब ने उनपर यातना का कोड़ा बरसा दिया
إِنَّ رَبَّكَ لَبِالْمِرْصَادِ14
निस्संदेह तुम्हारा रब घात में रहता है
فَأَمَّا الْإِنْسَانُ إِذَا مَا ابْتَلَاهُ رَبُّهُ فَأَكْرَمَهُ وَنَعَّمَهُ فَيَقُولُ رَبِّي أَكْرَمَنِ15
किन्तु मनुष्य का हाल यह है कि जब उसका रब इस प्रकार उसकी परीक्षा करता है कि उसे प्रतिष्ठा और नेमत प्रदान करता है, तो वह कहता है, "मेरे रब ने मुझे प्रतिष्ठित किया।"
وَأَمَّا إِذَا مَا ابْتَلَاهُ فَقَدَرَ عَلَيْهِ رِزْقَهُ فَيَقُولُ رَبِّي أَهَانَنِ16
किन्तु जब कभी वह उसकी परीक्षा इस प्रकार करता है कि उसकी रोज़ी नपी-तुली कर देता है, तो वह कहता है, "मेरे रब ने मेरा अपमान किया।"
كَلَّا ۖ بَلْ لَا تُكْرِمُونَ الْيَتِيمَ17
कदापि नहीं, बल्कि तुम अनाथ का सम्मान नहीं करते,
وَلَا تَحَاضُّونَ عَلَىٰ طَعَامِ الْمِسْكِينِ18
और न मुहताज को खिलान पर एक-दूसरे को उभारते हो,
وَتَأْكُلُونَ التُّرَاثَ أَكْلًا لَمًّا19
और सारी मीरास समेटकर खा जाते हो,
وَتُحِبُّونَ الْمَالَ حُبًّا جَمًّا20
और धन से उत्कट प्रेम रखते हो
كَلَّا إِذَا دُكَّتِ الْأَرْضُ دَكًّا دَكًّا21
कुछ नहीं, जब धरती कूट-कूटकर चुर्ण-विचुर्ण कर दी जाएगी,
وَجَاءَ رَبُّكَ وَالْمَلَكُ صَفًّا صَفًّا22
और तुम्हारा रब और फ़रिश्ता (बन्दों की) एक-एक पंक्ति के पास आएगा,
وَجِيءَ يَوْمَئِذٍ بِجَهَنَّمَ ۚ يَوْمَئِذٍ يَتَذَكَّرُ الْإِنْسَانُ وَأَنَّىٰ لَهُ الذِّكْرَىٰ23
और जहन्नम को उस दिन लाया जाएगा, उस दिन मनुष्य चेतेगा, किन्तु कहाँ है उसके लिए लाभप्रद उस समय का चेतना?
يَقُولُ يَا لَيْتَنِي قَدَّمْتُ لِحَيَاتِي24
वह कहेगा, "ऐ काश! मैंने अपने जीवन के लिए कुछ करके आगे भेजा होता।"
فَيَوْمَئِذٍ لَا يُعَذِّبُ عَذَابَهُ أَحَدٌ25
फिर उस दिन कोई नहीं जो उसकी जैसी यातना दे,
وَلَا يُوثِقُ وَثَاقَهُ أَحَدٌ26
और कोई नहीं जो उसकी जकड़बन्द की तरह बाँधे
يَا أَيَّتُهَا النَّفْسُ الْمُطْمَئِنَّةُ27
"ऐ संतुष्ट आत्मा!
ارْجِعِي إِلَىٰ رَبِّكِ رَاضِيَةً مَرْضِيَّةً28
लौट अपने रब की ओर, इस तरह कि तू उससे राज़ी है वह तुझसे राज़ी है। अतः मेरे बन्दों में सम्मिलित हो जा। -
فَادْخُلِي فِي عِبَادِي29
अतः मेरे बन्दों में सम्मिलित हो जा
وَادْخُلِي جَنَّتِي30
और प्रवेश कर मेरी जन्नत में।"
अल-बलद
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
لَا أُقْسِمُ بِهَـٰذَا الْبَلَدِ1
सुनो! मैं क़सम खाता हूँ इस नगर (मक्का) की -
وَأَنْتَ حِلٌّ بِهَـٰذَا الْبَلَدِ2
हाल यह है कि तुम इसी नगर में रह रहे हो -
وَوَالِدٍ وَمَا وَلَدَ3
और बाप और उसकी सन्तान की,
لَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنْسَانَ فِي كَبَدٍ4
निस्संदेह हमने मनुष्य को पूर्ण मशक़्क़त (अनुकूलता और सन्तुलन) के साथ पैदा किया
أَيَحْسَبُ أَنْ لَنْ يَقْدِرَ عَلَيْهِ أَحَدٌ5
क्या वह समझता है कि उसपर किसी का बस न चलेगा?
يَقُولُ أَهْلَكْتُ مَالًا لُبَدًا6
कहता है कि "मैंने ढेरो माल उड़ा दिया।"
أَيَحْسَبُ أَنْ لَمْ يَرَهُ أَحَدٌ7
क्या वह समझता है कि किसी ने उसे देखा नहीं?
أَلَمْ نَجْعَلْ لَهُ عَيْنَيْنِ8
क्या हमने उसे नहीं दी दो आँखें,
وَلِسَانًا وَشَفَتَيْنِ9
और एक ज़बान और दो होंठ?
وَهَدَيْنَاهُ النَّجْدَيْنِ10
और क्या ऐसा नहीं है कि हमने दिखाई उसे दो ऊँचाइयाँ?
فَلَا اقْتَحَمَ الْعَقَبَةَ11
किन्तु वह तो हुमककर घाटी में से गुजंरा ही नहीं और (न उसने मुक्ति का मार्ग पाया)
وَمَا أَدْرَاكَ مَا الْعَقَبَةُ12
और तुम्हें क्या मालूम कि वह घाटी क्या है!
فَكُّ رَقَبَةٍ13
किसी गरदन का छुड़ाना
أَوْ إِطْعَامٌ فِي يَوْمٍ ذِي مَسْغَبَةٍ14
या भूख के दिन खाना खिलाना
يَتِيمًا ذَا مَقْرَبَةٍ15
किसी निकटवर्ती अनाथ को,
أَوْ مِسْكِينًا ذَا مَتْرَبَةٍ16
या धूल-धूसरित मुहताज को;
ثُمَّ كَانَ مِنَ الَّذِينَ آمَنُوا وَتَوَاصَوْا بِالصَّبْرِ وَتَوَاصَوْا بِالْمَرْحَمَةِ17
फिर यह कि वह उन लोगों में से हो जो ईमान लाए और जिन्होंने एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की , और एक-दूसरे को दया की ताकीद की
أُولَـٰئِكَ أَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ18
वही लोग है सौभाग्यशाली
وَالَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِنَا هُمْ أَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ19
रहे वे लोग जिन्होंने हमारी आयातों का इनकार किया, वे दुर्भाग्यशाली लोग है
عَلَيْهِمْ نَارٌ مُؤْصَدَةٌ20
उनपर आग होगी, जिसे बन्द कर दिया गया होगा
अश-शम्स
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالشَّمْسِ وَضُحَاهَا1
साक्षी है सूर्य और उसकी प्रभा,
وَالْقَمَرِ إِذَا تَلَاهَا2
और चन्द्रमा जबकि वह उनके पीछे आए,
وَالنَّهَارِ إِذَا جَلَّاهَا3
और दिन, जबकि वह उसे प्रकट कर दे,
وَاللَّيْلِ إِذَا يَغْشَاهَا4
और रात, जबकि वह उसको ढाँक ले
وَالسَّمَاءِ وَمَا بَنَاهَا5
और आकाश और जैसा कुछ उसे उठाया,
وَالْأَرْضِ وَمَا طَحَاهَا6
और धरती और जैसा कुछ उसे बिछाया
وَنَفْسٍ وَمَا سَوَّاهَا7
और आत्मा और जैसा कुछ उसे सँवारा
فَأَلْهَمَهَا فُجُورَهَا وَتَقْوَاهَا8
फिर उसके दिल में डाली उसकी बुराई और उसकी परहेज़गारी
قَدْ أَفْلَحَ مَنْ زَكَّاهَا9
सफल हो गया जिसने उसे विकसित किया
وَقَدْ خَابَ مَنْ دَسَّاهَا10
और असफल हुआ जिसने उसे दबा दिया
كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِطَغْوَاهَا11
समूद ने अपनी सरकशी से झुठलाया,
إِذِ انْبَعَثَ أَشْقَاهَا12
जब उनमें का सबसे बड़ा दुर्भाग्यशाली उठ खड़ा हुआ,
فَقَالَ لَهُمْ رَسُولُ اللَّهِ نَاقَةَ اللَّهِ وَسُقْيَاهَا13
तो अल्लाह के रसूल ने उनसे कहा, "सावधान, अल्लाह की ऊँटनी और उसके पिलाने (की बारी) से।"
فَكَذَّبُوهُ فَعَقَرُوهَا فَدَمْدَمَ عَلَيْهِمْ رَبُّهُمْ بِذَنْبِهِمْ فَسَوَّاهَا14
किन्तु उन्होंने उसे झुठलाया और उस ऊँटनी की कूचें काट डाली। अन्ततः उनके रब ने उनके गुनाह के कारण उनपर तबाही डाल दी और उन्हें बराबर कर दिया
وَلَا يَخَافُ عُقْبَاهَا15
और उसे उसके परिणाम का कोई भय नहीं
अल-लैल
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَاللَّيْلِ إِذَا يَغْشَىٰ1
साक्षी है रात जबकि वह छा जाए,
وَالنَّهَارِ إِذَا تَجَلَّىٰ2
और दिन जबकि वह प्रकाशमान हो,
وَمَا خَلَقَ الذَّكَرَ وَالْأُنْثَىٰ3
और नर और मादा का पैदा करना,
إِنَّ سَعْيَكُمْ لَشَتَّىٰ4
कि तुम्हारा प्रयास भिन्न-भिन्न है
فَأَمَّا مَنْ أَعْطَىٰ وَاتَّقَىٰ5
तो जिस किसी ने दिया और डर रखा,
وَصَدَّقَ بِالْحُسْنَىٰ6
और अच्छी चीज़ की पुष्टि की,
فَسَنُيَسِّرُهُ لِلْيُسْرَىٰ7
हम उस सहज ढंग से उस चीज का पात्र बना देंगे, जो सहज और मृदुल (सुख-साध्य) है
وَأَمَّا مَنْ بَخِلَ وَاسْتَغْنَىٰ8
रहा वह व्यक्ति जिसने कंजूसी की और बेपरवाही बरती,
وَكَذَّبَ بِالْحُسْنَىٰ9
और अच्छी चीज़ को झुठला दिया,
فَسَنُيَسِّرُهُ لِلْعُسْرَىٰ10
हम उसे सहज ढंग से उस चीज़ का पात्र बना देंगे, जो कठिन चीज़ (कष्ट-साध्य) है
وَمَا يُغْنِي عَنْهُ مَالُهُ إِذَا تَرَدَّىٰ11
और उसका माल उसके कुछ काम न आएगा, जब वह (सिर के बल) खड्ड में गिरेगा
إِنَّ عَلَيْنَا لَلْهُدَىٰ12
निस्संदेह हमारे ज़िम्मे है मार्ग दिखाना
وَإِنَّ لَنَا لَلْآخِرَةَ وَالْأُولَىٰ13
और वास्तव में हमारे अधिकार में है आख़िरत और दुनिया भी
فَأَنْذَرْتُكُمْ نَارًا تَلَظَّىٰ14
अतः मैंने तुम्हें दहकती आग से सावधान कर दिया
لَا يَصْلَاهَا إِلَّا الْأَشْقَى15
इसमें बस वही पड़ेगा जो बड़ा ही अभागा होगा,
الَّذِي كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ16
जिसने झुठलाया और मुँह फेरा
وَسَيُجَنَّبُهَا الْأَتْقَى17
और उससे बच जाएगा वह अत्यन्त परहेज़गार व्यक्ति,
الَّذِي يُؤْتِي مَالَهُ يَتَزَكَّىٰ18
जो अपना माल देकर अपने आपको निखारता है
وَمَا لِأَحَدٍ عِنْدَهُ مِنْ نِعْمَةٍ تُجْزَىٰ19
और हाल यह है कि किसी का उसपर उपकार नहीं कि उसका बदला दिया जा रहा हो,
إِلَّا ابْتِغَاءَ وَجْهِ رَبِّهِ الْأَعْلَىٰ20
बल्कि इससे अभीष्ट केवल उसके अपने उच्च रब के मुख (प्रसन्नता) की चाह है
وَلَسَوْفَ يَرْضَىٰ21
और वह शीघ्र ही राज़ी हो जाएगा
अज़-ज़ुहा
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالضُّحَىٰ1
साक्षी है चढ़ता दिन,
وَاللَّيْلِ إِذَا سَجَىٰ2
और रात जबकि उसका सन्नाटा छा जाए
مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَمَا قَلَىٰ3
तुम्हारे रब ने तुम्हें न तो विदा किया और न वह बेज़ार (अप्रसन्न) हुआ
وَلَلْآخِرَةُ خَيْرٌ لَكَ مِنَ الْأُولَىٰ4
और निश्चय ही बाद में आनेवाली (अवधि) तुम्हारे लिए पहलेवाली से उत्तम है
وَلَسَوْفَ يُعْطِيكَ رَبُّكَ فَتَرْضَىٰ5
और शीघ्र ही तुम्हारा रब तुम्हें प्रदान करेगा कि तुम प्रसन्न हो जाओगे
أَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيمًا فَآوَىٰ6
क्या ऐसा नहीं कि उसने तुम्हें अनाथ पाया तो ठिकाना दिया?
وَوَجَدَكَ ضَالًّا فَهَدَىٰ7
और तुम्हें मार्ग से अपरिचित पाया तो मार्ग दिखाया?
وَوَجَدَكَ عَائِلًا فَأَغْنَىٰ8
और तुम्हें निर्धन पाया तो समृद्ध कर दिया?
فَأَمَّا الْيَتِيمَ فَلَا تَقْهَرْ9
अतः जो अनाथ हो उसे मत दबाना,
وَأَمَّا السَّائِلَ فَلَا تَنْهَرْ10
और जो माँगता हो उसे न झिझकना,
وَأَمَّا بِنِعْمَةِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ11
और जो तुम्हें रब की अनुकम्पा है, उसे बयान करते रहो
अल-इन्शिराह
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
أَلَمْ نَشْرَحْ لَكَ صَدْرَكَ1
क्या ऐसा नहीं कि हमने तुम्हारा सीना तुम्हारे लिए खोल दिया?
وَوَضَعْنَا عَنْكَ وِزْرَكَ2
और तुमपर से तुम्हारा बोझ उतार दिया,
الَّذِي أَنْقَضَ ظَهْرَكَ3
जो तुम्हारी कमर तोड़े डाल रहा था?
وَرَفَعْنَا لَكَ ذِكْرَكَ4
और तुम्हारे लिए तुम्हारे ज़िक्र को ऊँचा कर दिया?
فَإِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا5
अतः निस्संदेह कठिनाई के साथ आसानी भी है
إِنَّ مَعَ الْعُسْرِ يُسْرًا6
निस्संदेह कठिनाई के साथ आसानी भी है
فَإِذَا فَرَغْتَ فَانْصَبْ7
अतः जब निवृत हो तो परिश्रम में लग जाओ,
وَإِلَىٰ رَبِّكَ فَارْغَبْ8
और अपने रब से लौ लगाओ
अत-तिन
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالتِّينِ وَالزَّيْتُونِ1
साक्षी है तीन और ज़ैतून
وَطُورِ سِينِينَ2
और तूर सीनीन,
وَهَـٰذَا الْبَلَدِ الْأَمِينِ3
और यह शान्तिपूर्ण भूमि (मक्का)
لَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنْسَانَ فِي أَحْسَنِ تَقْوِيمٍ4
निस्संदेह हमने मनुष्य को सर्वोत्तम संरचना के साथ पैदा किया
ثُمَّ رَدَدْنَاهُ أَسْفَلَ سَافِلِينَ5
फिर हमने उसे निकृष्टतम दशा की ओर लौटा दिया, जबकि वह स्वयं गिरनेवाला बना
إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَلَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ6
सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और जिन्होंने अच्छे कर्म किए, तो उनके लिए कभी न समाप्त होनेवाला बदला है
فَمَا يُكَذِّبُكَ بَعْدُ بِالدِّينِ7
अब इसके बाद क्या है, जो बदले के विषय में तुम्हें झुठलाए?
أَلَيْسَ اللَّهُ بِأَحْكَمِ الْحَاكِمِينَ8
क्या अल्लाह सब हाकिमों से बड़ा हाकिम नहीं हैं?
अल-अलक़
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ1
पढ़ो, अपने रब के नाम के साथ जिसने पैदा किया,
خَلَقَ الْإِنْسَانَ مِنْ عَلَقٍ2
पैदा किया मनुष्य को जमे हुए ख़ून के एक लोथड़े से
اقْرَأْ وَرَبُّكَ الْأَكْرَمُ3
पढ़ो, हाल यह है कि तुम्हारा रब बड़ा ही उदार है,
الَّذِي عَلَّمَ بِالْقَلَمِ4
जिसने क़लम के द्वारा शिक्षा दी,
عَلَّمَ الْإِنْسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ5
मनुष्य को वह ज्ञान प्रदान किया जिस वह न जानता था
كَلَّا إِنَّ الْإِنْسَانَ لَيَطْغَىٰ6
कदापि नहीं, मनुष्य सरकशी करता है,
أَنْ رَآهُ اسْتَغْنَىٰ7
इसलिए कि वह अपने आपको आत्मनिर्भर देखता है
إِنَّ إِلَىٰ رَبِّكَ الرُّجْعَىٰ8
निश्चय ही तुम्हारे रब ही की ओर पलटना है
أَرَأَيْتَ الَّذِي يَنْهَىٰ9
क्या तुमने देखा उस व्यक्ति को
عَبْدًا إِذَا صَلَّىٰ10
जो एक बन्दे को रोकता है, जब वह नमाज़ अदा करता है? -
أَرَأَيْتَ إِنْ كَانَ عَلَى الْهُدَىٰ11
तुम्हारा क्या विचार है? यदि वह सीधे मार्ग पर हो,
أَوْ أَمَرَ بِالتَّقْوَىٰ12
या परहेज़गारी का हुक्म दे (उसके अच्छा होने में क्या संदेह है)
أَرَأَيْتَ إِنْ كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ13
तुम्हारा क्या विचार है? यदि उस (रोकनेवाले) ने झुठलाया और मुँह मोड़ा (तो उसके बुरा होने में क्या संदेह है) -
أَلَمْ يَعْلَمْ بِأَنَّ اللَّهَ يَرَىٰ14
क्या उसने नहीं जाना कि अल्लाह देख रहा है?
كَلَّا لَئِنْ لَمْ يَنْتَهِ لَنَسْفَعًا بِالنَّاصِيَةِ15
कदापि नहीं, यदि वह बाज़ न आया तो हम चोटी पकड़कर घसीटेंगे,
نَاصِيَةٍ كَاذِبَةٍ خَاطِئَةٍ16
झूठी, ख़ताकार चोटी
فَلْيَدْعُ نَادِيَهُ17
अब बुला ले वह अपनी मजलिस को!
سَنَدْعُ الزَّبَانِيَةَ18
हम भी बुलाए लेते है सिपाहियों को
كَلَّا لَا تُطِعْهُ وَاسْجُدْ وَاقْتَرِبْ ۩19
कदापि नहीं, उसकी बात न मानो और सजदे करते और क़रीब होते रहो
अल-क़द्र
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ1
हमने इसे क़द्र की रात में अवतरित किया
وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ2
और तुम्हें क्या मालूम कि क़द्र की रात क्या है?
لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِنْ أَلْفِ شَهْرٍ3
क़द्र की रात उत्तम है हज़ार महीनों से,
تَنَزَّلُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِمْ مِنْ كُلِّ أَمْرٍ4
उसमें फ़रिश्तें और रूह हर महत्वपूर्ण मामलें में अपने रब की अनुमति से उतरते है
سَلَامٌ هِيَ حَتَّىٰ مَطْلَعِ الْفَجْرِ5
वह रात पूर्णतः शान्ति और सलामती है, उषाकाल के उदय होने तक
अल-बैय्यिना
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
لَمْ يَكُنِ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ مُنْفَكِّينَ حَتَّىٰ تَأْتِيَهُمُ الْبَيِّنَةُ1
किताबवालों और मुशरिकों (बहुदेववादियों) में से जिन लोगों ने इनकार किया वे कुफ़्र (इनकार) से अलग होनेवाले नहीं जब तक कि उनके पास स्पष्ट प्रमाण न आ जाए;
رَسُولٌ مِنَ اللَّهِ يَتْلُو صُحُفًا مُطَهَّرَةً2
अल्लाह की ओर से एक रसूल पवित्र पृष्ठों को पढ़ता हुआ;
فِيهَا كُتُبٌ قَيِّمَةٌ3
जिनमें ठोस और ठीक आदेश अंकित हों,
وَمَا تَفَرَّقَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ إِلَّا مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَةُ4
हालाँकि जिन्हें किताब दी गई थी। वे इसके पश्चात फूट में पड़े कि उनके पास स्पष्ट प्रमाण आ चुका था
وَمَا أُمِرُوا إِلَّا لِيَعْبُدُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ حُنَفَاءَ وَيُقِيمُوا الصَّلَاةَ وَيُؤْتُوا الزَّكَاةَ ۚ وَذَٰلِكَ دِينُ الْقَيِّمَةِ5
और उन्हें आदेश भी बस यही दिया गया था कि वे अल्लाह की बन्दगी करे निष्ठा एवं विनयशीलता को उसके लिए विशिष्ट करके, बिलकुल एकाग्र होकर, और नमाज़ की पाबन्दी करें और ज़कात दे। और यही है सत्यवादी समुदाय का धर्म
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ فِي نَارِ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ أُولَـٰئِكَ هُمْ شَرُّ الْبَرِيَّةِ6
निस्संदेह किताबवालों और मुशरिकों (बहुदेववादियों) में से जिन लोगों ने इनकार किया है, वे जहन्नम की आग में पड़ेगे; उसमें सदैव रहने के लिए। वही पैदा किए गए प्राणियों में सबसे बुरे है
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَـٰئِكَ هُمْ خَيْرُ الْبَرِيَّةِ7
किन्तु निश्चय ही वे लोग, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए पैदा किए गए प्राणियों में सबसे अच्छे है
جَزَاؤُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۖ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ ۚ ذَٰلِكَ لِمَنْ خَشِيَ رَبَّهُ8
उनका बदला उनके अपने रब के पास सदाबहार बाग़ है, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे उससे राज़ी हुए। यह कुछ उसके लिए है, जो अपने रब से डरा
अज़-ज़लज़ला
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِذَا زُلْزِلَتِ الْأَرْضُ زِلْزَالَهَا1
जब धरती इस प्रकार हिला डाली जाएगी जैसा उसे हिलाया जाना है,
وَأَخْرَجَتِ الْأَرْضُ أَثْقَالَهَا2
और धरती अपने बोझ बाहर निकाल देगी,
وَقَالَ الْإِنْسَانُ مَا لَهَا3
और मनुष्य कहेगा, "उसे क्या हो गया है?"
يَوْمَئِذٍ تُحَدِّثُ أَخْبَارَهَا4
उस दिन वह अपना वृत्तांत सुनाएगी,
بِأَنَّ رَبَّكَ أَوْحَىٰ لَهَا5
इस कारण कि तुम्हारे रब ने उसे यही संकेत किया होगा
يَوْمَئِذٍ يَصْدُرُ النَّاسُ أَشْتَاتًا لِيُرَوْا أَعْمَالَهُمْ6
उस दिन लोग अलग-अलग निकलेंगे, ताकि उन्हें कर्म दिखाए जाएँ
فَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَرَهُ7
अतः जो कोई कणभर भी नेकी करेगा, वह उसे देख लेगा,
وَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَرَهُ8
और जो कोई कणभर भी बुराई करेगा, वह भी उसे देख लेगा
अल-आदियात
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالْعَادِيَاتِ ضَبْحًا1
साक्षी है जो हाँफते-फुँकार मारते हुए दौड़ते है,
فَالْمُورِيَاتِ قَدْحًا2
फिर ठोकरों से चिनगारियाँ निकालते है,
فَالْمُغِيرَاتِ صُبْحًا3
फिर सुबह सवेरे धावा मारते होते है,
فَأَثَرْنَ بِهِ نَقْعًا4
उसमें उठाया उन्होंने गर्द-गुबार
فَوَسَطْنَ بِهِ جَمْعًا5
और इसी हाल में वे दल में जा घुसे
إِنَّ الْإِنْسَانَ لِرَبِّهِ لَكَنُودٌ6
निस्संदेह मनुष्य अपने रब का बड़ा अकृतज्ञ हैं,
وَإِنَّهُ عَلَىٰ ذَٰلِكَ لَشَهِيدٌ7
और निश्चय ही वह स्वयं इसपर गवाह है!
وَإِنَّهُ لِحُبِّ الْخَيْرِ لَشَدِيدٌ8
और निश्चय ही वह धन के मोह में बड़ा दृढ़ है
أَفَلَا يَعْلَمُ إِذَا بُعْثِرَ مَا فِي الْقُبُورِ9
तो क्या वह जानता नहीं जब उगवला लिया जाएगा तो क़ब्रों में है
وَحُصِّلَ مَا فِي الصُّدُورِ10
और स्पष्ट अनावृत्त कर दिया जाएगा तो कुछ सीनों में है
إِنَّ رَبَّهُمْ بِهِمْ يَوْمَئِذٍ لَخَبِيرٌ11
निस्संदेह उनका रब उस दिन उनकी पूरी ख़बर रखता होगा
अल-क़ारिया
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
الْقَارِعَةُ1
वह खड़खड़ानेवाली!
مَا الْقَارِعَةُ2
क्या है वह खड़खड़ानेवाली?
وَمَا أَدْرَاكَ مَا الْقَارِعَةُ3
और तुम्हें क्या मालूम कि क्या है वह खड़खड़ानेवाली?
يَوْمَ يَكُونُ النَّاسُ كَالْفَرَاشِ الْمَبْثُوثِ4
जिस दिन लोग बिखरे हुए पतंगों के सदृश हो जाएँगें,
وَتَكُونُ الْجِبَالُ كَالْعِهْنِ الْمَنْفُوشِ5
और पहाड़ के धुन के हुए रंग-बिरंग के ऊन जैसे हो जाएँगे
فَأَمَّا مَنْ ثَقُلَتْ مَوَازِينُهُ6
फिर जिस किसी के वज़न भारी होंगे,
فَهُوَ فِي عِيشَةٍ رَاضِيَةٍ7
वह मनभाते जीवन में रहेगा
وَأَمَّا مَنْ خَفَّتْ مَوَازِينُهُ8
और रहा वह व्यक्ति जिसके वज़न हलके होंगे,
فَأُمُّهُ هَاوِيَةٌ9
उसकी माँ होगी गहरा खड्ड
وَمَا أَدْرَاكَ مَا هِيَهْ10
और तुम्हें क्या मालूम कि वह क्या है?
نَارٌ حَامِيَةٌ11
आग है दहकती हुई
अत-तकासुर
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
أَلْهَاكُمُ التَّكَاثُرُ1
तुम्हें एक-दूसरे के मुक़ाबले में बहुतायत के प्रदर्शन और घमंड ने ग़फ़़लत में डाल रखा है,
حَتَّىٰ زُرْتُمُ الْمَقَابِرَ2
यहाँ तक कि तुम क़ब्रिस्तानों में पहुँच गए
كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ3
कुछ नहीं, तुम शीघ्र ही जान लोगे
ثُمَّ كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ4
फिर, कुछ नहीं, तुम्हें शीघ्र ही मालूम हो जाएगा -
كَلَّا لَوْ تَعْلَمُونَ عِلْمَ الْيَقِينِ5
कुछ नहीं, अगर तुम विश्वसनीय ज्ञान के रूप में जान लो! (तो तुम धन-दौलत के पुजारी न बनो) -
لَتَرَوُنَّ الْجَحِيمَ6
अवश्य ही तुम भड़कती आग से दो-चार होगे
ثُمَّ لَتَرَوُنَّهَا عَيْنَ الْيَقِينِ7
फिर सुनो, उसे अवश्य देखोगे इस दशा में कि वह यथावत विश्वास होगा
ثُمَّ لَتُسْأَلُنَّ يَوْمَئِذٍ عَنِ النَّعِيمِ8
फिर निश्चय ही उस दिन तुमसे नेमतों के बारे में पूछा जाएगा
अल-अस्र
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالْعَصْرِ1
गवाह है गुज़रता समय,
إِنَّ الْإِنْسَانَ لَفِي خُسْرٍ2
कि वास्तव में मनुष्य घाटे में है,
إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَتَوَاصَوْا بِالْحَقِّ وَتَوَاصَوْا بِالصَّبْرِ3
सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए और एक-दूसरे को हक़ की ताकीद की, और एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की
अल-हुमज़ा
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَيْلٌ لِكُلِّ هُمَزَةٍ لُمَزَةٍ1
तबाही है हर कचो के लगानेवाले, ऐब निकालनेवाले के लिए,
الَّذِي جَمَعَ مَالًا وَعَدَّدَهُ2
जो माल इकट्ठा करता और उसे गिनता रहा
يَحْسَبُ أَنَّ مَالَهُ أَخْلَدَهُ3
समझता है कि उसके माल ने उसे अमर कर दिया
كَلَّا ۖ لَيُنْبَذَنَّ فِي الْحُطَمَةِ4
कदापि नहीं, वह चूर-चूर कर देनेवाली में फेंक दिया जाएगा,
وَمَا أَدْرَاكَ مَا الْحُطَمَةُ5
और तुम्हें क्या मालूम कि वह चूर-चूर कर देनेवाली क्या है?
نَارُ اللَّهِ الْمُوقَدَةُ6
वह अल्लाह की दहकाई हुई आग है,
الَّتِي تَطَّلِعُ عَلَى الْأَفْئِدَةِ7
जो झाँक लेती है दिलों को
إِنَّهَا عَلَيْهِمْ مُؤْصَدَةٌ8
वह उनपर ढाँककर बन्द कर दी गई होगी,
فِي عَمَدٍ مُمَدَّدَةٍ9
लम्बे-लम्बे स्तम्भों में
अल-फ़ील
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
أَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِأَصْحَابِ الْفِيلِ1
क्या तुमने देखा नहीं कि तुम्हारे रब ने हाथीवालों के साथ कैसा बरताव किया?
أَلَمْ يَجْعَلْ كَيْدَهُمْ فِي تَضْلِيلٍ2
क्या उसने उनकी चाल को अकारथ नहीं कर दिया?
وَأَرْسَلَ عَلَيْهِمْ طَيْرًا أَبَابِيلَ3
और उनपर नियुक्त होने को झुंड के झुंड पक्षी भेजे,
تَرْمِيهِمْ بِحِجَارَةٍ مِنْ سِجِّيلٍ4
उनपर कंकरीले पत्थर मार रहे थे
فَجَعَلَهُمْ كَعَصْفٍ مَأْكُولٍ5
अन्ततः उन्हें ऐसा कर दिया, जैसे खाने का भूसा हो
क़ुरैश
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
لِإِيلَافِ قُرَيْشٍ1
कितना है क़ुरैश को लगाए और परचाए रखना,
إِيلَافِهِمْ رِحْلَةَ الشِّتَاءِ وَالصَّيْفِ2
लगाए और परचाए रखना उन्हें जाड़े और गर्मी की यात्रा से
فَلْيَعْبُدُوا رَبَّ هَـٰذَا الْبَيْتِ3
अतः उन्हें चाहिए कि इस घर (काबा) के रब की बन्दगी करे,
الَّذِي أَطْعَمَهُمْ مِنْ جُوعٍ وَآمَنَهُمْ مِنْ خَوْفٍ4
जिसने उन्हें खिलाकर भूख से बचाया और निश्चिन्तता प्रदान करके भय से बचाया
अल-माउं
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ1
क्या तुमने उसे देखा जो दीन को झुठलाता है?
فَذَٰلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ2
वही तो है जो अनाथ को धक्के देता है,
وَلَا يَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ الْمِسْكِينِ3
और मुहताज के खिलाने पर नहीं उकसाता
فَوَيْلٌ لِلْمُصَلِّينَ4
अतः तबाही है उन नमाज़ियों के लिए,
الَّذِينَ هُمْ عَنْ صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ5
जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल (असावधान) हैं,
الَّذِينَ هُمْ يُرَاءُونَ6
जो दिखावे के लिए कार्य करते हैं,
وَيَمْنَعُونَ الْمَاعُونَ7
और साधारण बरतने की चीज़ भी किसी को नहीं देते
अल-कौसर
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِنَّا أَعْطَيْنَاكَ الْكَوْثَرَ1
निश्चय ही हमने तुम्हें कौसर प्रदान किया,
فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَانْحَرْ2
अतः तुम अपने रब ही के लिए नमाज़ पढ़ो और (उसी के दिन) क़़ुरबानी करो
إِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْأَبْتَرُ3
निस्संदेह तुम्हारा जो वैरी है वही जड़कटा है
अल-काफ़िरून
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
قُلْ يَا أَيُّهَا الْكَافِرُونَ1
कह दो, "ऐ इनकार करनेवालो!"
لَا أَعْبُدُ مَا تَعْبُدُونَ2
मैं वैसी बन्दगी नहीं करूँगा जैसी बन्दगी तुम करते हो,
وَلَا أَنْتُمْ عَابِدُونَ مَا أَعْبُدُ3
और न तुम वैसी बन्दगी करनेवाले हो जैसी बन्दगी में करता हूँ
وَلَا أَنَا عَابِدٌ مَا عَبَدْتُمْ4
और न मैं वैसी बन्दगी करनेवाला हूँ जैसी बन्दगी तुमने की है
وَلَا أَنْتُمْ عَابِدُونَ مَا أَعْبُدُ5
और न तुम वैसी बन्दगी करनेवाला हुए जैसी बन्दगी मैं करता हूँ
لَكُمْ دِينُكُمْ وَلِيَ دِينِ6
तुम्हारे लिए तूम्हारा धर्म है और मेरे लिए मेरा धर्म!"
अन-नस्र
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِذَا جَاءَ نَصْرُ اللَّهِ وَالْفَتْحُ1
जब अल्लाह की सहायता आ जाए और विजय प्राप्त हो,
وَرَأَيْتَ النَّاسَ يَدْخُلُونَ فِي دِينِ اللَّهِ أَفْوَاجًا2
और तुम लोगों को देखो कि वे अल्लाह के दीन (धर्म) में गिरोह के गिरोह प्रवेश कर रहे है,
فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَاسْتَغْفِرْهُ ۚ إِنَّهُ كَانَ تَوَّابًا3
तो अपने रब की प्रशंसा करो और उससे क्षमा चाहो। निस्संदेह वह बड़ा तौबा क़बूल करनेवाला है
अल-मसद
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
تَبَّتْ يَدَا أَبِي لَهَبٍ وَتَبَّ1
टूट गए अबू लहब के दोनों हाथ और वह स्वयं भी विनष्ट हो गया!
مَا أَغْنَىٰ عَنْهُ مَالُهُ وَمَا كَسَبَ2
न उसका माल उसके काम आया और न वह कुछ जो उसने कमाया
سَيَصْلَىٰ نَارًا ذَاتَ لَهَبٍ3
वह शीघ्र ही प्रज्वलित भड़कती आग में पड़ेगा,
وَامْرَأَتُهُ حَمَّالَةَ الْحَطَبِ4
और उसकी स्त्री भी ईधन लादनेवाली,
فِي جِيدِهَا حَبْلٌ مِنْ مَسَدٍ5
उसकी गरदन में खजूर के रेसों की बटी हुई रस्सी पड़ी है
अल-इख़लास
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ1
कहो, "वह अल्लाह यकता है,
اللَّهُ الصَّمَدُ2
अल्लाह निरपेक्ष (और सर्वाधार) है,
لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ3
न वह जनिता है और न जन्य,
وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُوًا أَحَدٌ4
और न कोई उसका समकक्ष है।"
अल-फ़लक
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ1
कहो, "मैं शरण लेता हूँ, प्रकट करनेवाले रब की,
مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ2
जो कुछ भी उसने पैदा किया उसकी बुराई से,
وَمِنْ شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ3
और अँधेरे की बुराई से जबकि वह घुस आए,
وَمِنْ شَرِّ النَّفَّاثَاتِ فِي الْعُقَدِ4
और गाँठो में फूँक मारने-वालों की बुराई से,
وَمِنْ شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ5
और ईर्ष्यालु की बुराई से, जब वह ईर्ष्या करे।"
अन्नास
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ1
कहो, "मैं शरण लेता हूँ मनुष्यों के रब की
مَلِكِ النَّاسِ2
मनुष्यों के सम्राट की
إِلَـٰهِ النَّاسِ3
मनुष्यों के उपास्य की
مِنْ شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ4
वसवसा डालनेवाले, खिसक जानेवाले की बुराई से
الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ5
जो मनुष्यों के सीनों में वसवसा डालता हैं
مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ6
जो जिन्नों में से भी होता हैं और मनुष्यों में से भी