अल-मुल्क
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
تَبَارَكَ الَّذِي بِيَدِهِ الْمُلْكُ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ1
बड़ा बरकतवाला है वह जिसके हाथ में सारी बादशाही है और वह हर चीज़ की सामर्थ्य रखता है। -
الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْغَفُورُ2
जिसने पैदा किया मृत्यु और जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुममें कर्म की दृष्टि से कौन सबसे अच्छा है। वह प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशील है। -
الَّذِي خَلَقَ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا ۖ مَا تَرَىٰ فِي خَلْقِ الرَّحْمَـٰنِ مِنْ تَفَاوُتٍ ۖ فَارْجِعِ الْبَصَرَ هَلْ تَرَىٰ مِنْ فُطُورٍ3
जिसने ऊपर-तले सात आकाश बनाए। तुम रहमान की रचना में कोई असंगति और विषमता न देखोगे। फिर नज़र डालो, "क्या तुम्हें कोई बिगाड़ दिखाई देता है?"
ثُمَّ ارْجِعِ الْبَصَرَ كَرَّتَيْنِ يَنْقَلِبْ إِلَيْكَ الْبَصَرُ خَاسِئًا وَهُوَ حَسِيرٌ4
फिर दोबारा नज़र डालो। निगाह रद्द होकर और थक-हारकर तुम्हारी ओर पलट आएगी
وَلَقَدْ زَيَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْيَا بِمَصَابِيحَ وَجَعَلْنَاهَا رُجُومًا لِلشَّيَاطِينِ ۖ وَأَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابَ السَّعِيرِ5
हमने निकटवर्ती आकाश को दीपों से सजाया और उन्हें शैतानों के मार भगाने का साधन बनाया और उनके लिए हमने भड़कती आग की यातना तैयार कर रखी है
وَلِلَّذِينَ كَفَرُوا بِرَبِّهِمْ عَذَابُ جَهَنَّمَ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ6
जिन लोगों ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया उनके लिए जहन्नम की यातना है और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है
إِذَا أُلْقُوا فِيهَا سَمِعُوا لَهَا شَهِيقًا وَهِيَ تَفُورُ7
जब वे उसमें डाले जाएँगे तो उसकी दहाड़ने की भयानक आवाज़ सुनेंगे और वह प्रकोप से बिफर रही होगी।
تَكَادُ تَمَيَّزُ مِنَ الْغَيْظِ ۖ كُلَّمَا أُلْقِيَ فِيهَا فَوْجٌ سَأَلَهُمْ خَزَنَتُهَا أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَذِيرٌ8
ऐसा प्रतीत होगा कि प्रकोप के कारण अभी फट पड़ेगी। हर बार जब भी कोई समूह उसमें डाला जाएगा तो उसके कार्यकर्ता उनसे पूछेंगे, "क्या तुम्हारे पास कोई सावधान करनेवाला नहीं आया?"
قَالُوا بَلَىٰ قَدْ جَاءَنَا نَذِيرٌ فَكَذَّبْنَا وَقُلْنَا مَا نَزَّلَ اللَّهُ مِنْ شَيْءٍ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ كَبِيرٍ9
वे कहेंगे, "क्यों नहीं, अवश्य हमारे पास आया था, किन्तु हमने झुठला दिया और कहा कि अल्लाह ने कुछ भी नहीं अवतरित किया। तुम तो बस एक बड़ी गुमराही में पड़े हुए हो।"
وَقَالُوا لَوْ كُنَّا نَسْمَعُ أَوْ نَعْقِلُ مَا كُنَّا فِي أَصْحَابِ السَّعِيرِ10
और वे कहेंगे, "यदि हम सुनते या बुद्धि से काम लेते तो हम दहकती आग में पड़नेवालों में सम्मिलित न होते।"
فَاعْتَرَفُوا بِذَنْبِهِمْ فَسُحْقًا لِأَصْحَابِ السَّعِيرِ11
इस प्रकार वे अपने गुनाहों को स्वीकार करेंगे, तो धिक्कार हो दहकती आगवालों पर!
إِنَّ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ لَهُمْ مَغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ12
जो लोग परोक्ष में रहते हुए अपने रब से डरते है, उनके लिए क्षमा और बड़ा बदला है
وَأَسِرُّوا قَوْلَكُمْ أَوِ اجْهَرُوا بِهِ ۖ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ13
तुम अपनी बात छिपाओ या उसे व्यक्त करो, वह तो सीनों में छिपी बातों तक को जानता है
أَلَا يَعْلَمُ مَنْ خَلَقَ وَهُوَ اللَّطِيفُ الْخَبِيرُ14
क्या वह नहीं जानेगा जिसने पैदा किया? वह सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवाला है
هُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ ذَلُولًا فَامْشُوا فِي مَنَاكِبِهَا وَكُلُوا مِنْ رِزْقِهِ ۖ وَإِلَيْهِ النُّشُورُ15
वही तो है जिसने तुम्हारे लिए धरती को वशीभूत किया। अतः तुम उसके (धरती के) कन्धों पर चलो और उसकी रोज़ी में से खाओ, उसी की ओर दोबारा उठकर (जीवित होकर) जाना है
أَأَمِنْتُمْ مَنْ فِي السَّمَاءِ أَنْ يَخْسِفَ بِكُمُ الْأَرْضَ فَإِذَا هِيَ تَمُورُ16
क्या तुम उससे निश्चिन्त हो जो आकाश में है कि तुम्हें धरती में धँसा दे, फिर क्या देखोगे कि वह डाँवाडोल हो रही है?
أَمْ أَمِنْتُمْ مَنْ فِي السَّمَاءِ أَنْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا ۖ فَسَتَعْلَمُونَ كَيْفَ نَذِيرِ17
या तुम उससे निश्चिन्त हो जो आकाश में है कि वह तुमपर पथराव करनेवाली वायु भेज दे? फिर तुम जान लोगे कि मेरी चेतावनी कैसी होती है
وَلَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ18
उन लोगों ने भी झुठलाया जो उनसे पहले थे, फिर कैसा रहा मेरा इनकार!
أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَى الطَّيْرِ فَوْقَهُمْ صَافَّاتٍ وَيَقْبِضْنَ ۚ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا الرَّحْمَـٰنُ ۚ إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ بَصِيرٌ19
क्या उन्होंने अपने ऊपर पक्षियों को पंक्तबन्द्ध पंख फैलाए और उन्हें समेटते नहीं देखा? उन्हें रहमान के सिवा कोई और नहीं थामें रहता। निश्चय ही वह हर चीज़ को देखता है
أَمَّنْ هَـٰذَا الَّذِي هُوَ جُنْدٌ لَكُمْ يَنْصُرُكُمْ مِنْ دُونِ الرَّحْمَـٰنِ ۚ إِنِ الْكَافِرُونَ إِلَّا فِي غُرُورٍ20
या वह कौन है जो तुम्हारी सेना बनकर रहमान के मुक़ाबले में तुम्हारी सहायता करे। इनकार करनेवाले तो बस धोखे में पड़े हुए है
أَمَّنْ هَـٰذَا الَّذِي يَرْزُقُكُمْ إِنْ أَمْسَكَ رِزْقَهُ ۚ بَلْ لَجُّوا فِي عُتُوٍّ وَنُفُورٍ21
या वह कौन है जो तुम्हें रोज़ी दे, यदि वह अपनी रोज़ी रोक ले? नहीं, बल्कि वे तो सरकशी और नफ़रत ही पर अड़े हुए है
أَفَمَنْ يَمْشِي مُكِبًّا عَلَىٰ وَجْهِهِ أَهْدَىٰ أَمَّنْ يَمْشِي سَوِيًّا عَلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ22
तो क्या वह व्यक्ति जो अपने मुँह के बल औंधा चलता हो वह अधिक सीधे मार्ग पर ह या वह जो सीधा होकर सीधे मार्ग पर चल रहा है?
قُلْ هُوَ الَّذِي أَنْشَأَكُمْ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۖ قَلِيلًا مَا تَشْكُرُونَ23
कह दो, "वही है जिसने तुम्हें पैदा किया और तुम्हारे लिए कान और आँखे और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो।"
قُلْ هُوَ الَّذِي ذَرَأَكُمْ فِي الْأَرْضِ وَإِلَيْهِ تُحْشَرُونَ24
कह दो, "वही है जिसने तुम्हें धरती में फैलाया और उसी की ओर तुम एकत्र किए जा रहे हो।"
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ25
वे कहते है, "यदि तुम सच्चे हो तो यह वादा कब पूरा होगा?"
قُلْ إِنَّمَا الْعِلْمُ عِنْدَ اللَّهِ وَإِنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُبِينٌ26
कह दो, "इसका ज्ञान तो बस अल्लाह ही के पास है और मैं तो एक स्पष्ट॥ सचेत करनेवाला हूँ।"
فَلَمَّا رَأَوْهُ زُلْفَةً سِيئَتْ وُجُوهُ الَّذِينَ كَفَرُوا وَقِيلَ هَـٰذَا الَّذِي كُنْتُمْ بِهِ تَدَّعُونَ27
फिर जब वे उसे निकट देखेंगे तो उन लोगों के चेहरे बिगड़ जाएँगे जिन्होंने इनकार की नीति अपनाई; और कहा जाएगा, "यही है वह चीज़ जिसकी तुम माँग कर रहे थे।"
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَهْلَكَنِيَ اللَّهُ وَمَنْ مَعِيَ أَوْ رَحِمَنَا فَمَنْ يُجِيرُ الْكَافِرِينَ مِنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ28
कहो, "क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि अल्लाह मुझे और उन्हें भी, जो मेरे साथ है, विनष्ट ही कर दे या वह हम पर दया करे, आख़िर इनकार करनेवालों को दुखद यातना से कौन पनाह देगा?"
قُلْ هُوَ الرَّحْمَـٰنُ آمَنَّا بِهِ وَعَلَيْهِ تَوَكَّلْنَا ۖ فَسَتَعْلَمُونَ مَنْ هُوَ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ29
कह दो, "वह रहमान है। उसी पर हम ईमान लाए है और उसी पर हमने भरोसा किया। तो शीघ्र ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि खुली गुमराही में कौन पड़ा हुआ है।"
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَصْبَحَ مَاؤُكُمْ غَوْرًا فَمَنْ يَأْتِيكُمْ بِمَاءٍ مَعِينٍ30
कहो, "क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुम्हारा पानी (धरती में) नीचे उतर जाए तो फिर कौन तुम्हें लाकर देगा निर्मल प्रवाहित जल?"
अल-क़लम
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
ن ۚ وَالْقَلَمِ وَمَا يَسْطُرُونَ1
नून॰। गवाह है क़लम और वह चीज़ जो वे लिखते है,
مَا أَنْتَ بِنِعْمَةِ رَبِّكَ بِمَجْنُونٍ2
तुम अपने रब की अनुकम्पा से कोई दीवाने नहीं हो
وَإِنَّ لَكَ لَأَجْرًا غَيْرَ مَمْنُونٍ3
निश्चय ही तुम्हारे लिए ऐसा प्रतिदान है जिसका क्रम कभी टूटनेवाला नहीं
وَإِنَّكَ لَعَلَىٰ خُلُقٍ عَظِيمٍ4
निस्संदेह तुम एक महान नैतिकता के शिखर पर हो
فَسَتُبْصِرُ وَيُبْصِرُونَ5
अतः शीघ्र ही तुम भी देख लोगे और वे भी देख लेंगे
بِأَيْيِكُمُ الْمَفْتُونُ6
कि तुममें से कौन विभ्रमित है
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَنْ ضَلَّ عَنْ سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ7
निस्संदेह तुम्हारा रब उसे भली-भाँति जानता है जो उसके मार्ग से भटक गया है, और वही उन लोगों को भी जानता है जो सीधे मार्ग पर हैं
فَلَا تُطِعِ الْمُكَذِّبِينَ8
अतः तुम झुठलानेवालों को कहना न मानना
وَدُّوا لَوْ تُدْهِنُ فَيُدْهِنُونَ9
वे चाहते है कि तुम ढीले पड़ो, इस कारण वे चिकनी-चुपड़ी बातें करते है
وَلَا تُطِعْ كُلَّ حَلَّافٍ مَهِينٍ10
तुम किसी भी ऐसे व्यक्ति की बात न मानना जो बहुत क़समें खानेवाला, हीन है,
هَمَّازٍ مَشَّاءٍ بِنَمِيمٍ11
कचोके लगाता, चुग़लियाँ खाता फिरता हैं,
مَنَّاعٍ لِلْخَيْرِ مُعْتَدٍ أَثِيمٍ12
भलाई से रोकता है, सीमा का उल्लंघन करनेवाला, हक़ मारनेवाला है,
عُتُلٍّ بَعْدَ ذَٰلِكَ زَنِيمٍ13
क्रूर है फिर अधम भी।
أَنْ كَانَ ذَا مَالٍ وَبَنِينَ14
इस कारण कि वह धन और बेटोंवाला है
إِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِ آيَاتُنَا قَالَ أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ15
जब उसे हमारी आयतें सुनाई जाती है तो कहता है, "ये तो पहले लोगों की कहानियाँ हैं!"
سَنَسِمُهُ عَلَى الْخُرْطُومِ16
शीघ्र ही हम उसकी सूँड पर दाग़ लगाएँगे
إِنَّا بَلَوْنَاهُمْ كَمَا بَلَوْنَا أَصْحَابَ الْجَنَّةِ إِذْ أَقْسَمُوا لَيَصْرِمُنَّهَا مُصْبِحِينَ17
हमने उन्हें परीक्षा में डाला है जैसे बाग़वालों को परीक्षा में डाला था, जबकि उन्होंने क़सम खाई कि वे प्रातःकाल अवश्य उस (बाग़) के फल तोड़ लेंगे
وَلَا يَسْتَثْنُونَ18
और वे इसमें छूट की कोई गुंजाइश नहीं रख रहे थे
فَطَافَ عَلَيْهَا طَائِفٌ مِنْ رَبِّكَ وَهُمْ نَائِمُونَ19
अभी वे सो ही रहे थे कि तुम्हारे रब की ओर से गर्दिश का एक झोंका आया
فَأَصْبَحَتْ كَالصَّرِيمِ20
और वह ऐसा हो गया जैसे कटी हुई फ़सल
فَتَنَادَوْا مُصْبِحِينَ21
फिर प्रातःकाल होते ही उन्होंने एक-दूसरे को आवाज़ दी
أَنِ اغْدُوا عَلَىٰ حَرْثِكُمْ إِنْ كُنْتُمْ صَارِمِينَ22
कि "यदि तुम्हें फल तोड़ना है तो अपनी खेती पर सवेरे ही पहुँचो।"
فَانْطَلَقُوا وَهُمْ يَتَخَافَتُونَ23
अतएव वे चुपके-चुपके बातें करते हुए चल पड़े
أَنْ لَا يَدْخُلَنَّهَا الْيَوْمَ عَلَيْكُمْ مِسْكِينٌ24
कि आज वहाँ कोई मुहताज तुम्हारे पास न पहुँचने पाए
وَغَدَوْا عَلَىٰ حَرْدٍ قَادِرِينَ25
और वे आज तेज़ी के साथ चले मानो (मुहताजों को) रोक देने की उन्हें सामर्थ्य प्राप्त है
فَلَمَّا رَأَوْهَا قَالُوا إِنَّا لَضَالُّونَ26
किन्तु जब उन्होंने उसको देखा, कहने लगे, "निश्चय ही हम भटक गए है।
بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ27
नहीं, बल्कि हम वंचित होकर रह गए।"
قَالَ أَوْسَطُهُمْ أَلَمْ أَقُلْ لَكُمْ لَوْلَا تُسَبِّحُونَ28
उनमें जो सबसे अच्छा था कहने लगा, "क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था? तुम तसबीह क्यों नहीं करते?"
قَالُوا سُبْحَانَ رَبِّنَا إِنَّا كُنَّا ظَالِمِينَ29
वे पुकार उठे, "महान और उच्च है हमारा रब! निश्चय ही हम ज़ालिम थे।"
فَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ يَتَلَاوَمُونَ30
फिर वे परस्पर एक-दूसरे की ओर रुख़ करके लगे एक-दूसरे को मलामत करने।
قَالُوا يَا وَيْلَنَا إِنَّا كُنَّا طَاغِينَ31
उन्होंने कहा, "अफ़सोस हम पर! निश्चय ही हम सरकश थे।
عَسَىٰ رَبُّنَا أَنْ يُبْدِلَنَا خَيْرًا مِنْهَا إِنَّا إِلَىٰ رَبِّنَا رَاغِبُونَ32
"आशा है कि हमारा रब बदले में हमें इससे अच्छा प्रदान करे। हम अपने रब की ओर उन्मुख है।"
كَذَٰلِكَ الْعَذَابُ ۖ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَكْبَرُ ۚ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ33
यातना ऐसी ही होती है, और आख़िरत की यातना तो निश्चय ही इससे भी बड़ी है, काश वे जानते!
إِنَّ لِلْمُتَّقِينَ عِنْدَ رَبِّهِمْ جَنَّاتِ النَّعِيمِ34
निश्चय ही डर रखनेवालों के लिए उनके रब के यहाँ नेमत भरी जन्नतें है
أَفَنَجْعَلُ الْمُسْلِمِينَ كَالْمُجْرِمِينَ35
तो क्या हम मुस्लिमों (आज्ञाकारियों) को अपराधियों जैसा कर देंगे?
مَا لَكُمْ كَيْفَ تَحْكُمُونَ36
तुम्हें क्या हो गया है, कैसा फ़ैसला करते हो?
أَمْ لَكُمْ كِتَابٌ فِيهِ تَدْرُسُونَ37
क्या तुम्हारे पास कोई किताब है जिसमें तुम पढ़ते हो
إِنَّ لَكُمْ فِيهِ لَمَا تَخَيَّرُونَ38
कि उसमें तुम्हारे लिए वह कुछ है जो तुम पसन्द करो?
أَمْ لَكُمْ أَيْمَانٌ عَلَيْنَا بَالِغَةٌ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ۙ إِنَّ لَكُمْ لَمَا تَحْكُمُونَ39
या तुमने हमसे क़समें ले रखी है जो क़ियामत के दिन तक बाक़ी रहनेवाली है कि तुम्हारे लिए वही कुछ है जो तुम फ़ैसला करो!
سَلْهُمْ أَيُّهُمْ بِذَٰلِكَ زَعِيمٌ40
उनसे पूछो, "उनमें से कौन इसकी ज़मानत लेता है!
أَمْ لَهُمْ شُرَكَاءُ فَلْيَأْتُوا بِشُرَكَائِهِمْ إِنْ كَانُوا صَادِقِينَ41
या उनके ठहराए हुए कुछ साझीदार है? फिर तो यह चाहिए कि वे अपने साझीदारों को ले आएँ, यदि वे सच्चे है
يَوْمَ يُكْشَفُ عَنْ سَاقٍ وَيُدْعَوْنَ إِلَى السُّجُودِ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ42
जिस दिन पिंडली खुल जाएगी और वे सजदे के लिए बुलाए जाएँगे, तो वे (सजदा) न कर सकेंगे
خَاشِعَةً أَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ ۖ وَقَدْ كَانُوا يُدْعَوْنَ إِلَى السُّجُودِ وَهُمْ سَالِمُونَ43
उनकी निगाहें झुकी हुई होंगी, ज़िल्लत (अपमान) उनपर छा रही होगी। उन्हें उस समय भी सजदा करने के लिए बुलाया जाता था जब वे भले-चंगे थे
فَذَرْنِي وَمَنْ يُكَذِّبُ بِهَـٰذَا الْحَدِيثِ ۖ سَنَسْتَدْرِجُهُمْ مِنْ حَيْثُ لَا يَعْلَمُونَ44
अतः तुम मुझे छोड़ दो और उसको जो इस वाणी को झुठलाता है। हम ऐसों को क्रमशः (विनाश की ओर) ले जाएँगे, ऐसे तरीक़े से कि वे नहीं जानते
وَأُمْلِي لَهُمْ ۚ إِنَّ كَيْدِي مَتِينٌ45
मैं उन्हें ढील दे रहा हूँ। निश्चय ही मेरी चाल बड़ी मज़बूत है
أَمْ تَسْأَلُهُمْ أَجْرًا فَهُمْ مِنْ مَغْرَمٍ مُثْقَلُونَ46
(क्या वे यातना ही चाहते हैं) या तुम उनसे कोई बदला माँग रहे हो कि वे तावान के बोझ से दबे जाते हों?
أَمْ عِنْدَهُمُ الْغَيْبُ فَهُمْ يَكْتُبُونَ47
या उनके पास परोक्ष का ज्ञान है तो वे लिख रहे हैं?
فَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ وَلَا تَكُنْ كَصَاحِبِ الْحُوتِ إِذْ نَادَىٰ وَهُوَ مَكْظُومٌ48
तो अपने रब के आदेश हेतु धैर्य से काम लो और मछलीवाले (यूनुस अलै॰) की तरह न हो जाना, जबकि उसने पुकारा था इस दशा में कि वह ग़म में घुट रहा था।
لَوْلَا أَنْ تَدَارَكَهُ نِعْمَةٌ مِنْ رَبِّهِ لَنُبِذَ بِالْعَرَاءِ وَهُوَ مَذْمُومٌ49
यदि उसके रब की अनुकम्पा उसके साथ न हो जाती तो वह अवश्य ही चटियल मैदान में बुरे हाल में डाल दिया जाता।
فَاجْتَبَاهُ رَبُّهُ فَجَعَلَهُ مِنَ الصَّالِحِينَ50
अन्ततः उसके रब ने उसे चुन लिया और उसे अच्छे लोगों में सम्मिलित कर दिया
وَإِنْ يَكَادُ الَّذِينَ كَفَرُوا لَيُزْلِقُونَكَ بِأَبْصَارِهِمْ لَمَّا سَمِعُوا الذِّكْرَ وَيَقُولُونَ إِنَّهُ لَمَجْنُونٌ51
जब वे लोग, जिन्होंने इनकार किया, ज़िक्र (क़ुरआन) सुनते है और कहते है, "वह तो दीवाना है!" तो ऐसा लगता है कि वे अपनी निगाहों के ज़ोर से तुम्हें फिसला देंगे
وَمَا هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِلْعَالَمِينَ52
हालाँकि वह सारे संसार के लिए एक अनुस्मृति है
अल-हाक़ा
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
الْحَاقَّةُ1
होकर रहनेवाली!
مَا الْحَاقَّةُ2
क्या है वह होकर रहनेवाली?
وَمَا أَدْرَاكَ مَا الْحَاقَّةُ3
और तुम क्या जानो कि क्या है वह होकर रहनेवाली?
كَذَّبَتْ ثَمُودُ وَعَادٌ بِالْقَارِعَةِ4
समूद और आद ने उस खड़खड़ा देनेवाली (घटना) को झुठलाया,
فَأَمَّا ثَمُودُ فَأُهْلِكُوا بِالطَّاغِيَةِ5
फिर समूद तो एक हद से बढ़ जानेवाली आपदा से विनष्ट किए गए
وَأَمَّا عَادٌ فَأُهْلِكُوا بِرِيحٍ صَرْصَرٍ عَاتِيَةٍ6
और रहे आद, तो वे एक अनियंत्रित प्रचंड वायु से विनष्ट कर दिए गए
سَخَّرَهَا عَلَيْهِمْ سَبْعَ لَيَالٍ وَثَمَانِيَةَ أَيَّامٍ حُسُومًا فَتَرَى الْقَوْمَ فِيهَا صَرْعَىٰ كَأَنَّهُمْ أَعْجَازُ نَخْلٍ خَاوِيَةٍ7
अल्लाह ने उसको सात रात और आठ दिन तक उन्मूलन के उद्देश्य से उनपर लगाए रखा। तो लोगों को तुम देखते कि वे उसमें पछाड़े हुए ऐसे पड़े है मानो वे खजूर के जर्जर तने हों
فَهَلْ تَرَىٰ لَهُمْ مِنْ بَاقِيَةٍ8
अब क्या तुम्हें उनमें से कोई शेष दिखाई देता है?
وَجَاءَ فِرْعَوْنُ وَمَنْ قَبْلَهُ وَالْمُؤْتَفِكَاتُ بِالْخَاطِئَةِ9
और फ़िरऔन ने और उससे पहले के लोगों ने और तलपट हो जानेवाली बस्तियों ने यह ख़ता की
فَعَصَوْا رَسُولَ رَبِّهِمْ فَأَخَذَهُمْ أَخْذَةً رَابِيَةً10
उन्होंने अपने रब के रसूल की अवज्ञा की तो उसने उन्हें ऐसी पकड़ में ले लिया जो बड़ी कठोर थी
إِنَّا لَمَّا طَغَى الْمَاءُ حَمَلْنَاكُمْ فِي الْجَارِيَةِ11
जब पानी उमड़ आया तो हमने तुम्हें प्रवाहित नौका में सवार किया;
لِنَجْعَلَهَا لَكُمْ تَذْكِرَةً وَتَعِيَهَا أُذُنٌ وَاعِيَةٌ12
ताकि उसे तुम्हारे लिए हम शिक्षाप्रद यादगार बनाएँ और याद रखनेवाले कान उसे सुरक्षित रखें
فَإِذَا نُفِخَ فِي الصُّورِ نَفْخَةٌ وَاحِدَةٌ13
तो याद रखो जब सूर (नरसिंघा) में एक फूँक मारी जाएगी,
وَحُمِلَتِ الْأَرْضُ وَالْجِبَالُ فَدُكَّتَا دَكَّةً وَاحِدَةً14
और धरती और पहाड़ों को उठाकर एक ही बार में चूर्ण-विचूर्ण कर दिया जाएगा
فَيَوْمَئِذٍ وَقَعَتِ الْوَاقِعَةُ15
तो उस दिन घटित होनेवाली घटना घटित हो जाएगी,
وَانْشَقَّتِ السَّمَاءُ فَهِيَ يَوْمَئِذٍ وَاهِيَةٌ16
और आकाश फट जाएगा और उस दिन उसका बन्धन ढीला पड़ जाएगा,
وَالْمَلَكُ عَلَىٰ أَرْجَائِهَا ۚ وَيَحْمِلُ عَرْشَ رَبِّكَ فَوْقَهُمْ يَوْمَئِذٍ ثَمَانِيَةٌ17
और फ़रिश्ते उसके किनारों पर होंगे और उस दिन तुम्हारे रब के सिंहासन को आठ अपने ऊपर उठाए हुए होंगे
يَوْمَئِذٍ تُعْرَضُونَ لَا تَخْفَىٰ مِنْكُمْ خَافِيَةٌ18
उस दिन तुम लोग पेश किए जाओगे, तुम्हारी कोई छिपी बात छिपी न रहेगी
فَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ فَيَقُولُ هَاؤُمُ اقْرَءُوا كِتَابِيَهْ19
फिर जिस किसी को उसका कर्म-पत्र उसके दाहिने हाथ में दिया गया, तो वह कहेगा, "लो पढ़ो, मेरा कर्म-पत्र!
إِنِّي ظَنَنْتُ أَنِّي مُلَاقٍ حِسَابِيَهْ20
"मैं तो समझता ही था कि मुझे अपना हिसाब मिलनेवाला है।"
فَهُوَ فِي عِيشَةٍ رَاضِيَةٍ21
अतः वह सुख और आनन्दमय जीवन में होगा;
فِي جَنَّةٍ عَالِيَةٍ22
उच्च जन्नत में,
قُطُوفُهَا دَانِيَةٌ23
जिसके फलों के गुच्छे झुके होंगे
كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا أَسْلَفْتُمْ فِي الْأَيَّامِ الْخَالِيَةِ24
मज़े से खाओ और पियो उन कर्मों के बदले में जो तुमने बीते दिनों में किए है
وَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِشِمَالِهِ فَيَقُولُ يَا لَيْتَنِي لَمْ أُوتَ كِتَابِيَهْ25
और रहा वह क्यक्ति जिसका कर्म-पत्र उसके बाएँ हाथ में दिया गया, वह कहेगा, "काश, मेरा कर्म-पत्र मुझे न दिया जाता
وَلَمْ أَدْرِ مَا حِسَابِيَهْ26
और मैं न जानता कि मेरा हिसाब क्या है!
يَا لَيْتَهَا كَانَتِ الْقَاضِيَةَ27
"ऐ काश, वह (मृत्यु) समाप्त करनेवाली होती!
مَا أَغْنَىٰ عَنِّي مَالِيَهْ ۜ28
"मेरा माल मेरे कुछ काम न आया,
هَلَكَ عَنِّي سُلْطَانِيَهْ29
"मेरा ज़ोर (सत्ता) मुझसे जाता रहा!"
خُذُوهُ فَغُلُّوهُ30
"पकड़ो उसे और उसकी गरदन में तौक़ डाल दो,
ثُمَّ الْجَحِيمَ صَلُّوهُ31
"फिर उसे भड़कती हुई आग में झोंक दो,
ثُمَّ فِي سِلْسِلَةٍ ذَرْعُهَا سَبْعُونَ ذِرَاعًا فَاسْلُكُوهُ32
"फिर उसे एक ऐसी जंजीर में जकड़ दो जिसकी माप सत्तर हाथ है
إِنَّهُ كَانَ لَا يُؤْمِنُ بِاللَّهِ الْعَظِيمِ33
"वह न तो महिमावान अल्लाह पर ईमान रखता था
وَلَا يَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ الْمِسْكِينِ34
और न मुहताज को खाना खिलाने पर उभारता था
فَلَيْسَ لَهُ الْيَوْمَ هَاهُنَا حَمِيمٌ35
"अतः आज उसका यहाँ कोई घनिष्ट मित्र नहीं,
وَلَا طَعَامٌ إِلَّا مِنْ غِسْلِينٍ36
और न ही धोवन के सिवा कोई भोजन है,
لَا يَأْكُلُهُ إِلَّا الْخَاطِئُونَ37
"उसे ख़ताकारों (अपराधियों) के अतिरिक्त कोई नहीं खाता।"
فَلَا أُقْسِمُ بِمَا تُبْصِرُونَ38
अतः कुछ नहीं! मैं क़सम खाता हूँ उन चीज़ों की जो तुम देखते
وَمَا لَا تُبْصِرُونَ39
हो और उन चीज़ों को भी जो तुम नहीं देखते,
إِنَّهُ لَقَوْلُ رَسُولٍ كَرِيمٍ40
निश्चय ही वह एक प्रतिष्ठित रसूल की लाई हुई वाणी है
وَمَا هُوَ بِقَوْلِ شَاعِرٍ ۚ قَلِيلًا مَا تُؤْمِنُونَ41
वह किसी कवि की वाणी नहीं। तुम ईमान थोड़े ही लाते हो
وَلَا بِقَوْلِ كَاهِنٍ ۚ قَلِيلًا مَا تَذَكَّرُونَ42
और न वह किसी काहिन का वाणी है। तुम होश से थोड़े ही काम लेते हो
تَنْزِيلٌ مِنْ رَبِّ الْعَالَمِينَ43
अवतरण है सारे संसार के रब की ओर से,
وَلَوْ تَقَوَّلَ عَلَيْنَا بَعْضَ الْأَقَاوِيلِ44
यदि वह (नबी) हमपर थोपकर कुछ बातें घड़ता,
لَأَخَذْنَا مِنْهُ بِالْيَمِينِ45
तो अवश्य हम उसका दाहिना हाथ पकड़ लेते,
ثُمَّ لَقَطَعْنَا مِنْهُ الْوَتِينَ46
फिर उसकी गर्दन की रग काट देते,
فَمَا مِنْكُمْ مِنْ أَحَدٍ عَنْهُ حَاجِزِينَ47
और तुममें से कोई भी इससे रोकनेवाला न होता
وَإِنَّهُ لَتَذْكِرَةٌ لِلْمُتَّقِينَ48
और निश्चय ही वह एक अनुस्मृति है डर रखनेवालों के लिए
وَإِنَّا لَنَعْلَمُ أَنَّ مِنْكُمْ مُكَذِّبِينَ49
और निश्चय ही हम जानते है कि तुममें कितने ही ऐसे है जो झुठलाते है
وَإِنَّهُ لَحَسْرَةٌ عَلَى الْكَافِرِينَ50
निश्चय ही वह इनकार करनेवालों के लिए सर्वथा पछतावा है,
وَإِنَّهُ لَحَقُّ الْيَقِينِ51
और वह बिल्कुल विश्वसनीय सत्य है।
فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ52
अतः तुम अपने महिमावान रब के नाम की तसबीह (गुणगान) करो
अल-मआरिज
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
سَأَلَ سَائِلٌ بِعَذَابٍ وَاقِعٍ1
एक माँगनेवाले ने घटित होनेवाली यातना माँगी,
لِلْكَافِرِينَ لَيْسَ لَهُ دَافِعٌ2
जो इनकार करनेवालो के लिए होगी, उसे कोई टालनेवाला नहीं,
مِنَ اللَّهِ ذِي الْمَعَارِجِ3
वह अल्लाह की ओर से होगी, जो चढ़ाव के सोपानों का स्वामी है
تَعْرُجُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ خَمْسِينَ أَلْفَ سَنَةٍ4
फ़रिश्ते और रूह (जिबरील) उसकी ओर चढ़ते है, उस दिन में जिसकी अवधि पचास हज़ार वर्ष है
فَاصْبِرْ صَبْرًا جَمِيلًا5
अतः धैर्य से काम लो, उत्तम धैर्य
إِنَّهُمْ يَرَوْنَهُ بَعِيدًا6
वे उसे बहुत दूर देख रहे है,
وَنَرَاهُ قَرِيبًا7
किन्तु हम उसे निकट देख रहे है
يَوْمَ تَكُونُ السَّمَاءُ كَالْمُهْلِ8
जिस दिन आकाश तेल की तलछट जैसा काला हो जाएगा,
وَتَكُونُ الْجِبَالُ كَالْعِهْنِ9
और पर्वत रंग-बिरंगे ऊन के सदृश हो जाएँगे
وَلَا يَسْأَلُ حَمِيمٌ حَمِيمًا10
कोई मित्र किसी मित्र को न पूछेगा,
يُبَصَّرُونَهُمْ ۚ يَوَدُّ الْمُجْرِمُ لَوْ يَفْتَدِي مِنْ عَذَابِ يَوْمِئِذٍ بِبَنِيهِ11
हालाँकि वे एक-दूसरे को दिखाए जाएँगे। अपराधी चाहेगा कि किसी प्रकार वह उस दिन की यातना से छूटने के लिए अपने बेटों,
وَصَاحِبَتِهِ وَأَخِيهِ12
अपनी पत्नी , अपने भाई
وَفَصِيلَتِهِ الَّتِي تُؤْوِيهِ13
और अपने उस परिवार को जो उसको आश्रय देता है,
وَمَنْ فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ثُمَّ يُنْجِيهِ14
और उन सभी लोगों को जो धरती में रहते है, फ़िदया (मुक्ति-प्रतिदान) के रूप में दे डाले फिर वह उसको छुटकारा दिला दे
كَلَّا ۖ إِنَّهَا لَظَىٰ15
कदापि नहीं! वह लपट मारती हुई आग है,
نَزَّاعَةً لِلشَّوَىٰ16
जो मांस और त्वचा को चाट जाएगी,
تَدْعُو مَنْ أَدْبَرَ وَتَوَلَّىٰ17
उस व्यक्ति को बुलाती है जिसने पीठ फेरी और मुँह मोड़ा,
وَجَمَعَ فَأَوْعَىٰ18
और (धन) एकत्र किया और सैंत कर रखा
إِنَّ الْإِنْسَانَ خُلِقَ هَلُوعًا19
निस्संदेह मनुष्य अधीर पैदा हुआ है
إِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ جَزُوعًا20
जि उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो घबरा उठता है,
وَإِذَا مَسَّهُ الْخَيْرُ مَنُوعًا21
किन्तु जब उसे सम्पन्नता प्राप्त होती ही तो वह कृपणता दिखाता है
إِلَّا الْمُصَلِّينَ22
किन्तु नमाज़ अदा करनेवालों की बात और है,
الَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَاتِهِمْ دَائِمُونَ23
जो अपनी नमाज़ पर सदैव जमें रहते है,
وَالَّذِينَ فِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ مَعْلُومٌ24
और जिनके मालों में
لِلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ25
माँगनेवालों और वंचित का एक ज्ञात और निश्चित हक़ होता है,
وَالَّذِينَ يُصَدِّقُونَ بِيَوْمِ الدِّينِ26
जो बदले के दिन को सत्य मानते है,
وَالَّذِينَ هُمْ مِنْ عَذَابِ رَبِّهِمْ مُشْفِقُونَ27
जो अपने रब की यातना से डरते है -
إِنَّ عَذَابَ رَبِّهِمْ غَيْرُ مَأْمُونٍ28
उनके रब की यातना है ही ऐसी जिससे निश्चिन्त न रहा जाए -
وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ29
जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है।
إِلَّا عَلَىٰ أَزْوَاجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ30
अपनी पत्नि यों या जो उनकी मिल्क में हो उनके अतिरिक्त दूसरों से तो इस बात पर उनकी कोई भर्त्सना नही। -
فَمَنِ ابْتَغَىٰ وَرَاءَ ذَٰلِكَ فَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْعَادُونَ31
किन्तु जिस किसी ने इसके अतिरिक्त कुछ और चाहा तो ऐसे ही लोग सीमा का उल्लंघन करनेवाले है।-
وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ32
जो अपने पास रखी गई अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करते है,
وَالَّذِينَ هُمْ بِشَهَادَاتِهِمْ قَائِمُونَ33
जो अपनी गवाहियों पर क़़ायम रहते है,
وَالَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ34
और जो अपनी नमाज़ की रक्षा करते है
أُولَـٰئِكَ فِي جَنَّاتٍ مُكْرَمُونَ35
वही लोग जन्नतों में सम्मानपूर्वक रहेंगे
فَمَالِ الَّذِينَ كَفَرُوا قِبَلَكَ مُهْطِعِينَ36
फिर उन इनकार करनेवालो को क्या हुआ है कि वे तुम्हारी ओर दौड़े चले आ रहे है?
عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ عِزِينَ37
दाएँ और बाएँ से गिरोह के गिरोह
أَيَطْمَعُ كُلُّ امْرِئٍ مِنْهُمْ أَنْ يُدْخَلَ جَنَّةَ نَعِيمٍ38
क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति इसकी लालसा रखता है कि वह अनुकम्पा से परिपूर्ण जन्नत में प्रविष्ट हो?
كَلَّا ۖ إِنَّا خَلَقْنَاهُمْ مِمَّا يَعْلَمُونَ39
कदापि नहीं, हमने उन्हें उस चीज़ से पैदा किया है, जिसे वे भली-भाँति जानते है
فَلَا أُقْسِمُ بِرَبِّ الْمَشَارِقِ وَالْمَغَارِبِ إِنَّا لَقَادِرُونَ40
अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ पूर्वों और पश्चिमों के रब की, हमे इसकी सामर्थ्य प्राप्त है
عَلَىٰ أَنْ نُبَدِّلَ خَيْرًا مِنْهُمْ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ41
कि उनकी उनसे अच्छे ले आएँ और हम पिछड़ जानेवाले नहीं है
فَذَرْهُمْ يَخُوضُوا وَيَلْعَبُوا حَتَّىٰ يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي يُوعَدُونَ42
अतः उन्हें छोड़ो कि वे व्यर्थ बातों में पड़े रहें और खेलते रहे, यहाँ तक कि वे अपने उस दिन से मिलें, जिसका उनसे वादा किया जा रहा है,
يَوْمَ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ سِرَاعًا كَأَنَّهُمْ إِلَىٰ نُصُبٍ يُوفِضُونَ43
जिस दिन वे क़ब्रों से तेज़ी के साथ निकलेंगे जैसे किसी निशान की ओर दौड़े जा रहे है,
خَاشِعَةً أَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ ۚ ذَٰلِكَ الْيَوْمُ الَّذِي كَانُوا يُوعَدُونَ44
उनकी निगाहें झुकी होंगी, ज़िल्लत उनपर छा रही होगी। यह है वह दिन जिससे वह डराए जाते रहे है
नूह
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِنَّا أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوْمِهِ أَنْ أَنْذِرْ قَوْمَكَ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ1
हमने नूह को उसकी कौ़म की ओर भेजा कि "अपनी क़ौम के लोगों को सावधान कर दो, इससे पहले कि उनपर कोई दुखद यातना आ जाए।"
قَالَ يَا قَوْمِ إِنِّي لَكُمْ نَذِيرٌ مُبِينٌ2
उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं तुम्हारे लिए एक स्पष्ट सचेतकर्ता हूँ
أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَاتَّقُوهُ وَأَطِيعُونِ3
कि अल्लाह की बन्दगी करो और उसका डर रखो और मेरी आज्ञा मानो।-
يَغْفِرْ لَكُمْ مِنْ ذُنُوبِكُمْ وَيُؤَخِّرْكُمْ إِلَىٰ أَجَلٍ مُسَمًّى ۚ إِنَّ أَجَلَ اللَّهِ إِذَا جَاءَ لَا يُؤَخَّرُ ۖ لَوْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ4
"वह तुम्हें क्षमा करके तुम्हारे गुनाहों से तुम्हें पाक कर देगा और एक निश्चित समय तक तुम्हे मुहल्लत देगा। निश्चय ही जब अल्लाह का निश्चित समय आ जाता है तो वह टलता नहीं, काश कि तुम जानते!"
قَالَ رَبِّ إِنِّي دَعَوْتُ قَوْمِي لَيْلًا وَنَهَارًا5
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मैंने अपनी क़ौम के लोगों को रात और दिन बुलाया
فَلَمْ يَزِدْهُمْ دُعَائِي إِلَّا فِرَارًا6
"किन्तु मेरी पुकार ने उनके पलायन को ही बढ़ाया
وَإِنِّي كُلَّمَا دَعَوْتُهُمْ لِتَغْفِرَ لَهُمْ جَعَلُوا أَصَابِعَهُمْ فِي آذَانِهِمْ وَاسْتَغْشَوْا ثِيَابَهُمْ وَأَصَرُّوا وَاسْتَكْبَرُوا اسْتِكْبَارًا7
"और जब भी मैंने उन्हें बुलाया, ताकि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो उन्होंने अपने कानों में अपनी उँगलियाँ दे लीं और अपने कपड़ो से स्वयं को ढाँक लिया और अपनी हठ पर अड़ गए और बड़ा ही घमंड किया
ثُمَّ إِنِّي دَعَوْتُهُمْ جِهَارًا8
"फिर मैंने उन्हें खुल्लमखुल्ला बुलाया,
ثُمَّ إِنِّي أَعْلَنْتُ لَهُمْ وَأَسْرَرْتُ لَهُمْ إِسْرَارًا9
"फिर मैंने उनसे खुले तौर पर भी बातें की और उनसे चुपके-चुपके भी बातें की
فَقُلْتُ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ إِنَّهُ كَانَ غَفَّارًا10
"और मैंने कहा, अपने रब से क्षमा की प्रार्थना करो। निश्चय ही वह बड़ा क्षमाशील है,
يُرْسِلِ السَّمَاءَ عَلَيْكُمْ مِدْرَارًا11
"वह बादल भेजेगा तुमपर ख़ूब बरसनेवाला,
وَيُمْدِدْكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَيَجْعَلْ لَكُمْ جَنَّاتٍ وَيَجْعَلْ لَكُمْ أَنْهَارًا12
"और वह माल और बेटों से तुम्हें बढ़ोतरी प्रदान करेगा, और तुम्हारे लिए बाग़ पैदा करेगा और तुम्हारे लिए नहरें प्रवाहित करेगा
مَا لَكُمْ لَا تَرْجُونَ لِلَّهِ وَقَارًا13
"तुम्हें क्या हो गया है कि तुम (अपने दिलों में) अल्लाह के लिए किसी गौरव की आशा नहीं रखते?
وَقَدْ خَلَقَكُمْ أَطْوَارًا14
"हालाँकि उसने तुम्हें विभिन्न अवस्थाओं से गुज़ारते हुए पैदा किया
أَلَمْ تَرَوْا كَيْفَ خَلَقَ اللَّهُ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا15
"क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने किस प्रकार ऊपर तले सात आकाश बनाए,
وَجَعَلَ الْقَمَرَ فِيهِنَّ نُورًا وَجَعَلَ الشَّمْسَ سِرَاجًا16
"और उनमें चन्द्रमा को प्रकाश और सूर्य का प्रदीप बनाया?
وَاللَّهُ أَنْبَتَكُمْ مِنَ الْأَرْضِ نَبَاتًا17
"और अल्लाह ने तुम्हें धरती से विशिष्ट प्रकार से विकसित किया,
ثُمَّ يُعِيدُكُمْ فِيهَا وَيُخْرِجُكُمْ إِخْرَاجًا18
"फिर वह तुम्हें उसमें लौटाता है और तुम्हें बाहर निकालेगा भी
وَاللَّهُ جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ بِسَاطًا19
"और अल्लाह ने तुम्हारे लिए धरती को बिछौना बनाया,
لِتَسْلُكُوا مِنْهَا سُبُلًا فِجَاجًا20
"ताकि तुम उसके विस्तृत मार्गों पर चलो।"
قَالَ نُوحٌ رَبِّ إِنَّهُمْ عَصَوْنِي وَاتَّبَعُوا مَنْ لَمْ يَزِدْهُ مَالُهُ وَوَلَدُهُ إِلَّا خَسَارًا21
नूह ने कहा, "ऐ मेरे रब! उन्होंने मेरी अवज्ञा की, और उसका अनुसरण किया जिसके धन और जिसकी सन्तान ने उसके घाटे ही मे अभिवृद्धि की
وَمَكَرُوا مَكْرًا كُبَّارًا22
"और वे बहुत बड़ी चाल चले,
وَقَالُوا لَا تَذَرُنَّ آلِهَتَكُمْ وَلَا تَذَرُنَّ وَدًّا وَلَا سُوَاعًا وَلَا يَغُوثَ وَيَعُوقَ وَنَسْرًا23
"और उन्होंने कहा, अपने इष्ट-पूज्यों के कदापि न छोड़ो और न वह वद्द को छोड़ो और न सुवा को और न यग़ूस और न यऊक़ और नस्र को
وَقَدْ أَضَلُّوا كَثِيرًا ۖ وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا ضَلَالًا24
"और उन्होंने बहुत-से लोगों को पथभ्रष्ट॥ किया है (तो तू उन्हें मार्ग न दिया) अब, तू भी ज़ालिमों की पथभ्रष्टता ही में अभिवृद्धि कर।"
مِمَّا خَطِيئَاتِهِمْ أُغْرِقُوا فَأُدْخِلُوا نَارًا فَلَمْ يَجِدُوا لَهُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَنْصَارًا25
वे अपनी बड़ी ख़ताओं के कारण पानी में डूबो दिए गए, फिर आग में दाख़िल कर दिए गए, फिर वे अपने और अल्लाह के बीच आड़ बननेवाले सहायक न पा सके
وَقَالَ نُوحٌ رَبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْأَرْضِ مِنَ الْكَافِرِينَ دَيَّارًا26
और नूह ने कहा, "ऐ मेरे रब! धरती पर इनकार करनेवालों में से किसी बसनेवाले को न छोड
إِنَّكَ إِنْ تَذَرْهُمْ يُضِلُّوا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوا إِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا27
"यदि तू उन्हें छोड़ देगा तो वे तेरे बन्दों को पथभ्रष्ट कर देंगे और वे दुराचारियों और बड़े अधर्मियों को ही जन्म देंगे
رَبِّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَنْ دَخَلَ بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا تَبَارًا28
"ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मेरे माँ-बाप को भी और हर उस व्यक्ति को भी जो मेरे घर में ईमानवाला बन कर दाख़िल हुआ और (सामान्य) ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को भी (क्षमा कर दे), और ज़ालिमों के विनाश को ही बढ़ा।"
अल-जिन
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
قُلْ أُوحِيَ إِلَيَّ أَنَّهُ اسْتَمَعَ نَفَرٌ مِنَ الْجِنِّ فَقَالُوا إِنَّا سَمِعْنَا قُرْآنًا عَجَبًا1
कह दो, "मेरी ओर प्रकाशना की गई है कि जिन्नों के एक गिरोह ने सुना, फिर उन्होंने कहा कि हमने एक मनभाता क़ुरआन सुना,
يَهْدِي إِلَى الرُّشْدِ فَآمَنَّا بِهِ ۖ وَلَنْ نُشْرِكَ بِرَبِّنَا أَحَدًا2
"जो भलाई और सूझ-बूझ का मार्ग दिखाता है, अतः हम उसपर ईमान ले आए, और अब हम कदापि किसी को अपने रब का साझी नहीं ठहराएँगे
وَأَنَّهُ تَعَالَىٰ جَدُّ رَبِّنَا مَا اتَّخَذَ صَاحِبَةً وَلَا وَلَدًا3
"और यह कि हमारे रब का गौरब अत्यन्त उच्च है। उसने अपने लिए न तो कोई पत्नी बनाई और न सन्तान
وَأَنَّهُ كَانَ يَقُولُ سَفِيهُنَا عَلَى اللَّهِ شَطَطًا4
"और यह कि हममें का मूर्ख व्यक्ति अल्लाह के विषय में सत्य से बिल्कुल हटी हुई बातें कहता रहा है
وَأَنَّا ظَنَنَّا أَنْ لَنْ تَقُولَ الْإِنْسُ وَالْجِنُّ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا5
"और यह कि हमने समझ रखा था कि मनुष्य और जिन्न अल्लाह के विषय में कभी झूठ नहीं बोलते
وَأَنَّهُ كَانَ رِجَالٌ مِنَ الْإِنْسِ يَعُوذُونَ بِرِجَالٍ مِنَ الْجِنِّ فَزَادُوهُمْ رَهَقًا6
"और यह कि मनुष्यों में से कितने ही पुरुष ऐसे थे, जो जिन्नों में से कितने ही पुरूषों की शरण माँगा करते थे। इसप्रकार उन्होंने उन्हें (जिन्नों को) और चढ़ा दिया
وَأَنَّهُمْ ظَنُّوا كَمَا ظَنَنْتُمْ أَنْ لَنْ يَبْعَثَ اللَّهُ أَحَدًا7
"और यह कि उन्होंने गुमान किया जैसे कि तुमने गुमान किया कि अल्लाह किसी (नबी) को कदापि न उठाएगा
وَأَنَّا لَمَسْنَا السَّمَاءَ فَوَجَدْنَاهَا مُلِئَتْ حَرَسًا شَدِيدًا وَشُهُبًا8
"और यह कि हमने आकाश को टटोला तो उसे सख़्त पहरेदारों और उल्काओं से भरा हुआ पाया
وَأَنَّا كُنَّا نَقْعُدُ مِنْهَا مَقَاعِدَ لِلسَّمْعِ ۖ فَمَنْ يَسْتَمِعِ الْآنَ يَجِدْ لَهُ شِهَابًا رَصَدًا9
"और यह कि हम उसमें बैठने के स्थानों में सुनने के लिए बैठा करते थे, किन्तु अब कोई सुनना चाहे तो वह अपने लिए घात में लगा एक उल्का पाएगा
وَأَنَّا لَا نَدْرِي أَشَرٌّ أُرِيدَ بِمَنْ فِي الْأَرْضِ أَمْ أَرَادَ بِهِمْ رَبُّهُمْ رَشَدًا10
"और यह कि हम नहीं जानते कि उन लोगों के साथ जो धरती में है बुराई का इरादा किया गया है या उनके रब ने उनके लिए भलाई और मार्गदर्शन का इरादा किय है
وَأَنَّا مِنَّا الصَّالِحُونَ وَمِنَّا دُونَ ذَٰلِكَ ۖ كُنَّا طَرَائِقَ قِدَدًا11
"और यह कि हममें से कुछ लोग अच्छे है और कुछ लोग उससे निम्नतर है, हम विभिन्न मार्गों पर है
وَأَنَّا ظَنَنَّا أَنْ لَنْ نُعْجِزَ اللَّهَ فِي الْأَرْضِ وَلَنْ نُعْجِزَهُ هَرَبًا12
"और यह कि हमने समझ लिया कि हम न धरती में कही जाकर अल्लाह के क़ाबू से निकल सकते है, और न आकाश में कहीं भागकर उसके क़ाबू से निकल सकते है
وَأَنَّا لَمَّا سَمِعْنَا الْهُدَىٰ آمَنَّا بِهِ ۖ فَمَنْ يُؤْمِنْ بِرَبِّهِ فَلَا يَخَافُ بَخْسًا وَلَا رَهَقًا13
"और यह कि जब हमने मार्गदर्शन की बात सुनी तो उसपर ईमान ले आए। अब तो कोई अपने रब पर ईमान लाएगा, उसे न तो किसी हक़ के मारे जाने का भय होगा और न किसी ज़ुल्म-ज़्यादती का
وَأَنَّا مِنَّا الْمُسْلِمُونَ وَمِنَّا الْقَاسِطُونَ ۖ فَمَنْ أَسْلَمَ فَأُولَـٰئِكَ تَحَرَّوْا رَشَدًا14
"और यह कि हममें से कुछ मुस्लिम (आज्ञाकारी) है और हममें से कुछ हक़ से हटे हुए है। तो जिन्होंने आज्ञापालन का मार्ग ग्रहण कर लिया उन्होंने भलाई और सूझ-बूझ की राह ढूँढ़ ली
وَأَمَّا الْقَاسِطُونَ فَكَانُوا لِجَهَنَّمَ حَطَبًا15
"रहे वे लोग जो हक़ से हटे हुए है, तो वे जहन्नम का ईधन होकर रहे।"
وَأَنْ لَوِ اسْتَقَامُوا عَلَى الطَّرِيقَةِ لَأَسْقَيْنَاهُمْ مَاءً غَدَقًا16
और वह प्रकाशना की गई है कि यदि वे सीधे मार्ग पर धैर्यपूर्वक चलते तो हम उन्हें पर्याप्त जल से अभिषिक्त करते,
لِنَفْتِنَهُمْ فِيهِ ۚ وَمَنْ يُعْرِضْ عَنْ ذِكْرِ رَبِّهِ يَسْلُكْهُ عَذَابًا صَعَدًا17
ताकि हम उसमें उनकी परीक्षा करें। और जो कोई अपने रब की याद से कतराएगा, तो वह उसे कठोर यातना में डाल देगा
وَأَنَّ الْمَسَاجِدَ لِلَّهِ فَلَا تَدْعُوا مَعَ اللَّهِ أَحَدًا18
और यह कि मस्जिदें अल्लाह के लिए है। अतः अल्लाह के साथ किसी और को न पुकारो
وَأَنَّهُ لَمَّا قَامَ عَبْدُ اللَّهِ يَدْعُوهُ كَادُوا يَكُونُونَ عَلَيْهِ لِبَدًا19
और यह कि "जब अल्लाह का बन्दा उसे पुकारता हुआ खड़ा हुआ तो वे ऐसे लगते है कि उसपर जत्थे बनकर टूट पड़ेगे।"
قُلْ إِنَّمَا أَدْعُو رَبِّي وَلَا أُشْرِكُ بِهِ أَحَدًا20
कह दो, "मैं तो बस अपने रब ही को पुकारता हूँ, और उसके साथ किसी को साझी नहीं ठहराता।"
قُلْ إِنِّي لَا أَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّا وَلَا رَشَدًا21
कह दो, "मैं तो तुम्हारे लिए न किसी हानि का अधिकार रखता हूँ और न किसी भलाई का।"
قُلْ إِنِّي لَنْ يُجِيرَنِي مِنَ اللَّهِ أَحَدٌ وَلَنْ أَجِدَ مِنْ دُونِهِ مُلْتَحَدًا22
कहो, "अल्लाह के मुक़ाबले में मुझे कोई पनाह नहीं दे सकता और न मैं उससे बचकर कतराने की कोई जगह पा सकता हूँ। -
إِلَّا بَلَاغًا مِنَ اللَّهِ وَرِسَالَاتِهِ ۚ وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَإِنَّ لَهُ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا23
"सिवाय अल्लाह की ओर से पहुँचने और उसके संदेश देने के। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा तो उसके लिए जहन्नम की आग है, जिसमें ऐसे लोग सदैव रहेंगे।"
حَتَّىٰ إِذَا رَأَوْا مَا يُوعَدُونَ فَسَيَعْلَمُونَ مَنْ أَضْعَفُ نَاصِرًا وَأَقَلُّ عَدَدًا24
यहाँ तक कि जब वे उस चीज़ को देख लेंगे जिसका उनसे वादा किया जाता है तो वे जान लेंगे कि कौन अपने सहायक की दृष्टि से कमज़ोर और संख्या में न्यूतर है
قُلْ إِنْ أَدْرِي أَقَرِيبٌ مَا تُوعَدُونَ أَمْ يَجْعَلُ لَهُ رَبِّي أَمَدًا25
कह दो, "मैं नहीं जानता कि जिस चीज़ का तुमसे वादा किया जाता है वह निकट है या मेरा रब उसके लिए लम्बी अवधि ठहराता है
عَالِمُ الْغَيْبِ فَلَا يُظْهِرُ عَلَىٰ غَيْبِهِ أَحَدًا26
"परोक्ष का जाननेवाला वही है और वह अपने परोक्ष को किसी पर प्रकट नहीं करता,
إِلَّا مَنِ ارْتَضَىٰ مِنْ رَسُولٍ فَإِنَّهُ يَسْلُكُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ رَصَدًا27
सिवाय उस व्यक्ति के जिसे उसने रसूल की हैसियत से पसन्द कर लिया हो तो उसके आगे से और उसके पीछे से निगरानी की पूर्ण व्यवस्था कर देता है,
لِيَعْلَمَ أَنْ قَدْ أَبْلَغُوا رِسَالَاتِ رَبِّهِمْ وَأَحَاطَ بِمَا لَدَيْهِمْ وَأَحْصَىٰ كُلَّ شَيْءٍ عَدَدًا28
ताकि वह यक़ीनी बना दे कि उन्होंने अपने रब के सन्देश पहुँचा दिए और जो कुछ उनके पास है उसे वह घेरे हुए है और हर चीज़ को उसने गिन रखा है।"
अल-मुज़्ज़म्मिल
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
يَا أَيُّهَا الْمُزَّمِّلُ1
ऐ कपड़े में लिपटनेवाले!
قُمِ اللَّيْلَ إِلَّا قَلِيلًا2
रात को उठकर (नमाज़ में) खड़े रहा करो - सिवाय थोड़ा हिस्सा -
نِصْفَهُ أَوِ انْقُصْ مِنْهُ قَلِيلًا3
आधी रात
أَوْ زِدْ عَلَيْهِ وَرَتِّلِ الْقُرْآنَ تَرْتِيلًا4
या उससे कुछ थोड़ा कम कर लो या उससे कुछ अधिक बढ़ा लो और क़ुरआन को भली-भाँति ठहर-ठहरकर पढ़ो। -
إِنَّا سَنُلْقِي عَلَيْكَ قَوْلًا ثَقِيلًا5
निश्चय ही हम तुमपर एक भारी बात डालनेवाले है
إِنَّ نَاشِئَةَ اللَّيْلِ هِيَ أَشَدُّ وَطْئًا وَأَقْوَمُ قِيلًا6
निस्संदेह रात का उठना अत्यन्त अनुकूलता रखता है और बात भी उसमें अत्यन्त सधी हुई होती है
إِنَّ لَكَ فِي النَّهَارِ سَبْحًا طَوِيلًا7
निश्चय ही तुम्हार लिए दिन में भी (तसबीह की) बड़ी गुंजाइश है। -
وَاذْكُرِ اسْمَ رَبِّكَ وَتَبَتَّلْ إِلَيْهِ تَبْتِيلًا8
और अपने रब के नाम का ज़िक्र किया करो और सबसे कटकर उसी के हो रहो।
رَبُّ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ لَا إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ فَاتَّخِذْهُ وَكِيلًا9
वह पूर्व और पश्चिम का रब है, उसके सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं, अतः तुम उसी को अपना कार्यसाधक बना लो
وَاصْبِرْ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَاهْجُرْهُمْ هَجْرًا جَمِيلًا10
और जो कुछ वे कहते है उसपर धैर्य से काम लो और भली रीति से उनसे अलग हो जाओ
وَذَرْنِي وَالْمُكَذِّبِينَ أُولِي النَّعْمَةِ وَمَهِّلْهُمْ قَلِيلًا11
और तुम मुझे और झूठलानेवाले सुख-सम्पन्न लोगों को छोड़ दो और उन्हें थोड़ी मुहलत दो
إِنَّ لَدَيْنَا أَنْكَالًا وَجَحِيمًا12
निश्चय ही हमारे पास बेड़ियाँ है और भड़कती हुई आग
وَطَعَامًا ذَا غُصَّةٍ وَعَذَابًا أَلِيمًا13
और गले में अटकनेवाला भोजन है और दुखद यातना,
يَوْمَ تَرْجُفُ الْأَرْضُ وَالْجِبَالُ وَكَانَتِ الْجِبَالُ كَثِيبًا مَهِيلًا14
जिस दिन धरती और पहाड़ काँप उठेंगे, और पहाड़ रेत के ऐसे ढेर होकर रह जाएगे जो बिखरे जा रहे होंगे
إِنَّا أَرْسَلْنَا إِلَيْكُمْ رَسُولًا شَاهِدًا عَلَيْكُمْ كَمَا أَرْسَلْنَا إِلَىٰ فِرْعَوْنَ رَسُولًا15
निश्चय ही हुमने तुम्हारी ओर एक रसूल तुमपर गवाह बनाकर भेजा है, जिस प्रकार हमने फ़़िरऔन की ओर एक रसूल भेजा था
فَعَصَىٰ فِرْعَوْنُ الرَّسُولَ فَأَخَذْنَاهُ أَخْذًا وَبِيلًا16
किन्तु फ़िरऔन ने रसूल की अवज्ञा कि, तो हमने उसे पकड़ लिया और यह पकड़ सख़्त वबाल थी
فَكَيْفَ تَتَّقُونَ إِنْ كَفَرْتُمْ يَوْمًا يَجْعَلُ الْوِلْدَانَ شِيبًا17
यदि तुमने इनकार किया तो उस दिन से कैसे बचोगे जो बच्चों को बूढा कर देगा?
السَّمَاءُ مُنْفَطِرٌ بِهِ ۚ كَانَ وَعْدُهُ مَفْعُولًا18
आकाश उसके कारण फटा पड़ रहा है, उसका वादा तो पूरा ही होना है
إِنَّ هَـٰذِهِ تَذْكِرَةٌ ۖ فَمَنْ شَاءَ اتَّخَذَ إِلَىٰ رَبِّهِ سَبِيلًا19
निश्चय ही यह एक अनुस्मृति है। अब जो चाहे अपने रब की ओर मार्ग ग्रहण कर ले
إِنَّ رَبَّكَ يَعْلَمُ أَنَّكَ تَقُومُ أَدْنَىٰ مِنْ ثُلُثَيِ اللَّيْلِ وَنِصْفَهُ وَثُلُثَهُ وَطَائِفَةٌ مِنَ الَّذِينَ مَعَكَ ۚ وَاللَّهُ يُقَدِّرُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ ۚ عَلِمَ أَنْ لَنْ تُحْصُوهُ فَتَابَ عَلَيْكُمْ ۖ فَاقْرَءُوا مَا تَيَسَّرَ مِنَ الْقُرْآنِ ۚ عَلِمَ أَنْ سَيَكُونُ مِنْكُمْ مَرْضَىٰ ۙ وَآخَرُونَ يَضْرِبُونَ فِي الْأَرْضِ يَبْتَغُونَ مِنْ فَضْلِ اللَّهِ ۙ وَآخَرُونَ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۖ فَاقْرَءُوا مَا تَيَسَّرَ مِنْهُ ۚ وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَأَقْرِضُوا اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا ۚ وَمَا تُقَدِّمُوا لِأَنْفُسِكُمْ مِنْ خَيْرٍ تَجِدُوهُ عِنْدَ اللَّهِ هُوَ خَيْرًا وَأَعْظَمَ أَجْرًا ۚ وَاسْتَغْفِرُوا اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ20
निस्संदेह तुम्हारा रब जानता है कि तुम लगभग दो तिहाई रात, आधी रात और एक तिहाई रात तक (नमाज़ में) खड़े रहते हो, और एक गिरोंह उन लोगों में से भी जो तुम्हारे साथ है, खड़ा होता है। और अल्लाह रात और दिन की घट-बढ़ नियत करता है। उसे मालूम है कि तुम सब उसका निर्वाह न कर सकोगे, अतः उसने तुमपर दया-दृष्टि की। अब जितना क़ुरआन आसानी से हो सके पढ़ लिया करो। उसे मालूम है कि तुममे से कुछ बीमार भी होंगे, और कुछ दूसरे लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह (रोज़ी) को ढूँढ़ते हुए धरती में यात्रा करेंगे, कुछ दूसरे लोग अल्लाह के मार्ग में युद्ध करेंगे। अतः उसमें से जितना आसानी से हो सके पढ़ लिया करो, और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात देते रहो, और अल्लाह को ऋण दो, अच्छा ऋण। तुम जो भलाई भी अपने लिए (आगे) भेजोगे उसे अल्लाह के यहाँ अत्युत्तम और प्रतिदान की दृष्टि से बहुत बढ़कर पाओगे। और अल्लाह से माफ़ी माँगते रहो। बेशक अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है
अल-मुद्दस्सिर
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
يَا أَيُّهَا الْمُدَّثِّرُ1
ऐ ओढ़ने लपेटनेवाले!
قُمْ فَأَنْذِرْ2
उठो, और सावधान करने में लग जाओ
وَرَبَّكَ فَكَبِّرْ3
और अपने रब की बड़ाई ही करो
وَثِيَابَكَ فَطَهِّرْ4
अपने दामन को पाक रखो
وَالرُّجْزَ فَاهْجُرْ5
और गन्दगी से दूर ही रहो
وَلَا تَمْنُنْ تَسْتَكْثِرُ6
अपनी कोशिशों को अधिक समझकर उसके क्रम को भंग न करो
وَلِرَبِّكَ فَاصْبِرْ7
और अपने रब के लिए धैर्य ही से काम लो
فَإِذَا نُقِرَ فِي النَّاقُورِ8
जब सूर में फूँक मारी जाएगी
فَذَٰلِكَ يَوْمَئِذٍ يَوْمٌ عَسِيرٌ9
तो जिस दिन ऐसा होगा, वह दिन बड़ा ही कठोर होगा,
عَلَى الْكَافِرِينَ غَيْرُ يَسِيرٍ10
इनकार करनेवालो पर आसान न होगा
ذَرْنِي وَمَنْ خَلَقْتُ وَحِيدًا11
छोड़ दो मुझे और उसको जिसे मैंने अकेला पैदा किया,
وَجَعَلْتُ لَهُ مَالًا مَمْدُودًا12
और उसे माल दिया दूर तक फैला हुआ,
وَبَنِينَ شُهُودًا13
और उसके पास उपस्थित रहनेवाले बेटे दिए,
وَمَهَّدْتُ لَهُ تَمْهِيدًا14
और मैंने उसके लिए अच्छी तरह जीवन-मार्ग समतल किया
ثُمَّ يَطْمَعُ أَنْ أَزِيدَ15
फिर वह लोभ रखता है कि मैं उसके लिए और अधिक दूँगा
كَلَّا ۖ إِنَّهُ كَانَ لِآيَاتِنَا عَنِيدًا16
कदापि नहीं, वह हमारी आयतों का दुश्मन है,
سَأُرْهِقُهُ صَعُودًا17
शीघ्र ही मैं उसे घेरकर कठिन चढ़ाई चढ़वाऊँगा
إِنَّهُ فَكَّرَ وَقَدَّرَ18
उसने सोचा और अटकल से एक बात बनाई
فَقُتِلَ كَيْفَ قَدَّرَ19
तो विनष्ट हो, कैसी बात बनाई!
ثُمَّ قُتِلَ كَيْفَ قَدَّرَ20
फिर विनष्ट हो, कैसी बात बनाई!
ثُمَّ نَظَرَ21
फिर नज़र दौड़ाई,
ثُمَّ عَبَسَ وَبَسَرَ22
फिर त्योरी चढ़ाई और मुँह बनाया,
ثُمَّ أَدْبَرَ وَاسْتَكْبَرَ23
फिर पीठ फेरी और घमंड किया
فَقَالَ إِنْ هَـٰذَا إِلَّا سِحْرٌ يُؤْثَرُ24
अन्ततः बोला, "यह तो बस एक जादू है, जो पहले से चला आ रहा है
إِنْ هَـٰذَا إِلَّا قَوْلُ الْبَشَرِ25
"यह तो मात्र मनुष्य की वाणी है।"
سَأُصْلِيهِ سَقَرَ26
मैं शीघ्र ही उसे 'सक़र' (जहन्नम की आग) में झोंक दूँगा
وَمَا أَدْرَاكَ مَا سَقَرُ27
और तुम्हें क्या पता की सक़र क्या है?
لَا تُبْقِي وَلَا تَذَرُ28
वह न तरस खाएगी और न छोड़ेगी,
لَوَّاحَةٌ لِلْبَشَرِ29
खाल को झुलसा देनेवाली है,
عَلَيْهَا تِسْعَةَ عَشَرَ30
उसपर उन्नीस (कार्यकर्ता) नियुक्त है
وَمَا جَعَلْنَا أَصْحَابَ النَّارِ إِلَّا مَلَائِكَةً ۙ وَمَا جَعَلْنَا عِدَّتَهُمْ إِلَّا فِتْنَةً لِلَّذِينَ كَفَرُوا لِيَسْتَيْقِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَيَزْدَادَ الَّذِينَ آمَنُوا إِيمَانًا ۙ وَلَا يَرْتَابَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَالْمُؤْمِنُونَ ۙ وَلِيَقُولَ الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ وَالْكَافِرُونَ مَاذَا أَرَادَ اللَّهُ بِهَـٰذَا مَثَلًا ۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ اللَّهُ مَنْ يَشَاءُ وَيَهْدِي مَنْ يَشَاءُ ۚ وَمَا يَعْلَمُ جُنُودَ رَبِّكَ إِلَّا هُوَ ۚ وَمَا هِيَ إِلَّا ذِكْرَىٰ لِلْبَشَرِ31
और हमने उस आग पर नियुक्त रहनेवालों को फ़रिश्ते ही बनाया है, और हमने उनकी संख्या को इनकार करनेवालों के लिए मुसीबत और आज़माइश ही बनाकर रखा है। ताकि वे लोग जिन्हें किताब प्रदान की गई थी पूर्ण विश्वास प्राप्त करें, और वे लोग जो ईमान ले आए वे ईमान में और आगे बढ़ जाएँ। और जिन लोगों को किताब प्रदान की गई वे और ईमानवाले किसी संशय मे न पड़े, और ताकि जिनके दिलों मे रोग है वे और इनकार करनेवाले कहें, "इस वर्णन से अल्लाह का क्या अभिप्राय है?" इस प्रकार अल्लाह जिसे चाहता है पथभ्रष्ट कर देता है और जिसे चाहता हैं संमार्ग प्रदान करता है। और तुम्हारे रब की सेनाओं को स्वयं उसके सिवा कोई नहीं जानता, और यह तो मनुष्य के लिए मात्र एक शिक्षा-सामग्री है
كَلَّا وَالْقَمَرِ32
कुछ नहीं, साक्षी है चाँद
وَاللَّيْلِ إِذْ أَدْبَرَ33
और साक्षी है रात जबकि वह पीठ फेर चुकी,
وَالصُّبْحِ إِذَا أَسْفَرَ34
और प्रातःकाल जबकि वह पूर्णरूपेण प्रकाशित हो जाए।
إِنَّهَا لَإِحْدَى الْكُبَرِ35
निश्चय ही वह भारी (भयंकर) चीज़ों में से एक है,
نَذِيرًا لِلْبَشَرِ36
मनुष्यों के लिए सावधानकर्ता के रूप में,
لِمَنْ شَاءَ مِنْكُمْ أَنْ يَتَقَدَّمَ أَوْ يَتَأَخَّرَ37
तुममें से उस व्यक्ति के लिए जो आगे बढ़ना या पीछे हटना चाहे
كُلُّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ رَهِينَةٌ38
प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ उसने कमाया उसके बदले रेहन (गिरवी) है,
إِلَّا أَصْحَابَ الْيَمِينِ39
सिवाय दाएँवालों के
فِي جَنَّاتٍ يَتَسَاءَلُونَ40
वे बाग़ों में होंगे, पूछ-ताछ कर रहे होंगे
عَنِ الْمُجْرِمِينَ41
अपराधियों के विषय में
مَا سَلَكَكُمْ فِي سَقَرَ42
"तुम्हे क्या चीज़ सकंर (जहन्नम) में ले आई?"
قَالُوا لَمْ نَكُ مِنَ الْمُصَلِّينَ43
वे कहेंगे, "हम नमाज़ अदा करनेवालों में से न थे।
وَلَمْ نَكُ نُطْعِمُ الْمِسْكِينَ44
और न हम मुहताज को खाना खिलाते थे
وَكُنَّا نَخُوضُ مَعَ الْخَائِضِينَ45
"और व्यर्थ बात और कठ-हुज्जती में पड़े रहनेवालों के साथ हम भी उसी में लगे रहते थे।
وَكُنَّا نُكَذِّبُ بِيَوْمِ الدِّينِ46
और हम बदला दिए जाने के दिन को झुठलाते थे,
حَتَّىٰ أَتَانَا الْيَقِينُ47
"यहाँ तक कि विश्वसनीय चीज़ (प्रलय-दिवस) में हमें आ लिया।"
فَمَا تَنْفَعُهُمْ شَفَاعَةُ الشَّافِعِينَ48
अतः सिफ़ारिश करनेवालों को कोई सिफ़ारिश उनको कुछ लाभ न पहुँचा सकेगी
فَمَا لَهُمْ عَنِ التَّذْكِرَةِ مُعْرِضِينَ49
आख़िर उन्हें क्या हुआ है कि वे नसीहत से कतराते है,
كَأَنَّهُمْ حُمُرٌ مُسْتَنْفِرَةٌ50
मानो वे बिदके हुए जंगली गधे है
فَرَّتْ مِنْ قَسْوَرَةٍ51
जो शेर से (डरकर) भागे है?
بَلْ يُرِيدُ كُلُّ امْرِئٍ مِنْهُمْ أَنْ يُؤْتَىٰ صُحُفًا مُنَشَّرَةً52
नहीं, बल्कि उनमें से प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे खुली किताबें दी जाएँ
كَلَّا ۖ بَلْ لَا يَخَافُونَ الْآخِرَةَ53
कदापि नहीं, बल्कि ले आख़िरत से डरते नहीं
كَلَّا إِنَّهُ تَذْكِرَةٌ54
कुछ नहीं, वह तो एक अनुस्मति है
فَمَنْ شَاءَ ذَكَرَهُ55
अब जो कोई चाहे इससे नसीहत हासिल करे,
وَمَا يَذْكُرُونَ إِلَّا أَنْ يَشَاءَ اللَّهُ ۚ هُوَ أَهْلُ التَّقْوَىٰ وَأَهْلُ الْمَغْفِرَةِ56
और वे नसीहत हासिल नहीं करेंगे। यह और बात है कि अल्लाह ही ऐसा चाहे। वही इस योग्य है कि उसका डर रखा जाए और इस योग्य भी कि क्षमा करे
अल-क़ियामा
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
لَا أُقْسِمُ بِيَوْمِ الْقِيَامَةِ1
नहीं, मैं क़सम खाता हूँ क़ियामत के दिन की,
وَلَا أُقْسِمُ بِالنَّفْسِ اللَّوَّامَةِ2
और नहीं! मैं कसम खाता हूँ मलामत करनेवाली आत्मा की
أَيَحْسَبُ الْإِنْسَانُ أَلَّنْ نَجْمَعَ عِظَامَهُ3
क्या मनुष्य यह समझता है कि हम कदापि उसकी हड्डियों को एकत्र न करेंगे?
بَلَىٰ قَادِرِينَ عَلَىٰ أَنْ نُسَوِّيَ بَنَانَهُ4
क्यों नहीं, हम उसकी पोरों को ठीक-ठाक करने की सामर्थ्य रखते है
بَلْ يُرِيدُ الْإِنْسَانُ لِيَفْجُرَ أَمَامَهُ5
बल्कि मनुष्य चाहता है कि अपने आगे ढिठाई करता रहे
يَسْأَلُ أَيَّانَ يَوْمُ الْقِيَامَةِ6
पूछता है, "आख़िर क़ियामत का दिन कब आएगा?"
فَإِذَا بَرِقَ الْبَصَرُ7
तो जब निगाह चौंधिया जाएगी,
وَخَسَفَ الْقَمَرُ8
और चन्द्रमा को ग्रहण लग जाएगा,
وَجُمِعَ الشَّمْسُ وَالْقَمَرُ9
और सूर्य और चन्द्रमा इकट्ठे कर दिए जाएँगे,
يَقُولُ الْإِنْسَانُ يَوْمَئِذٍ أَيْنَ الْمَفَرُّ10
उस दिन मनुष्य कहेगा, "कहाँ जाऊँ भागकर?"
كَلَّا لَا وَزَرَ11
कुछ नहीं, कोई शरण-स्थल नहीं!
إِلَىٰ رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمُسْتَقَرُّ12
उस दिन तुम्हारे रब ही ओर जाकर ठहरना है
يُنَبَّأُ الْإِنْسَانُ يَوْمَئِذٍ بِمَا قَدَّمَ وَأَخَّرَ13
उस दिन मनुष्य को बता दिया जाएगा जो कुछ उसने आगे बढाया और पीछे टाला
بَلِ الْإِنْسَانُ عَلَىٰ نَفْسِهِ بَصِيرَةٌ14
नहीं, बल्कि मनुष्य स्वयं अपने हाल पर निगाह रखता है,
وَلَوْ أَلْقَىٰ مَعَاذِيرَهُ15
यद्यपि उसने अपने कितने ही बहाने पेश किए हो
لَا تُحَرِّكْ بِهِ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِ16
तू उसे शीघ्र पाने के लिए उसके प्रति अपनी ज़बान को न चला
إِنَّ عَلَيْنَا جَمْعَهُ وَقُرْآنَهُ17
हमारे ज़िम्मे है उसे एकत्र करना और उसका पढ़ना,
فَإِذَا قَرَأْنَاهُ فَاتَّبِعْ قُرْآنَهُ18
अतः जब हम उसे पढ़े तो उसके पठन का अनुसरण कर,
ثُمَّ إِنَّ عَلَيْنَا بَيَانَهُ19
फिर हमारे ज़िम्मे है उसका स्पष्टीकरण करना
كَلَّا بَلْ تُحِبُّونَ الْعَاجِلَةَ20
कुछ नहीं, बल्कि तुम लोग शीघ्र मिलनेवाली चीज़ (दुनिया) से प्रेम रखते हो,
وَتَذَرُونَ الْآخِرَةَ21
और आख़िरत को छोड़ रहे हो
وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ نَاضِرَةٌ22
किनते ही चहरे उस दिन तरो ताज़ा और प्रफुल्लित होंगे,
إِلَىٰ رَبِّهَا نَاظِرَةٌ23
अपने रब की ओर देख रहे होंगे।
وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ بَاسِرَةٌ24
और कितने ही चेहरे उस दिन उदास और बिगड़े हुए होंगे,
تَظُنُّ أَنْ يُفْعَلَ بِهَا فَاقِرَةٌ25
समझ रहे होंगे कि उनके साथ कमर तोड़ देनेवाला मामला किया जाएगा
كَلَّا إِذَا بَلَغَتِ التَّرَاقِيَ26
कुछ नहीं, जब प्राण कंठ को आ लगेंगे,
وَقِيلَ مَنْ ۜ رَاقٍ27
और कहा जाएगा, "कौन है झाड़-फूँक करनेवाला?"
وَظَنَّ أَنَّهُ الْفِرَاقُ28
और वह समझ लेगा कि वह जुदाई (का समय) है
وَالْتَفَّتِ السَّاقُ بِالسَّاقِ29
और पिंडली से पिंडली लिपट जाएगी,
إِلَىٰ رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمَسَاقُ30
तुम्हारे रब की ओर उस दिन प्रस्थान होगा
فَلَا صَدَّقَ وَلَا صَلَّىٰ31
किन्तु उसने न तो सत्य माना और न नमाज़ अदा की,
وَلَـٰكِنْ كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ32
लेकिन झुठलाया और मुँह मोड़ा,
ثُمَّ ذَهَبَ إِلَىٰ أَهْلِهِ يَتَمَطَّىٰ33
फिर अकड़ता हुआ अपने लोगों की ओर चल दिया
أَوْلَىٰ لَكَ فَأَوْلَىٰ34
अफ़सोस है तुझपर और अफ़सोस है!
ثُمَّ أَوْلَىٰ لَكَ فَأَوْلَىٰ35
फिर अफ़सोस है तुझपर और अफ़सोस है!
أَيَحْسَبُ الْإِنْسَانُ أَنْ يُتْرَكَ سُدًى36
क्या मनुष्य समझता है कि वह यूँ ही स्वतंत्र छोड़ दिया जाएगा?
أَلَمْ يَكُ نُطْفَةً مِنْ مَنِيٍّ يُمْنَىٰ37
क्या वह केवल टपकाए हुए वीर्य की एक बूँद न था?
ثُمَّ كَانَ عَلَقَةً فَخَلَقَ فَسَوَّىٰ38
फिर वह रक्त की एक फुटकी हुआ, फिर अल्लाह ने उसे रूप दिया और उसके अंग-प्रत्यंग ठीक-ठाक किए
فَجَعَلَ مِنْهُ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنْثَىٰ39
और उसकी दो जातियाँ बनाई - पुरुष और स्त्री
أَلَيْسَ ذَٰلِكَ بِقَادِرٍ عَلَىٰ أَنْ يُحْيِيَ الْمَوْتَىٰ40
क्या उसे वह सामर्थ्य प्राप्त- नहीं कि वह मुर्दों को जीवित कर दे?
अल-इंसान
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
هَلْ أَتَىٰ عَلَى الْإِنْسَانِ حِينٌ مِنَ الدَّهْرِ لَمْ يَكُنْ شَيْئًا مَذْكُورًا1
क्या मनुष्य पर काल-खंड का ऐसा समय भी बीता है कि वह कोई ऐसी चीज़ न था जिसका उल्लेख किया जाता?
إِنَّا خَلَقْنَا الْإِنْسَانَ مِنْ نُطْفَةٍ أَمْشَاجٍ نَبْتَلِيهِ فَجَعَلْنَاهُ سَمِيعًا بَصِيرًا2
हमने मनुष्य को एक मिश्रित वीर्य से पैदा किया, उसे उलटते-पलटते रहे, फिर हमने उसे सुनने और देखनेवाला बना दिया
إِنَّا هَدَيْنَاهُ السَّبِيلَ إِمَّا شَاكِرًا وَإِمَّا كَفُورًا3
हमने उसे मार्ग दिखाया, अब चाहे वह कृतज्ञ बने या अकृतज्ञ
إِنَّا أَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ سَلَاسِلَ وَأَغْلَالًا وَسَعِيرًا4
हमने इनकार करनेवालों के लिए ज़जीरें और तौक़ और भड़कती हुई आग तैयार कर रखी है
إِنَّ الْأَبْرَارَ يَشْرَبُونَ مِنْ كَأْسٍ كَانَ مِزَاجُهَا كَافُورًا5
निश्चय ही वफ़ादार लोग ऐसे जाम से पिएँगे जिसमें काफ़ूर का मिश्रण होगा,
عَيْنًا يَشْرَبُ بِهَا عِبَادُ اللَّهِ يُفَجِّرُونَهَا تَفْجِيرًا6
उस स्रोत का क्या कहना! जिस पर बैठकर अल्लाह के बन्दे पिएँगे, इस तरह कि उसे बहा-बहाकर (जहाँ चाहेंगे) ले जाएँगे
يُوفُونَ بِالنَّذْرِ وَيَخَافُونَ يَوْمًا كَانَ شَرُّهُ مُسْتَطِيرًا7
वे नज़र (मन्नत) पूरी करते है और उस दिन से डरते है जिसकी आपदा व्यापक होगी,
وَيُطْعِمُونَ الطَّعَامَ عَلَىٰ حُبِّهِ مِسْكِينًا وَيَتِيمًا وَأَسِيرًا8
और वे मुहताज, अनाथ और क़ैदी को खाना उसकी चाहत रखते हुए खिलाते है,
إِنَّمَا نُطْعِمُكُمْ لِوَجْهِ اللَّهِ لَا نُرِيدُ مِنْكُمْ جَزَاءً وَلَا شُكُورًا9
"हम तो केवल अल्लाह की प्रसन्नता के लिए तुम्हें खिलाते है, तुमसे न कोई बदला चाहते है और न कृतज्ञता ज्ञापन
إِنَّا نَخَافُ مِنْ رَبِّنَا يَوْمًا عَبُوسًا قَمْطَرِيرًا10
"हमें तो अपने रब की ओर से एक ऐसे दिन का भय है जो त्योरी पर बल डाले हुए अत्यन्त क्रूर होगा।"
فَوَقَاهُمُ اللَّهُ شَرَّ ذَٰلِكَ الْيَوْمِ وَلَقَّاهُمْ نَضْرَةً وَسُرُورًا11
अतः अल्लाह ने उस दिन की बुराई से बचा लिया और उन्हें ताज़गी और ख़ुशी प्रदान की,
وَجَزَاهُمْ بِمَا صَبَرُوا جَنَّةً وَحَرِيرًا12
और जो उन्होंने धैर्य से काम लिया, उसके बदले में उन्हें जन्नत और रेशमी वस्त्र प्रदान किया
مُتَّكِئِينَ فِيهَا عَلَى الْأَرَائِكِ ۖ لَا يَرَوْنَ فِيهَا شَمْسًا وَلَا زَمْهَرِيرًا13
उसमें वे तख़्तों पर टेक लगाए होंगे, वे उसमें न तो सख़्त धूप देखेंगे औ न सख़्त ठंड़
وَدَانِيَةً عَلَيْهِمْ ظِلَالُهَا وَذُلِّلَتْ قُطُوفُهَا تَذْلِيلًا14
और उस (बाग़) के साए उनपर झुके होंगे और उसके फलों के गुच्छे बिलकुल उनके वश में होंगे
وَيُطَافُ عَلَيْهِمْ بِآنِيَةٍ مِنْ فِضَّةٍ وَأَكْوَابٍ كَانَتْ قَوَارِيرَا15
और उनके पास चाँदी के बरतन ग़र्दिश में होंगे और प्याले
قَوَارِيرَ مِنْ فِضَّةٍ قَدَّرُوهَا تَقْدِيرًا16
जो बिल्कुल शीशे हो रहे होंगे, शीशे भी चाँदी के जो ठीक अन्दाज़े करके रखे गए होंगे
وَيُسْقَوْنَ فِيهَا كَأْسًا كَانَ مِزَاجُهَا زَنْجَبِيلًا17
और वहाँ वे एक और जाम़ पिएँगे जिसमें सोंठ का मिश्रण होगा
عَيْنًا فِيهَا تُسَمَّىٰ سَلْسَبِيلًا18
क्या कहना उस स्रोत का जो उसमें होगा, जिसका नाम सल-सबील है
وَيَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُخَلَّدُونَ إِذَا رَأَيْتَهُمْ حَسِبْتَهُمْ لُؤْلُؤًا مَنْثُورًا19
उनकी सेवा में ऐसे किशोर दौड़ते रहे होंगे जो सदैव किशोर ही रहेंगे। जब तुम उन्हें देखोगे तो समझोगे कि बिखरे हुए मोती है
وَإِذَا رَأَيْتَ ثَمَّ رَأَيْتَ نَعِيمًا وَمُلْكًا كَبِيرًا20
जब तुम वहाँ देखोगे तो तुम्हें बड़ी नेमत और विशाल राज्य दिखाई देगा
عَالِيَهُمْ ثِيَابُ سُنْدُسٍ خُضْرٌ وَإِسْتَبْرَقٌ ۖ وَحُلُّوا أَسَاوِرَ مِنْ فِضَّةٍ وَسَقَاهُمْ رَبُّهُمْ شَرَابًا طَهُورًا21
उनके ऊपर हरे बारीक हरे बारीक रेशमी वस्त्र और गाढ़े रेशमी कपड़े होंगे, और उन्हें चाँदी के कंगन पहनाए जाएँगे और उनका रब उन्हें पवित्र पेय पिलाएगा
إِنَّ هَـٰذَا كَانَ لَكُمْ جَزَاءً وَكَانَ سَعْيُكُمْ مَشْكُورًا22
"यह है तुम्हारा बदला और तुम्हारा प्रयास क़द्र करने के योग्य है।"
إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا عَلَيْكَ الْقُرْآنَ تَنْزِيلًا23
निश्चय ही हमने अत्यन्त व्यवस्थित ढंग से तुमपर क़ुरआन अवतरित किया है;
فَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ وَلَا تُطِعْ مِنْهُمْ آثِمًا أَوْ كَفُورًا24
अतः अपने रब के हुक्म और फ़ैसले के लिए धैर्य से काम लो और उनमें से किसी पापी या कृतघ्न का आज्ञापालन न करना
وَاذْكُرِ اسْمَ رَبِّكَ بُكْرَةً وَأَصِيلًا25
और प्रातःकाल और संध्या समय अपने रब के नाम का स्मरण करो
وَمِنَ اللَّيْلِ فَاسْجُدْ لَهُ وَسَبِّحْهُ لَيْلًا طَوِيلًا26
और रात के कुछ हिस्से में भी उसे सजदा करो, लम्बी-लम्बी रात तक उसकी तसबीह करते रहो
إِنَّ هَـٰؤُلَاءِ يُحِبُّونَ الْعَاجِلَةَ وَيَذَرُونَ وَرَاءَهُمْ يَوْمًا ثَقِيلًا27
निस्संदेह ये लोग शीघ्र प्राप्त होनेवाली चीज़ (संसार) से प्रेम रखते है और एक भारी दिन को अपने परे छोड़ रह है
نَحْنُ خَلَقْنَاهُمْ وَشَدَدْنَا أَسْرَهُمْ ۖ وَإِذَا شِئْنَا بَدَّلْنَا أَمْثَالَهُمْ تَبْدِيلًا28
हमने उन्हें पैदा किया और उनके जोड़-बन्द मज़बूत किेए और हम जब चाहे उन जैसों को पूर्णतः बदल दें
إِنَّ هَـٰذِهِ تَذْكِرَةٌ ۖ فَمَنْ شَاءَ اتَّخَذَ إِلَىٰ رَبِّهِ سَبِيلًا29
निश्चय ही यह एक अनुस्मृति है, अब जो चाहे अपने रब की ओर मार्ग ग्रहण कर ले
وَمَا تَشَاءُونَ إِلَّا أَنْ يَشَاءَ اللَّهُ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا30
और तुम नहीं चाह सकते सिवाय इसके कि अल्लाह चाहे। निस्संदेह अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है
يُدْخِلُ مَنْ يَشَاءُ فِي رَحْمَتِهِ ۚ وَالظَّالِمِينَ أَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا31
वह जिसे चाहता है अपनी दयालुता में दाख़िल करता है। रहे ज़ालिम, तो उनके लिए उसने दुखद यातना तैयार कर रखी है
अल-मुरसालात
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالْمُرْسَلَاتِ عُرْفًا1
साक्षी है वे (हवाएँ) जिनकी चोटी छोड़ दी जाती है
فَالْعَاصِفَاتِ عَصْفًا2
फिर ख़ूब तेज़ हो जाती है,
وَالنَّاشِرَاتِ نَشْرًا3
और (बादलों को) उठाकर फैलाती है,
فَالْفَارِقَاتِ فَرْقًا4
फिर मामला करती है अलग-अलग,
فَالْمُلْقِيَاتِ ذِكْرًا5
फिर पेश करती है याददिहानी
عُذْرًا أَوْ نُذْرًا6
इल्ज़ाम उतारने या चेतावनी देने के लिए,
إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَوَاقِعٌ7
निस्संदेह जिसका वादा तुमसे किया जा रहा है वह निश्चित ही घटित होकर रहेगा
فَإِذَا النُّجُومُ طُمِسَتْ8
अतः जब तारे विलुप्त (प्रकाशहीन) हो जाएँगे,
وَإِذَا السَّمَاءُ فُرِجَتْ9
और जब आकाश फट जाएगा
وَإِذَا الْجِبَالُ نُسِفَتْ10
और पहाड़ चूर्ण-विचूर्ण होकर बिखर जाएँगे;
وَإِذَا الرُّسُلُ أُقِّتَتْ11
और जब रसूलों का हाल यह होगा कि उन का समय नियत कर दिया गया होगा -
لِأَيِّ يَوْمٍ أُجِّلَتْ12
किस दिन के लिए वे टाले गए है?
لِيَوْمِ الْفَصْلِ13
फ़ैसले के दिन के लिए
وَمَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الْفَصْلِ14
और तुम्हें क्या मालूम कि वह फ़ैसले का दिन क्या है? -
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ15
तबाही है उस दिन झूठलाने-वालों की!
أَلَمْ نُهْلِكِ الْأَوَّلِينَ16
क्या ऐसा नहीं हुआ कि हमने पहलों को विनष्ट किया?
ثُمَّ نُتْبِعُهُمُ الْآخِرِينَ17
फिर उन्हीं के पीछे बादवालों को भी लगाते रहे?
كَذَٰلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ18
अपराधियों के साथ हम ऐसा ही करते है
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ19
तबाही है उस दिन झुठलानेवालो की!
أَلَمْ نَخْلُقْكُمْ مِنْ مَاءٍ مَهِينٍ20
क्या ऐस नहीं है कि हमने तुम्हे तुच्छ जल से पैदा किया,
فَجَعَلْنَاهُ فِي قَرَارٍ مَكِينٍ21
फिर हमने उसे एक सुरक्षित टिकने की जगह रखा,
إِلَىٰ قَدَرٍ مَعْلُومٍ22
एक ज्ञात और निश्चित अवधि तक?
فَقَدَرْنَا فَنِعْمَ الْقَادِرُونَ23
फिर हमने अन्दाजा ठहराया, तो हम क्या ही अच्छा अन्दाज़ा ठहरानेवाले है
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ24
तबाही है उस दिन झूठलानेवालों की!
أَلَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ كِفَاتًا25
क्या ऐसा नहीं है कि हमने धरती को समेट रखनेवाली बनाया,
أَحْيَاءً وَأَمْوَاتًا26
ज़िन्दों को भी और मुर्दों को भी,
وَجَعَلْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ شَامِخَاتٍ وَأَسْقَيْنَاكُمْ مَاءً فُرَاتًا27
और उसमें ऊँचे-ऊँचे पहाड़ जमाए और तुम्हें मीठा पानी पिलाया?
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ28
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
انْطَلِقُوا إِلَىٰ مَا كُنْتُمْ بِهِ تُكَذِّبُونَ29
चलो उस चीज़ की ओर जिसे तुम झुठलाते रहे हो!
انْطَلِقُوا إِلَىٰ ظِلٍّ ذِي ثَلَاثِ شُعَبٍ30
चलो तीन शाखाओंवाली छाया की ओर,
لَا ظَلِيلٍ وَلَا يُغْنِي مِنَ اللَّهَبِ31
जिसमें न छाँव है और न वह अग्नि-ज्वाला से बचा सकती है
إِنَّهَا تَرْمِي بِشَرَرٍ كَالْقَصْرِ32
निस्संदेह वे (ज्वालाएँ) महल जैसी (ऊँची) चिंगारियाँ फेंकती है
كَأَنَّهُ جِمَالَتٌ صُفْرٌ33
मानो वे पीले ऊँट हैं!
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ34
तबाही है उस झुठलानेवालों की!
هَـٰذَا يَوْمُ لَا يَنْطِقُونَ35
यह वह दिन है कि वे कुछ बोल नहीं रहे है,
وَلَا يُؤْذَنُ لَهُمْ فَيَعْتَذِرُونَ36
तो कोई उज़ पेश करें, (बात यह है कि) उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ37
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की
هَـٰذَا يَوْمُ الْفَصْلِ ۖ جَمَعْنَاكُمْ وَالْأَوَّلِينَ38
"यह फ़ैसले का दिन है, हमने तुम्हें भी और पहलों को भी इकट्ठा कर दिया
فَإِنْ كَانَ لَكُمْ كَيْدٌ فَكِيدُونِ39
"अब यदि तुम्हारे पास कोई चाल है तो मेरे विरुद्ध चलो।"
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ40
तबाही है उस दिन झुठलानेवालो की!
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي ظِلَالٍ وَعُيُونٍ41
निस्संदेह डर रखनेवाले छाँवों और स्रोतों में है,
وَفَوَاكِهَ مِمَّا يَشْتَهُونَ42
और उन फलों के बीच जो वे चाहे
كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ43
"खाओ-पियो मज़े से, उस कर्मों के बदले में जो तुम करते रहे हो।"
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ44
निश्चय ही उत्तमकारों को हम ऐसा ही बदला देते है
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ45
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
كُلُوا وَتَمَتَّعُوا قَلِيلًا إِنَّكُمْ مُجْرِمُونَ46
"खा लो और मज़े कर लो थोड़ा-सा, वास्तव में तुम अपराधी हो!"
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ47
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ارْكَعُوا لَا يَرْكَعُونَ48
जब उनसे कहा जाता है कि "झुको! तो नहीं झुकते।"
وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ49
तबाही है उस दिन झुठलानेवालों की!
فَبِأَيِّ حَدِيثٍ بَعْدَهُ يُؤْمِنُونَ50
अब आख़िर इसके पश्चात किस वाणी पर वे ईमान लाएँगे?