अल-फुरकान
وَقَالَ الَّذِينَ لَا يَرْجُونَ لِقَاءَنَا لَوْلَا أُنْزِلَ عَلَيْنَا الْمَلَائِكَةُ أَوْ نَرَىٰ رَبَّنَا ۗ لَقَدِ اسْتَكْبَرُوا فِي أَنْفُسِهِمْ وَعَتَوْا عُتُوًّا كَبِيرًا21
जिन्हें हमसे मिलने की आशंका नहीं, वे कहते है, "क्यों न फ़रिश्ते हमपर उतरे या फिर हम अपने रब को देखते?" उन्होंने अपने जी में बड़ा घमंज किया और बड़ी सरकशी पर उतर आए
يَوْمَ يَرَوْنَ الْمَلَائِكَةَ لَا بُشْرَىٰ يَوْمَئِذٍ لِلْمُجْرِمِينَ وَيَقُولُونَ حِجْرًا مَحْجُورًا22
जिस दिन वे फ़रिश्तों को देखेंगे उस दिन अपराधियों के लिए कोई ख़ुशख़बरी न होगी और वे पुकार उठेंगे, "पनाह! पनाह!!"
وَقَدِمْنَا إِلَىٰ مَا عَمِلُوا مِنْ عَمَلٍ فَجَعَلْنَاهُ هَبَاءً مَنْثُورًا23
हम बढ़ेंगे उस कर्म की ओर जो उन्होंने किया होगा और उसे उड़ती धूल कर देंगे
أَصْحَابُ الْجَنَّةِ يَوْمَئِذٍ خَيْرٌ مُسْتَقَرًّا وَأَحْسَنُ مَقِيلًا24
उस दिन जन्नतवाले ठिकाने की दृष्टि से अच्छे होगे और आरामगाह की दृष्टि से भी अच्छे होंगे
وَيَوْمَ تَشَقَّقُ السَّمَاءُ بِالْغَمَامِ وَنُزِّلَ الْمَلَائِكَةُ تَنْزِيلًا25
उस दिन आकाश एक बादल के साथ फटेगा और फ़रिश्ते भली प्रकार उतारे जाएँगे
الْمُلْكُ يَوْمَئِذٍ الْحَقُّ لِلرَّحْمَـٰنِ ۚ وَكَانَ يَوْمًا عَلَى الْكَافِرِينَ عَسِيرًا26
उस दिन वास्तविक राज्य रहमान का होगा और वह दिन इनकार करनेवालों के लिए बड़ा ही मुश्किल होगा
وَيَوْمَ يَعَضُّ الظَّالِمُ عَلَىٰ يَدَيْهِ يَقُولُ يَا لَيْتَنِي اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُولِ سَبِيلًا27
उस दिन अत्याचारी अत्याचारी अपने हाथ चबाएगा। कहेंगा, "ऐ काश! मैंने रसूल के साथ मार्ग अपनाया होता!
يَا وَيْلَتَىٰ لَيْتَنِي لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًا28
हाय मेरा दुर्भाग्य! काश, मैंने अमुक व्यक्ति को मित्र न बनाया होता!
لَقَدْ أَضَلَّنِي عَنِ الذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَاءَنِي ۗ وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِلْإِنْسَانِ خَذُولًا29
उसने मुझे भटकाकर अनुस्मृति से विमुख कर दिया, इसके पश्चात कि वह मेरे पास आ चुकी थी। शैतान तो समय पर मनुष्य का साथ छोड़ ही देता है।"
وَقَالَ الرَّسُولُ يَا رَبِّ إِنَّ قَوْمِي اتَّخَذُوا هَـٰذَا الْقُرْآنَ مَهْجُورًا30
रसूल कहेगा, "ऐ मेरे रब! निस्संदेह मेरी क़ौम के लोगों ने इस क़ुरआन को व्यर्थ बकवास की चीज़ ठहरा लिया था।"
وَكَذَٰلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نَبِيٍّ عَدُوًّا مِنَ الْمُجْرِمِينَ ۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ هَادِيًا وَنَصِيرًا31
और इसी तरह हमने अपराधियों में से प्रत्यॆक नबी के लिये शत्रु बनाया। मार्गदर्शन और सहायता कॆ लिए तॊ तुम्हारा रब ही काफ़ी है।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْلَا نُزِّلَ عَلَيْهِ الْقُرْآنُ جُمْلَةً وَاحِدَةً ۚ كَذَٰلِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِ فُؤَادَكَ ۖ وَرَتَّلْنَاهُ تَرْتِيلًا32
और जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है कि "उसपर पूरा क़ुरआन एक ही बार में क्यों नहीं उतारा?" ऐसा इसलिए किया गया ताकि हम इसके द्वारा तुम्हारे दिल को मज़बूत रखें और हमने इसे एक उचित क्रम में रखा
وَلَا يَأْتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلَّا جِئْنَاكَ بِالْحَقِّ وَأَحْسَنَ تَفْسِيرًا33
और जब कभी भी वे तुम्हारे पास कोई आक्षेप की बात लेकर आएँगे तो हम तुम्हारे पास पक्की-सच्ची चीज़ लेकर आएँगे! इस दशा में कि वह स्पष्टीतकरण की स्पष्ट से उत्तम है
الَّذِينَ يُحْشَرُونَ عَلَىٰ وُجُوهِهِمْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ أُولَـٰئِكَ شَرٌّ مَكَانًا وَأَضَلُّ سَبِيلًا34
जो लोग औंधे मुँह जहन्नम की ओर ले जाए जाएँगे वही स्थान की दृष्टि से बहुत बुरे है, और मार्ग की दृष्टि से भी बहुत भटके हुए है
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَجَعَلْنَا مَعَهُ أَخَاهُ هَارُونَ وَزِيرًا35
हमने मूसा को किताब प्रदान की और उसके भाई हारून को सहायक के रूप में उसके साथ किया
فَقُلْنَا اذْهَبَا إِلَى الْقَوْمِ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا فَدَمَّرْنَاهُمْ تَدْمِيرًا36
और कहा कि "तुम दोनों उन लोगों के पास जाओ जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया है।" अन्ततः हमने उन लोगों को विनष्ट करके रख दिया
وَقَوْمَ نُوحٍ لَمَّا كَذَّبُوا الرُّسُلَ أَغْرَقْنَاهُمْ وَجَعَلْنَاهُمْ لِلنَّاسِ آيَةً ۖ وَأَعْتَدْنَا لِلظَّالِمِينَ عَذَابًا أَلِيمًا37
और नूह की क़ौम को भी, जब उन्होंने रसूलों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबा दिया और लोगों के लिए उन्हें एक निशानी बना दिया, और उन ज़ालिमों के लिए हमने एक दुखद यातना तैयार कर रखी है
وَعَادًا وَثَمُودَ وَأَصْحَابَ الرَّسِّ وَقُرُونًا بَيْنَ ذَٰلِكَ كَثِيرًا38
और आद और समूद और अर-रस्सवालों और उस बीच की बहुत-सी नस्लों को भी विनष्ट किया।
وَكُلًّا ضَرَبْنَا لَهُ الْأَمْثَالَ ۖ وَكُلًّا تَبَّرْنَا تَتْبِيرًا39
प्रत्येक के लिए हमने मिसालें बयान कीं। अन्ततः प्रत्येक को हमने पूरी तरह विध्वस्त कर दिया
وَلَقَدْ أَتَوْا عَلَى الْقَرْيَةِ الَّتِي أُمْطِرَتْ مَطَرَ السَّوْءِ ۚ أَفَلَمْ يَكُونُوا يَرَوْنَهَا ۚ بَلْ كَانُوا لَا يَرْجُونَ نُشُورًا40
और उस बस्ती पर से तो वे हो आए है जिसपर बुरी वर्षा बरसी; तो क्या वे उसे देखते नहीं रहे हैं? नहीं, बल्कि वे दोबारा जीवित होकर उठने की आशा ही नहीं रखते रहे है
وَإِذَا رَأَوْكَ إِنْ يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَـٰذَا الَّذِي بَعَثَ اللَّهُ رَسُولًا41
वे जब भी तुम्हें देखते हैं तो तुम्हारा मज़ाक़ बना लेते हैं कि "क्या यही, जिसे अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है?
إِنْ كَادَ لَيُضِلُّنَا عَنْ آلِهَتِنَا لَوْلَا أَنْ صَبَرْنَا عَلَيْهَا ۚ وَسَوْفَ يَعْلَمُونَ حِينَ يَرَوْنَ الْعَذَابَ مَنْ أَضَلُّ سَبِيلًا42
इसने तो हमें भटकाकर हमको हमारे प्रभु-पूज्यों से फेर ही दिया होता, यदि हम उनपर मज़बूती से जम न गए होते।"
أَرَأَيْتَ مَنِ اتَّخَذَ إِلَـٰهَهُ هَوَاهُ أَفَأَنْتَ تَكُونُ عَلَيْهِ وَكِيلًا43
क्या तुमने उसको भी देखा, जिसने अपना प्रभु अपनी (तुच्छ) इच्छा को बना रखा है? तो क्या तुम उसका ज़िम्मा ले सकते हो
أَمْ تَحْسَبُ أَنَّ أَكْثَرَهُمْ يَسْمَعُونَ أَوْ يَعْقِلُونَ ۚ إِنْ هُمْ إِلَّا كَالْأَنْعَامِ ۖ بَلْ هُمْ أَضَلُّ سَبِيلًا44
या तुम समझते हो कि उनमें अधिकतर सुनते और समझते है? वे तो बस चौपायों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी अधिक पथभ्रष्ट!
أَلَمْ تَرَ إِلَىٰ رَبِّكَ كَيْفَ مَدَّ الظِّلَّ وَلَوْ شَاءَ لَجَعَلَهُ سَاكِنًا ثُمَّ جَعَلْنَا الشَّمْسَ عَلَيْهِ دَلِيلًا45
क्या तुमने अपने रब को नहीं देखा कि कैसे फैलाई छाया? यदि चाहता तो उसे स्थिर रखता। फिर हमने सूर्य को उसका पता देनेवाला बनाया,
ثُمَّ قَبَضْنَاهُ إِلَيْنَا قَبْضًا يَسِيرًا46
फिर हम उसको धीरे-धीरे अपनी ओर समेट लेते है
وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ اللَّيْلَ لِبَاسًا وَالنَّوْمَ سُبَاتًا وَجَعَلَ النَّهَارَ نُشُورًا47
वही है जिसने रात्रि को तुम्हारे लिए वस्त्र और निद्रा को सर्वथा विश्राम एवं शान्ति बनाया और दिन को जी उठने का समय बनाया
وَهُوَ الَّذِي أَرْسَلَ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ ۚ وَأَنْزَلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً طَهُورًا48
और वही है जिसने अपनी दयालुता (वर्षा) के आगे-आगे हवाओं को शुभ सूचना बनाकर भेजता है, और हम ही आकाश से स्वच्छ जल उतारते है
لِنُحْيِيَ بِهِ بَلْدَةً مَيْتًا وَنُسْقِيَهُ مِمَّا خَلَقْنَا أَنْعَامًا وَأَنَاسِيَّ كَثِيرًا49
ताकि हम उसके द्वारा निर्जीव भू-भाग को जीवन प्रदान करें और उसे अपने पैदा किए हुए बहुत-से चौपायों और मनुष्यों को पिलाएँ
وَلَقَدْ صَرَّفْنَاهُ بَيْنَهُمْ لِيَذَّكَّرُوا فَأَبَىٰ أَكْثَرُ النَّاسِ إِلَّا كُفُورًا50
उसे हमने उनके बीच विभिन्न ढ़ंग से पेश किया है, ताकि वे ध्यान दें। परन्तु अधिकतर लोगों ने इनकार और अकृतज्ञता के अतिरिक्त दूसरी नीति अपनाने से इनकार ही किया
وَلَوْ شِئْنَا لَبَعَثْنَا فِي كُلِّ قَرْيَةٍ نَذِيرًا51
यदि हम चाहते तो हर बस्ती में एक डरानेवाला भेज देते
فَلَا تُطِعِ الْكَافِرِينَ وَجَاهِدْهُمْ بِهِ جِهَادًا كَبِيرًا52
अतः इनकार करनेवालों की बात न मानता और इस (क़ुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद! (जी तोड़ कोशिश)
وَهُوَ الَّذِي مَرَجَ الْبَحْرَيْنِ هَـٰذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ وَهَـٰذَا مِلْحٌ أُجَاجٌ وَجَعَلَ بَيْنَهُمَا بَرْزَخًا وَحِجْرًا مَحْجُورًا53
वही है जिसने दो समुद्रों को मिलाया। यह स्वादिष्ट और मीठा है और यह खारी और कडुआ। और दोनों के बीच उसने एक परदा डाल दिया है और एक पृथक करनेवाली रोक रख दी है
وَهُوَ الَّذِي خَلَقَ مِنَ الْمَاءِ بَشَرًا فَجَعَلَهُ نَسَبًا وَصِهْرًا ۗ وَكَانَ رَبُّكَ قَدِيرًا54
और वही है जिसने पानी से एक मनुष्य पैदा किया। फिर उसे वंशगत सम्बन्धों और ससुराली रिश्तेवाला बनाया। तुम्हारा रब बड़ा ही सामर्थ्यवान है
وَيَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَنْفَعُهُمْ وَلَا يَضُرُّهُمْ ۗ وَكَانَ الْكَافِرُ عَلَىٰ رَبِّهِ ظَهِيرًا55
अल्लाह से इतर वे उनको पूजते है जो न उन्हें लाभ पहुँचा सकते है और न ही उन्हें हानि पहुँचा सकते है। और ऊपर से यह भी कि इनकार करनेवाला अपने रब का विरोधी और उसके मुक़ाबले में दूसरों का सहायक बना हुआ है
وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا مُبَشِّرًا وَنَذِيرًا56
और हमने तो तुमको शुभ-सूचना देनेवाला और सचेतकर्ता बनाकर भेजा है।
قُلْ مَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِلَّا مَنْ شَاءَ أَنْ يَتَّخِذَ إِلَىٰ رَبِّهِ سَبِيلًا57
कह दो, "मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता सिवाय इसके कि जो कोई चाहे अपने रब की ओर ले जानेवाला मार्ग अपना ले।"
وَتَوَكَّلْ عَلَى الْحَيِّ الَّذِي لَا يَمُوتُ وَسَبِّحْ بِحَمْدِهِ ۚ وَكَفَىٰ بِهِ بِذُنُوبِ عِبَادِهِ خَبِيرًا58
और उस अल्लाह पर भरोसा करो जो जीवन्त और अमर है और उसका गुणगान करो। वह अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने के लिए काफ़ी है
الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَىٰ عَلَى الْعَرْشِ ۚ الرَّحْمَـٰنُ فَاسْأَلْ بِهِ خَبِيرًا59
जिसने आकाशों और धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है छह दिनों में पैदा किया, फिर सिंहासन पर विराजमान हुआ। रहमान है वह! अतः पूछो उससे जो उसकी ख़बर रखता है
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اسْجُدُوا لِلرَّحْمَـٰنِ قَالُوا وَمَا الرَّحْمَـٰنُ أَنَسْجُدُ لِمَا تَأْمُرُنَا وَزَادَهُمْ نُفُورًا ۩60
उन लोगों से जब कहा जाता है कि "रहमान को सजदा करो" तो वे कहते है, "और रहमान क्या होता है? क्या जिसे तू हमसे कह दे उसी को हम सजदा करने लगें?" और यह चीज़ उनकी घृणा को और बढ़ा देती है
تَبَارَكَ الَّذِي جَعَلَ فِي السَّمَاءِ بُرُوجًا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَاجًا وَقَمَرًا مُنِيرًا61
बड़ी बरकतवाला है वह, जिसने आकाश में बुर्ज (नक्षत्र) बनाए और उसमें एक चिराग़ और एक चमकता चाँद बनाया
وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ خِلْفَةً لِمَنْ أَرَادَ أَنْ يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًا62
और वही है जिसने रात और दिन को एक-दूसरे के पीछे आनेवाला बनाया, उस व्यक्ति के लिए (निशानी) जो चेतना चाहे या कृतज्ञ होना चाहे
وَعِبَادُ الرَّحْمَـٰنِ الَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى الْأَرْضِ هَوْنًا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ الْجَاهِلُونَ قَالُوا سَلَامًا63
रहमान के (प्रिय) बन्दें वहीं है जो धरती पर नम्रतापूर्वक चलते है और जब जाहिल उनके मुँह आएँ तो कह देते है, "तुमको सलाम!"
وَالَّذِينَ يَبِيتُونَ لِرَبِّهِمْ سُجَّدًا وَقِيَامًا64
जो अपने रब के आगे सजदे में और खड़े रातें गुज़ारते है;
وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا اصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ ۖ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا65
जो कहते है कि "ऐ हमारे रब! जहन्नम की यातना को हमसे हटा दे।" निश्चय ही उनकी यातना चिमटकर रहनेवाली है
إِنَّهَا سَاءَتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا66
निश्चय ही वह जगह ठहरने की दृष्टि! से भी बुरी है और स्थान की दृष्टि से भी
وَالَّذِينَ إِذَا أَنْفَقُوا لَمْ يُسْرِفُوا وَلَمْ يَقْتُرُوا وَكَانَ بَيْنَ ذَٰلِكَ قَوَامًا67
जो ख़र्च करते है तो न अपव्यय करते है और न ही तंगी से काम लेते है, बल्कि वे इनके बीच मध्यमार्ग पर रहते है
وَالَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ اللَّهِ إِلَـٰهًا آخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ ۚ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَٰلِكَ يَلْقَ أَثَامًا68
जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे इष्ट-पूज्य को नहीं पुकारते और न नाहक़ किसी जीव को जिस (के क़त्ल) को अल्लाह ने हराम किया है, क़त्ल करते है। और न वे व्यभिचार करते है - जो कोई यह काम करे तो वह गुनाह के वबाल से दोचार होगा
يُضَاعَفْ لَهُ الْعَذَابُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِ مُهَانًا69
क़ियामत के दिन उसकी यातना बढ़ती चली जाएगी॥ और वह उसी में अपमानित होकर स्थायी रूप से पड़ा रहेगा
إِلَّا مَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَأُولَـٰئِكَ يُبَدِّلُ اللَّهُ سَيِّئَاتِهِمْ حَسَنَاتٍ ۗ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا70
सिवाय उसके जो पलट आया और ईमान लाया और अच्छा कर्म किया, तो ऐसे लोगों की बुराइयों को अल्लाह भलाइयों से बदल देगा। और अल्लाह है भी अत्यन्त क्षमाशील, दयावान
وَمَنْ تَابَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَإِنَّهُ يَتُوبُ إِلَى اللَّهِ مَتَابًا71
और जिसने तौबा की और अच्छा कर्म किया, तो निश्चय ही वह अल्लाह की ओर पलटता है, जैसा कि पलटने का हक़ है
وَالَّذِينَ لَا يَشْهَدُونَ الزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا بِاللَّغْوِ مَرُّوا كِرَامًا72
जो किसी झूठ और असत्य में सम्मिलित नहीं होते और जब किसी व्यर्थ के कामों के पास से गुज़रते है, तो श्रेष्ठतापूर्वक गुज़र जाते है,
وَالَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا بِآيَاتِ رَبِّهِمْ لَمْ يَخِرُّوا عَلَيْهَا صُمًّا وَعُمْيَانًا73
जो ऐसे हैं कि जब उनके रब की आयतों के द्वारा उन्हें याददिहानी कराई जाती है तो उन (आयतों) पर वे अंधे और बहरे होकर नहीं गिरते।
وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا74
और जो कहते है, "ऐ हमारे रब! हमें हमारी अपनी पत्नियों और हमारी संतान से आँखों की ठंडक प्रदान कर और हमें डर रखनेवालों का नायक बना दे।"
أُولَـٰئِكَ يُجْزَوْنَ الْغُرْفَةَ بِمَا صَبَرُوا وَيُلَقَّوْنَ فِيهَا تَحِيَّةً وَسَلَامًا75
यही वे लोग है जिन्हें, इसके बदले में कि वे जमे रहे, उच्च भवन प्राप्त होगा, तथा ज़िन्दाबाद और सलाम से उनका वहाँ स्वागत होगा
خَالِدِينَ فِيهَا ۚ حَسُنَتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا76
वहाँ वे सदैव रहेंगे। बहुत ही अच्छी है वह ठहरने की जगह और स्थान;
قُلْ مَا يَعْبَأُ بِكُمْ رَبِّي لَوْلَا دُعَاؤُكُمْ ۖ فَقَدْ كَذَّبْتُمْ فَسَوْفَ يَكُونُ لِزَامًا77
कह दो, "मेरे रब को तुम्हारी कोई परवाह नहीं अगर तुम (उसको) न पुकारो। अब जबकि तुम झुठला चुके हो, तो शीघ्र ही वह चीज़ चिमट जानेवाली होगी।"
अश-शुअरा
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
طسم1
ता॰ सीन॰ मीम॰
تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ2
ये स्पष्ट किताब की आयतें है
لَعَلَّكَ بَاخِعٌ نَفْسَكَ أَلَّا يَكُونُوا مُؤْمِنِينَ3
शायद इसपर कि वे ईमान नहीं लाते, तुम अपने प्राण ही खो बैठोगे
إِنْ نَشَأْ نُنَزِّلْ عَلَيْهِمْ مِنَ السَّمَاءِ آيَةً فَظَلَّتْ أَعْنَاقُهُمْ لَهَا خَاضِعِينَ4
यदि हम चाहें तो उनपर आकाश से एक निशानी उतार दें। फिर उनकी गर्दनें उसके आगे झुकी रह जाएँ
وَمَا يَأْتِيهِمْ مِنْ ذِكْرٍ مِنَ الرَّحْمَـٰنِ مُحْدَثٍ إِلَّا كَانُوا عَنْهُ مُعْرِضِينَ5
उनके पास रहमान की ओर से जो नवीन अनुस्मृति भी आती है, वे उससे मुँह फेर ही लेते है
فَقَدْ كَذَّبُوا فَسَيَأْتِيهِمْ أَنْبَاءُ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ6
अब जबकि वे झुठला चुके है, तो शीघ्र ही उन्हें उसकी हक़ीकत मालूम हो जाएगी, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाते रहे है
أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَى الْأَرْضِ كَمْ أَنْبَتْنَا فِيهَا مِنْ كُلِّ زَوْجٍ كَرِيمٍ7
क्या उन्होंने धरती को नहीं देखा कि हमने उसमें कितने ही प्रकार की उमदा चीज़ें पैदा की है?
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ8
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है, इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ9
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
وَإِذْ نَادَىٰ رَبُّكَ مُوسَىٰ أَنِ ائْتِ الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ10
और जबकि तुम्हारे रह ने मूसा को पुकारा कि "ज़ालिम लोगों के पास जा -
قَوْمَ فِرْعَوْنَ ۚ أَلَا يَتَّقُونَ11
फ़िरऔन की क़ौम के पास - क्या वे डर नहीं रखते?"
قَالَ رَبِّ إِنِّي أَخَافُ أَنْ يُكَذِّبُونِ12
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे डर है कि वे मुझे झुठला देंगे,
وَيَضِيقُ صَدْرِي وَلَا يَنْطَلِقُ لِسَانِي فَأَرْسِلْ إِلَىٰ هَارُونَ13
और मेरा सीना घुटता है और मेरी ज़बान नहीं चलती। इसलिए हारून की ओर भी संदेश भेज दे
وَلَهُمْ عَلَيَّ ذَنْبٌ فَأَخَافُ أَنْ يَقْتُلُونِ14
और मुझपर उनके यहाँ के एक गुनाह का बोझ भी है। इसलिए मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे।"
قَالَ كَلَّا ۖ فَاذْهَبَا بِآيَاتِنَا ۖ إِنَّا مَعَكُمْ مُسْتَمِعُونَ15
कहा, "कदापि नहीं, तुम दोनों हमारी निशानियाँ लेकर जाओ। हम तुम्हारे साथ है, सुनने को मौजूद है
فَأْتِيَا فِرْعَوْنَ فَقُولَا إِنَّا رَسُولُ رَبِّ الْعَالَمِينَ16
अतः तुम दोनो फ़िरऔन को पास जाओ और कहो कि हम सारे संसार के रब के भेजे हुए है
أَنْ أَرْسِلْ مَعَنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ17
कि तू इसराईल की सन्तान को हमारे साथ जाने दे।"
قَالَ أَلَمْ نُرَبِّكَ فِينَا وَلِيدًا وَلَبِثْتَ فِينَا مِنْ عُمُرِكَ سِنِينَ18
(फ़िरऔन ने) कहा, "क्या हमने तुझे जबकि तू बच्चा था, अपने यहाँ पाला नहीं था? और तू अपनी अवस्था के कई वर्षों तक हमारे साथ रहा,
وَفَعَلْتَ فَعْلَتَكَ الَّتِي فَعَلْتَ وَأَنْتَ مِنَ الْكَافِرِينَ19
और तूने अपना वह काम किया, जो किया। तू बड़ा ही कृतघ्न है।"
قَالَ فَعَلْتُهَا إِذًا وَأَنَا مِنَ الضَّالِّينَ20
कहा, ऐसा तो मुझसे उस समय हुआ जबकि मैं चूक गया था
فَفَرَرْتُ مِنْكُمْ لَمَّا خِفْتُكُمْ فَوَهَبَ لِي رَبِّي حُكْمًا وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُرْسَلِينَ21
फिर जब मुझे तुम्हारा भय हुआ तो मैं तुम्हारे यहाँ से भाग गया। फिर मेरे रब ने मुझे निर्णय-शक्ति प्रदान की और मुझे रसूलों में सम्मिलित किया
وَتِلْكَ نِعْمَةٌ تَمُنُّهَا عَلَيَّ أَنْ عَبَّدْتَ بَنِي إِسْرَائِيلَ22
यही वह उदार अनुग्रह है जिसका रहमान तू मुझपर जताता है कि तूने इसराईल की सन्तान को ग़ुलाम बना रखा है।"
قَالَ فِرْعَوْنُ وَمَا رَبُّ الْعَالَمِينَ23
फ़िरऔन ने कहा, "और यह सारे संसार का रब क्या होता है?"
قَالَ رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ إِنْ كُنْتُمْ مُوقِنِينَ24
उसने कहा, "आकाशों और धरती का रब और जो कुछ इन दोनों का मध्य है उसका भी, यदि तुम्हें यकीन हो।"
قَالَ لِمَنْ حَوْلَهُ أَلَا تَسْتَمِعُونَ25
उसने अपने आस-पासवालों से कहा, "क्या तुम सुनते नहीं हो?"
قَالَ رَبُّكُمْ وَرَبُّ آبَائِكُمُ الْأَوَّلِينَ26
कहा, "तुम्हारा रब और तुम्हारे अगले बाप-दादा का रब।"
قَالَ إِنَّ رَسُولَكُمُ الَّذِي أُرْسِلَ إِلَيْكُمْ لَمَجْنُونٌ27
बोला, "निश्चय ही तुम्हारा यह रसूल, जो तुम्हारी ओर भेजा गया है, बिलकुल ही पागल है।"
قَالَ رَبُّ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ إِنْ كُنْتُمْ تَعْقِلُونَ28
उसने कहा, "पूर्व और पश्चिम का रब और जो कुछ उनके बीच है उसका भी, यदि तुम कुछ बुद्धि रखते हो।"
قَالَ لَئِنِ اتَّخَذْتَ إِلَـٰهًا غَيْرِي لَأَجْعَلَنَّكَ مِنَ الْمَسْجُونِينَ29
बोला, "यदि तूने मेरे सिवा किसी और को पूज्य एवं प्रभु बनाया, तो मैं तुझे बन्दी बनाकर रहूँगा।"
قَالَ أَوَلَوْ جِئْتُكَ بِشَيْءٍ مُبِينٍ30
उसने कहा, "क्या यदि मैं तेरे पास एक स्पष्ट चीज़ ले आऊँ तब भी?"
قَالَ فَأْتِ بِهِ إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ31
बोलाः “अच्छा वह ले आ; यदि तू सच्चा है” ।
فَأَلْقَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ ثُعْبَانٌ مُبِينٌ32
फिर उसने अपनी लाठी डाल दी, तो अचानक क्या देखते है कि वह एक प्रत्यक्ष अज़गर है
وَنَزَعَ يَدَهُ فَإِذَا هِيَ بَيْضَاءُ لِلنَّاظِرِينَ33
और उसने अपना हाथ बाहर खींचा तो फिर क्या देखते है कि वह देखनेवालों के सामने चमक रहा है
قَالَ لِلْمَلَإِ حَوْلَهُ إِنَّ هَـٰذَا لَسَاحِرٌ عَلِيمٌ34
उसने अपने आस-पास के सरदारों से कहा, "निश्चय ही यह एक बड़ा ही प्रवीण जादूगर है
يُرِيدُ أَنْ يُخْرِجَكُمْ مِنْ أَرْضِكُمْ بِسِحْرِهِ فَمَاذَا تَأْمُرُونَ35
चाहता है कि अपने जादू से तुम्हें तुम्हारी अपनी भूमि से निकाल बाहर करें; तो अब तुम क्या कहते हो?"
قَالُوا أَرْجِهْ وَأَخَاهُ وَابْعَثْ فِي الْمَدَائِنِ حَاشِرِينَ36
उन्होंने कहा, "इसे और इसके भाई को अभी टाले रखिए, और एकत्र करनेवालों को नगरों में भेज दीजिए
يَأْتُوكَ بِكُلِّ سَحَّارٍ عَلِيمٍ37
कि वे प्रत्येक प्रवीण जादूगर को आपके पास ले आएँ।"
فَجُمِعَ السَّحَرَةُ لِمِيقَاتِ يَوْمٍ مَعْلُومٍ38
अतएव एक निश्चित दिन के नियत समय पर जादूगर एकत्र कर लिए गए
وَقِيلَ لِلنَّاسِ هَلْ أَنْتُمْ مُجْتَمِعُونَ39
और लोगों से कहा गया, "क्या तुम भी एकत्र होते हो?"
لَعَلَّنَا نَتَّبِعُ السَّحَرَةَ إِنْ كَانُوا هُمُ الْغَالِبِينَ40
कदाचित हम जादूगरों ही के अनुयायी रह जाएँ, यदि वे विजयी हुए
فَلَمَّا جَاءَ السَّحَرَةُ قَالُوا لِفِرْعَوْنَ أَئِنَّ لَنَا لَأَجْرًا إِنْ كُنَّا نَحْنُ الْغَالِبِينَ41
फिर जब जादूगर आए तो उन्होंने फ़िरऔन से कहा, "क्या हमारे लिए कोई प्रतिदान भी है, यदि हम प्रभावी रहे?"
قَالَ نَعَمْ وَإِنَّكُمْ إِذًا لَمِنَ الْمُقَرَّبِينَ42
उसने कहा, "हाँ, और निश्चित ही तुम तो उस समय निकटतम लोगों में से हो जाओगे।"
قَالَ لَهُمْ مُوسَىٰ أَلْقُوا مَا أَنْتُمْ مُلْقُونَ43
मूसा ने उनसे कहा, "डालो, जो कुछ तुम्हें डालना है।"
فَأَلْقَوْا حِبَالَهُمْ وَعِصِيَّهُمْ وَقَالُوا بِعِزَّةِ فِرْعَوْنَ إِنَّا لَنَحْنُ الْغَالِبُونَ44
तब उन्होंने अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ डाल दी और बोले, "फ़िरऔन के प्रताप से हम ही विजयी रहेंगे।"
فَأَلْقَىٰ مُوسَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ تَلْقَفُ مَا يَأْفِكُونَ45
फिर मूसा ने अपनी लाठी फेकी तो क्या देखते है कि वह उसे स्वाँग को, जो वे रचाते है, निगलती जा रही है
فَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سَاجِدِينَ46
इसपर जादूगर सजदे में गिर पड़े
قَالُوا آمَنَّا بِرَبِّ الْعَالَمِينَ47
वे बोल उठे, "हम सारे संसार के रब पर ईमान ले आए -
رَبِّ مُوسَىٰ وَهَارُونَ48
मूसा और हारून के रब पर!"
قَالَ آمَنْتُمْ لَهُ قَبْلَ أَنْ آذَنَ لَكُمْ ۖ إِنَّهُ لَكَبِيرُكُمُ الَّذِي عَلَّمَكُمُ السِّحْرَ فَلَسَوْفَ تَعْلَمُونَ ۚ لَأُقَطِّعَنَّ أَيْدِيَكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ مِنْ خِلَافٍ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمْ أَجْمَعِينَ49
उसने कहा, "तुमने उसको मान लिया, इससे पहले कि मैं तुम्हें अनुमति देता। निश्चय ही वह तुम सबका प्रमुख है, जिसने तुमको जादू सिखाया है। अच्छा, शीघ्र ही तुम्हें मालूम हुआ जाता है! मैं तुम्हारे हाथ और पाँव विपरीत दिशाओं से कटवा दूँगा और तुम सभी को सूली पर चढ़ा दूँगा।"
قَالُوا لَا ضَيْرَ ۖ إِنَّا إِلَىٰ رَبِّنَا مُنْقَلِبُونَ50
उन्होंने कहा, "कुछ हरज नहीं; हम तो अपने रब ही की ओर पलटकर जानेवाले है
إِنَّا نَطْمَعُ أَنْ يَغْفِرَ لَنَا رَبُّنَا خَطَايَانَا أَنْ كُنَّا أَوَّلَ الْمُؤْمِنِينَ51
हमें तो इसी की लालसा है कि हमारा रब हमारी ख़ताओं को क्षमा कर दें, क्योंकि हम सबसे पहले ईमान लाए।"
وَأَوْحَيْنَا إِلَىٰ مُوسَىٰ أَنْ أَسْرِ بِعِبَادِي إِنَّكُمْ مُتَّبَعُونَ52
हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, "मेरे बन्दों को लेकर रातों-रात निकल जा। निश्चय ही तुम्हारा पीछा किया जाएगा।"
فَأَرْسَلَ فِرْعَوْنُ فِي الْمَدَائِنِ حَاشِرِينَ53
इसपर फ़िरऔन ने एकत्र करनेवालों को नगर में भेजा
إِنَّ هَـٰؤُلَاءِ لَشِرْذِمَةٌ قَلِيلُونَ54
कि "यह गिरे-पड़े थोड़े लोगों का एक गिरोह है,
وَإِنَّهُمْ لَنَا لَغَائِظُونَ55
और ये हमें क्रुद्ध कर रहे है।
وَإِنَّا لَجَمِيعٌ حَاذِرُونَ56
और हम चौकन्ना रहनेवाले लोग है।"
فَأَخْرَجْنَاهُمْ مِنْ جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ57
इस प्रकार हम उन्हें बाग़ों और स्रोतों
وَكُنُوزٍ وَمَقَامٍ كَرِيمٍ58
और ख़जानों और अच्छे स्थान से निकाल लाए
كَذَٰلِكَ وَأَوْرَثْنَاهَا بَنِي إِسْرَائِيلَ59
ऐसा ही हम करते है और इनका वारिस हमने इसराईल की सन्तान को बना दिया
فَأَتْبَعُوهُمْ مُشْرِقِينَ60
सुबह-तड़के उन्होंने उनका पीछा किया
فَلَمَّا تَرَاءَى الْجَمْعَانِ قَالَ أَصْحَابُ مُوسَىٰ إِنَّا لَمُدْرَكُونَ61
फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया तो मूसा के साथियों ने कहा, "हम तो पकड़े गए!"
قَالَ كَلَّا ۖ إِنَّ مَعِيَ رَبِّي سَيَهْدِينِ62
उसने कहा, "कदापि नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा।"
فَأَوْحَيْنَا إِلَىٰ مُوسَىٰ أَنِ اضْرِبْ بِعَصَاكَ الْبَحْرَ ۖ فَانْفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرْقٍ كَالطَّوْدِ الْعَظِيمِ63
तब हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, "अपनी लाठी सागर पर मार।"
وَأَزْلَفْنَا ثَمَّ الْآخَرِينَ64
और हम दूसरों को भी निकट ले आए
وَأَنْجَيْنَا مُوسَىٰ وَمَنْ مَعَهُ أَجْمَعِينَ65
हमने मूसा को और उन सबको जो उसके साथ थे, बचा लिया
ثُمَّ أَغْرَقْنَا الْآخَرِينَ66
और दूसरों को डूबो दिया
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ67
निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ68
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ إِبْرَاهِيمَ69
और उन्हें इबराहीम का वृत्तान्त सुनाओ,
إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ مَا تَعْبُدُونَ70
जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौंम के लोगों से कहा, "तुम क्या पूजते हो?"
قَالُوا نَعْبُدُ أَصْنَامًا فَنَظَلُّ لَهَا عَاكِفِينَ71
उन्होंने कहा, "हम बुतों की पूजा करते है, हम तो उन्हीं की सेवा में लगे रहेंगे।"
قَالَ هَلْ يَسْمَعُونَكُمْ إِذْ تَدْعُونَ72
उसने कहा, "क्या ये तुम्हारी सुनते है, जब तुम पुकारते हो,
أَوْ يَنْفَعُونَكُمْ أَوْ يَضُرُّونَ73
या ये तुम्हें कुछ लाभ या हानि पहुँचाते है?"
قَالُوا بَلْ وَجَدْنَا آبَاءَنَا كَذَٰلِكَ يَفْعَلُونَ74
उन्होंने कहा, "नहीं, बल्कि हमने तो अपने बाप-दादा को ऐसा ही करते पाया है।"
قَالَ أَفَرَأَيْتُمْ مَا كُنْتُمْ تَعْبُدُونَ75
उसने कहा, "क्या तुमने उनपर विचार भी किया कि जिन्हें तुम पूजते हो,
أَنْتُمْ وَآبَاؤُكُمُ الْأَقْدَمُونَ76
तुम और तुम्हारे पहले के बाप-दादा?
فَإِنَّهُمْ عَدُوٌّ لِي إِلَّا رَبَّ الْعَالَمِينَ77
वे सब तो मेरे शत्रु है, सिवाय सारे संसार के रब के,
الَّذِي خَلَقَنِي فَهُوَ يَهْدِينِ78
जिसने मुझे पैदा किया और फिर वही मेरा मार्गदर्शन करता है
وَالَّذِي هُوَ يُطْعِمُنِي وَيَسْقِينِ79
और वही है जो मुझे खिलाता और पिलाता है
وَإِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِينِ80
और जब मैं बीमार होता हूँ, तो वही मुझे अच्छा करता है
وَالَّذِي يُمِيتُنِي ثُمَّ يُحْيِينِ81
और वही है जो मुझे मारेगा, फिर मुझे जीवित करेगा
وَالَّذِي أَطْمَعُ أَنْ يَغْفِرَ لِي خَطِيئَتِي يَوْمَ الدِّينِ82
और वही है जिससे मुझे इसकी आकांक्षा है कि बदला दिए जाने के दिन वह मेरी ख़ता माफ़ कर देगा
رَبِّ هَبْ لِي حُكْمًا وَأَلْحِقْنِي بِالصَّالِحِينَ83
ऐ मेरे रब! मुझे निर्णय-शक्ति प्रदान कर और मुझे योग्य लोगों के साथ मिला।
وَاجْعَلْ لِي لِسَانَ صِدْقٍ فِي الْآخِرِينَ84
और बाद के आनेवालों में से मुझे सच्ची ख़्याति प्रदान कर
وَاجْعَلْنِي مِنْ وَرَثَةِ جَنَّةِ النَّعِيمِ85
और मुझे नेमत भरी जन्नत के वारिसों में सम्मिलित कर
وَاغْفِرْ لِأَبِي إِنَّهُ كَانَ مِنَ الضَّالِّينَ86
और मेरे बाप को क्षमा कर दे। निश्चय ही वह पथभ्रष्ट लोगों में से है
وَلَا تُخْزِنِي يَوْمَ يُبْعَثُونَ87
और मुझे उस दिन रुसवा न कर, जब लोग जीवित करके उठाए जाएँगे।
يَوْمَ لَا يَنْفَعُ مَالٌ وَلَا بَنُونَ88
जिस दिन न माल काम आएगा और न औलाद,
إِلَّا مَنْ أَتَى اللَّهَ بِقَلْبٍ سَلِيمٍ89
सिवाय इसके कि कोई भला-चंगा दिल लिए हुए अल्लाह के पास आया हो।"
وَأُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ90
और डर रखनेवालों के लिए जन्नत निकट लाई जाएगी
وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِلْغَاوِينَ91
और भडकती आग पथभ्रष्टि लोगों के लिए प्रकट कर दी जाएगी
وَقِيلَ لَهُمْ أَيْنَ مَا كُنْتُمْ تَعْبُدُونَ92
और उनसे कहा जाएगा, "कहाँ है वे जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते रहे हो?
مِنْ دُونِ اللَّهِ هَلْ يَنْصُرُونَكُمْ أَوْ يَنْتَصِرُونَ93
क्या वे तुम्हारी कुछ सहायता कर रहे है या अपना ही बचाव कर सकते है?"
فَكُبْكِبُوا فِيهَا هُمْ وَالْغَاوُونَ94
फिर वे उसमें औंधे झोक दिए जाएँगे, वे और बहके हुए लोग
وَجُنُودُ إِبْلِيسَ أَجْمَعُونَ95
और इबलीस की सेनाएँ, सबके सब।
قَالُوا وَهُمْ فِيهَا يَخْتَصِمُونَ96
वे वहाँ आपस में झगड़ते हुए कहेंगे,
تَاللَّهِ إِنْ كُنَّا لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ97
"अल्लाह की क़सम! निश्चय ही हम खुली गुमराही में थे
إِذْ نُسَوِّيكُمْ بِرَبِّ الْعَالَمِينَ98
जबकि हम तुम्हें सारे संसार के रब के बराबर ठहरा रहे थे
وَمَا أَضَلَّنَا إِلَّا الْمُجْرِمُونَ99
और हमें तो बस उन अपराधियों ने ही पथभ्रष्ट किया
فَمَا لَنَا مِنْ شَافِعِينَ100
अब न हमारा कोई सिफ़ारिशी है,
وَلَا صَدِيقٍ حَمِيمٍ101
और न घनिष्ट मित्र
فَلَوْ أَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ102
क्या ही अच्छा होता कि हमें एक बार फिर पलटना होता, तो हम मोमिनों में से हो जाते!"
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ103
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकरतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ104
और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
كَذَّبَتْ قَوْمُ نُوحٍ الْمُرْسَلِينَ105
नूह की क़ौम ने रसूलों को झुठलाया;
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ نُوحٌ أَلَا تَتَّقُونَ106
जबकि उनसे उनके भाई नूह ने कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ107
निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ108
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरा कहा मानो
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ109
मैं इस काम के बदले तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ110
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो।"
قَالُوا أَنُؤْمِنُ لَكَ وَاتَّبَعَكَ الْأَرْذَلُونَ111
उन्होंने कहा, "क्या हम तेरी बात मान लें, जबकि तेरे पीछे तो अत्यन्त नीच लोग चल रहे है?"
قَالَ وَمَا عِلْمِي بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ112
उसने कहा, "मुझे क्या मालूम कि वे क्या करते रहे है?
إِنْ حِسَابُهُمْ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّي ۖ لَوْ تَشْعُرُونَ113
उनका हिसाब तो बस मेरे रब के ज़िम्मे है। क्या ही अच्छा होता कि तुममें चेतना होती।
وَمَا أَنَا بِطَارِدِ الْمُؤْمِنِينَ114
और मैं ईमानवालों को धुत्कारनेवाला नहीं हूँ।
إِنْ أَنَا إِلَّا نَذِيرٌ مُبِينٌ115
मैं तो बस स्पष्ट रूप से एक सावधान करनेवाला हूँ।"
قَالُوا لَئِنْ لَمْ تَنْتَهِ يَا نُوحُ لَتَكُونَنَّ مِنَ الْمَرْجُومِينَ116
उन्होंने कहा, "यदि तू बाज़ न आया ऐ नूह, तो तू संगसार होकर रहेगा।"
قَالَ رَبِّ إِنَّ قَوْمِي كَذَّبُونِ117
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मेरी क़ौम के लोगों ने तो मुझे झुठला दिया
فَافْتَحْ بَيْنِي وَبَيْنَهُمْ فَتْحًا وَنَجِّنِي وَمَنْ مَعِيَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ118
अब मेरे और उनके बीच दो टूक फ़ैसला कर दे और मुझे और जो ईमानवाले मेरे साथ है, उन्हें बचा ले!"
فَأَنْجَيْنَاهُ وَمَنْ مَعَهُ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ119
अतः हमने उसे और जो उसके साथ भरी हुई नौका में थे बचा लिया
ثُمَّ أَغْرَقْنَا بَعْدُ الْبَاقِينَ120
और उसके पश्चात शेष लोगों को डूबो दिया
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ121
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ122
और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
كَذَّبَتْ عَادٌ الْمُرْسَلِينَ123
आद ने रसूलों को झूठलाया
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ هُودٌ أَلَا تَتَّقُونَ124
जबकि उनके भाई हूद ने उनसे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ125
मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ126
अतः तुम अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा मानो
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ127
मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़ि्म्मे है।
أَتَبْنُونَ بِكُلِّ رِيعٍ آيَةً تَعْبَثُونَ128
क्या तुम प्रत्येक उच्च स्थान पर व्यर्थ एक स्मारक का निर्माण करते रहोगे?
وَتَتَّخِذُونَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمْ تَخْلُدُونَ129
और भव्य महल बनाते रहोगे, मानो तुम्हें सदैव रहना है?
وَإِذَا بَطَشْتُمْ بَطَشْتُمْ جَبَّارِينَ130
और जब किसी पर हाथ डालते हो तो बिलकुल निर्दय अत्याचारी बनकर हाथ डालते हो!
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ131
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो
وَاتَّقُوا الَّذِي أَمَدَّكُمْ بِمَا تَعْلَمُونَ132
उसका डर रखो जिसने तुम्हें वे चीज़े पहुँचाई जिनको तुम जानते हो
أَمَدَّكُمْ بِأَنْعَامٍ وَبَنِينَ133
उसने तुम्हारी सहायता की चौपायों और बेटों से,
وَجَنَّاتٍ وَعُيُونٍ134
और बाग़ो और स्रोतो से
إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ135
निश्चय ही मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े दिन की यातना का भय है।"
قَالُوا سَوَاءٌ عَلَيْنَا أَوَعَظْتَ أَمْ لَمْ تَكُنْ مِنَ الْوَاعِظِينَ136
उन्होंने कहा, "हमारे लिए बराबर है चाहे तुम नसीहत करो या नसीहत करने वाले न बनो।
إِنْ هَـٰذَا إِلَّا خُلُقُ الْأَوَّلِينَ137
यह तो बस पहले लोगों की पुरानी आदत है
وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ138
और हमें कदापि यातना न दी जाएगी।"
فَكَذَّبُوهُ فَأَهْلَكْنَاهُمْ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ139
अन्ततः उन्होंने उन्हें झुठला दिया जो हमने उनको विनष्ट कर दिया। बेशक इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ140
और बेशक तुम्हारा रब ही है, जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
كَذَّبَتْ ثَمُودُ الْمُرْسَلِينَ141
समूद ने रसूलों को झुठलाया,
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ صَالِحٌ أَلَا تَتَّقُونَ142
जबकि उसके भाई सालेह ने उससे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ143
निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ144
अतः तुम अल्लाह का डर रखो और मेरी बात मानो
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ145
मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है
أَتُتْرَكُونَ فِي مَا هَاهُنَا آمِنِينَ146
क्या तुम यहाँ जो कुछ है उसके बीच, निश्चिन्त छोड़ दिए जाओगे,
فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ147
बाग़ों और स्रोतों
وَزُرُوعٍ وَنَخْلٍ طَلْعُهَا هَضِيمٌ148
और खेतों और उन खजूरों में जिनके गुच्छे तरो ताज़ा और गुँथे हुए है?
وَتَنْحِتُونَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوتًا فَارِهِينَ149
तुम पहाड़ों को काट-काटकर इतराते हुए घर बनाते हो?
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ150
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो
وَلَا تُطِيعُوا أَمْرَ الْمُسْرِفِينَ151
और उन हद से गुज़र जानेवालों की आज्ञा का पालन न करो,
الَّذِينَ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ152
जो धरती में बिगाड़ पैदा करते है, और सुधार का काम नहीं करते।"
قَالُوا إِنَّمَا أَنْتَ مِنَ الْمُسَحَّرِينَ153
उन्होंने कहा, "तू तो बस जादू का मारा हुआ है।
مَا أَنْتَ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا فَأْتِ بِآيَةٍ إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ154
तू बस हमारे ही जैसा एक आदमी है। यदि तू सच्चा है, तो कोई निशानी ले आ।"
قَالَ هَـٰذِهِ نَاقَةٌ لَهَا شِرْبٌ وَلَكُمْ شِرْبُ يَوْمٍ مَعْلُومٍ155
उसने कहा, "यह ऊँटनी है। एक दिन पानी पीने की बारी इसकी है और एक नियत दिन की बारी पानी लेने की तुम्हारी है
وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوءٍ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابُ يَوْمٍ عَظِيمٍ156
तकलीफ़ पहुँचाने के लिए इसे हाथ न लगाना, अन्यथा एक बड़े दिन की यातना तुम्हें आ लेगी।"
فَعَقَرُوهَا فَأَصْبَحُوا نَادِمِينَ157
किन्तु उन्होंने उसकी कूचें काट दी। फिर पछताते रह गए
فَأَخَذَهُمُ الْعَذَابُ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ158
अन्ततः यातना ने उन्हें आ दबोचा। निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ159
और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयाशील है
كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ الْمُرْسَلِينَ160
लूत की क़ौम के लोगों ने रसूलों को झुठलाया;
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ لُوطٌ أَلَا تَتَّقُونَ161
जबकि उनके भाई लूत ने उनसे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ162
मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ163
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ164
मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता, मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है
أَتَأْتُونَ الذُّكْرَانَ مِنَ الْعَالَمِينَ165
क्या सारे संसारवालों में से तुम ही ऐसे हो जो पुरुषों के पास जाते हो,
وَتَذَرُونَ مَا خَلَقَ لَكُمْ رَبُّكُمْ مِنْ أَزْوَاجِكُمْ ۚ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ عَادُونَ166
और अपनी पत्नियों को, जिन्हें तुम्हारे रब ने तुम्हारे लिए पैदा किया, छोड़ देते हो? इतना ही नहीं, बल्कि तुम हद से आगे बढ़े हुए लोग हो।"
قَالُوا لَئِنْ لَمْ تَنْتَهِ يَا لُوطُ لَتَكُونَنَّ مِنَ الْمُخْرَجِينَ167
उन्होंने कहा, "यदि तू बाज़ न आया, ऐ लतू! तो तू अवश्य ही निकाल बाहर किया जाएगा।"
قَالَ إِنِّي لِعَمَلِكُمْ مِنَ الْقَالِينَ168
उसने कहा, "मैं तुम्हारे कर्म से अत्यन्त विरक्त हूँ।
رَبِّ نَجِّنِي وَأَهْلِي مِمَّا يَعْمَلُونَ169
ऐ मेरे रब! मुझे और मेरे लोगों को, जो कुछ ये करते है उसके परिणाम से, बचा ले।"
فَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ أَجْمَعِينَ170
अन्ततः हमने उसे और उसके सारे लोगों को बचा लिया;
إِلَّا عَجُوزًا فِي الْغَابِرِينَ171
सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में थी
ثُمَّ دَمَّرْنَا الْآخَرِينَ172
फिर शेष दूसरे लोगों को हमने विनष्ट कर दिया।
وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ مَطَرًا ۖ فَسَاءَ مَطَرُ الْمُنْذَرِينَ173
और हमने उनपर एक बरसात बरसाई। और यह चेताए हुए लोगों की बहुत ही बुरी वर्षा थी
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ174
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ175
और निश्चय ही तुम्हारा रब बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
كَذَّبَ أَصْحَابُ الْأَيْكَةِ الْمُرْسَلِينَ176
अल-ऐकावालों ने रसूलों को झुठलाया
إِذْ قَالَ لَهُمْ شُعَيْبٌ أَلَا تَتَّقُونَ177
जबकि शुऐब ने उनसे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?
إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ178
मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ
فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ179
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो
وَمَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ الْعَالَمِينَ180
मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है
أَوْفُوا الْكَيْلَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُخْسِرِينَ181
तुम पूरा-पूरा पैमाना भरो और घाटा न दो
وَزِنُوا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيمِ182
और ठीक तराज़ू से तौलो
وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ أَشْيَاءَهُمْ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ183
और लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो और धरती में बिगाड़ और फ़साद मचाते मत फिरो
وَاتَّقُوا الَّذِي خَلَقَكُمْ وَالْجِبِلَّةَ الْأَوَّلِينَ184
उसका डर रखो जिसने तुम्हें और पिछली नस्लों को पैदा किया हैं।"
قَالُوا إِنَّمَا أَنْتَ مِنَ الْمُسَحَّرِينَ185
उन्होंने कहा, "तू तो बस जादू का मारा हुआ है
وَمَا أَنْتَ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا وَإِنْ نَظُنُّكَ لَمِنَ الْكَاذِبِينَ186
और तू बस हमारे ही जैसा एक आदमी है और हम तो तुझे झूठा समझते है
فَأَسْقِطْ عَلَيْنَا كِسَفًا مِنَ السَّمَاءِ إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ187
फिर तू हमपर आकाश को कोई टुकड़ा गिरा दे, यदि तू सच्चा है।"
قَالَ رَبِّي أَعْلَمُ بِمَا تَعْمَلُونَ188
उसने कहा, " मेरा रब भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम कर रहे हो।"
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمْ عَذَابُ يَوْمِ الظُّلَّةِ ۚ إِنَّهُ كَانَ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ189
किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। फिर छायावाले दिन की यातना ने आ लिया। निश्चय ही वह एक बड़े दिन की यातना थी
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُؤْمِنِينَ190
निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ191
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है, जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है
وَإِنَّهُ لَتَنْزِيلُ رَبِّ الْعَالَمِينَ192
निश्चय ही यह (क़ुरआन) सारे संसार के रब की अवतरित की हुई चीज़ है
نَزَلَ بِهِ الرُّوحُ الْأَمِينُ193
इसको लेकर तुम्हारे हृदय पर एक विश्वसनीय आत्मा उतरी है,
عَلَىٰ قَلْبِكَ لِتَكُونَ مِنَ الْمُنْذِرِينَ194
ताकि तुम सावधान करनेवाले हो
بِلِسَانٍ عَرَبِيٍّ مُبِينٍ195
स्पष्ट अरबी भाषा में
وَإِنَّهُ لَفِي زُبُرِ الْأَوَّلِينَ196
और निस्संदेह यह पिछले लोगों की किताबों में भी मौजूद है
أَوَلَمْ يَكُنْ لَهُمْ آيَةً أَنْ يَعْلَمَهُ عُلَمَاءُ بَنِي إِسْرَائِيلَ197
क्या यह उनके लिए कोई निशानी नहीं है कि इसे बनी इसराईल के विद्वान जानते है?
وَلَوْ نَزَّلْنَاهُ عَلَىٰ بَعْضِ الْأَعْجَمِينَ198
यदि हम इसे ग़ैर अरबी भाषी पर भी उतारते,
فَقَرَأَهُ عَلَيْهِمْ مَا كَانُوا بِهِ مُؤْمِنِينَ199
और वह इसे उन्हें पढ़कर सुनाता तब भी वे इसे माननेवाले न होते
كَذَٰلِكَ سَلَكْنَاهُ فِي قُلُوبِ الْمُجْرِمِينَ200
इसी प्रकार हमने इसे अपराधियों के दिलों में पैठाया है
لَا يُؤْمِنُونَ بِهِ حَتَّىٰ يَرَوُا الْعَذَابَ الْأَلِيمَ201
वे इसपर ईमान लाने को नहीं, जब तक कि दुखद यातना न देख लें
فَيَأْتِيَهُمْ بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ202
फिर जब वह अचानक उनपर आ जाएगी और उन्हें ख़बर भी न होगी,
فَيَقُولُوا هَلْ نَحْنُ مُنْظَرُونَ203
तब वे कहेंगे, "क्या हमें कुछ मुहलत मिल सकती है?"
أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ204
तो क्या वे लोग हमारी यातना के लिए जल्दी मचा रहे है?
أَفَرَأَيْتَ إِنْ مَتَّعْنَاهُمْ سِنِينَ205
क्या तुमने कुछ विचार किया? यदि हम उन्हें कुछ वर्षों तक सुख भोगने दें;
ثُمَّ جَاءَهُمْ مَا كَانُوا يُوعَدُونَ206
फिर उनपर वह चीज़ आ जाए, जिससे उन्हें डराया जाता रहा है;
مَا أَغْنَىٰ عَنْهُمْ مَا كَانُوا يُمَتَّعُونَ207
तो जो सुख उन्हें मिला होगा वह उनके कुछ काम न आएगा
وَمَا أَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ إِلَّا لَهَا مُنْذِرُونَ208
हमने किसी बस्ती को भी इसके बिना विनष्ट नहीं किया कि उसके लिए सचेत करनेवाले याददिहानी के लिए मौजूद रहे हैं।
ذِكْرَىٰ وَمَا كُنَّا ظَالِمِينَ209
हम कोई ज़ालिम नहीं है
وَمَا تَنَزَّلَتْ بِهِ الشَّيَاطِينُ210
इसे शैतान लेकर नहीं उतरे हैं।
وَمَا يَنْبَغِي لَهُمْ وَمَا يَسْتَطِيعُونَ211
न यह उन्हें फबता ही है और न ये उनके बस का ही है
إِنَّهُمْ عَنِ السَّمْعِ لَمَعْزُولُونَ212
वे तो इसके सुनने से भी दूर रखे गए है
فَلَا تَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَـٰهًا آخَرَ فَتَكُونَ مِنَ الْمُعَذَّبِينَ213
अतः अल्लाह के साथ दूसरे इष्ट-पूज्य को न पुकारना, अन्यथा तुम्हें भी यातना दी जाएगी
وَأَنْذِرْ عَشِيرَتَكَ الْأَقْرَبِينَ214
और अपने निकटतम नातेदारों को सचेत करो
وَاخْفِضْ جَنَاحَكَ لِمَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ215
और जो ईमानवाले तुम्हारे अनुयायी हो गए है, उनके लिए अपनी भुजाएँ बिछाए रखो
فَإِنْ عَصَوْكَ فَقُلْ إِنِّي بَرِيءٌ مِمَّا تَعْمَلُونَ216
किन्तु यदि वे तुम्हारी अवज्ञा करें तो कह दो, "जो कुछ तुम करते हो, उसकी ज़िम्मेदारी से मं1 बरी हूँ।"
وَتَوَكَّلْ عَلَى الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ217
और उस प्रभुत्वशाली और दया करनेवाले पर भरोसा रखो
الَّذِي يَرَاكَ حِينَ تَقُومُ218
जो तुम्हें देख रहा होता है, जब तुम खड़े होते हो
وَتَقَلُّبَكَ فِي السَّاجِدِينَ219
और सजदा करनेवालों में तुम्हारे चलत-फिरत को भी वह देखता है
إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ220
निस्संदेह वह भली-भाँति सुनता-जानता है
هَلْ أُنَبِّئُكُمْ عَلَىٰ مَنْ تَنَزَّلُ الشَّيَاطِينُ221
क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि शैतान किसपर उतरते है?
تَنَزَّلُ عَلَىٰ كُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٍ222
वे प्रत्येक ढोंग रचनेवाले गुनाहगार पर उतरते है
يُلْقُونَ السَّمْعَ وَأَكْثَرُهُمْ كَاذِبُونَ223
वे कान लगाते है और उनमें से अधिकतर झूठे होते है
وَالشُّعَرَاءُ يَتَّبِعُهُمُ الْغَاوُونَ224
रहे कवि, तो उनके पीछे बहके हुए लोग ही चला करते है।-
أَلَمْ تَرَ أَنَّهُمْ فِي كُلِّ وَادٍ يَهِيمُونَ225
क्या तुमने देखा नहीं कि वे हर घाटी में बहके फिरते हैं,
وَأَنَّهُمْ يَقُولُونَ مَا لَا يَفْعَلُونَ226
और कहते वह है जो करते नहीं? -
إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَذَكَرُوا اللَّهَ كَثِيرًا وَانْتَصَرُوا مِنْ بَعْدِ مَا ظُلِمُوا ۗ وَسَيَعْلَمُ الَّذِينَ ظَلَمُوا أَيَّ مُنْقَلَبٍ يَنْقَلِبُونَ227
वे नहीं जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और अल्लाह को अधिक .याद किया। औऱ इसके बाद कि उनपर ज़ुल्म किया गया तो उन्होंने उसका प्रतिकार किया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया, उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा कि वे किस जगह पलटते हैं
अन-नमल
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
طس ۚ تِلْكَ آيَاتُ الْقُرْآنِ وَكِتَابٍ مُبِينٍ1
ता॰ सीन॰। ये आयतें है क़ुरआन और एक स्पष्ट किताब की
هُدًى وَبُشْرَىٰ لِلْمُؤْمِنِينَ2
मार्गदर्शन है और शुभ-सूचना उन ईमानवालों के लिए,
الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ3
जो नमाज़ का आयोजन करते है और ज़कात देते है और वही है जो आख़िरत पर विश्वास रखते है
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمْ أَعْمَالَهُمْ فَهُمْ يَعْمَهُونَ4
रहे वे लोग जो आख़िरत को नहीं मानते, उनके लिए हमने उनकी करतूतों को शोभायमान बना दिया है। अतः वे भटकते फिरते है
أُولَـٰئِكَ الَّذِينَ لَهُمْ سُوءُ الْعَذَابِ وَهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْأَخْسَرُونَ5
वही लोग है, जिनके लिए बुरी यातना है और वही है जो आख़िरत में अत्यन्त घाटे में रहेंगे
وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى الْقُرْآنَ مِنْ لَدُنْ حَكِيمٍ عَلِيمٍ6
निश्चय ही तुम यह क़ुरआन एक बड़े तत्वदर्शी, ज्ञानवान (प्रभु) की ओर से पा रहे हो
إِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِأَهْلِهِ إِنِّي آنَسْتُ نَارًا سَآتِيكُمْ مِنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ آتِيكُمْ بِشِهَابٍ قَبَسٍ لَعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ7
याद करो जब मूसा ने अपने घरवालों से कहा कि "मैंने एक आग-सी देखी है। मैं अभी वहाँ से तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आता हूँ या तुम्हारे पास कोई दहकता अंगार लाता हूँ, ताकि तुम तापो।"
فَلَمَّا جَاءَهَا نُودِيَ أَنْ بُورِكَ مَنْ فِي النَّارِ وَمَنْ حَوْلَهَا وَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ8
फिर जब वह उसके पास पहुँचा तो उसे आवाज़ आई कि "मुबारक है वह जो इस आग में है और जो इसके आस-पास है। महान और उच्च है अल्लाह, सारे संसार का रब!
يَا مُوسَىٰ إِنَّهُ أَنَا اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ9
ऐ मूसा! वह तो मैं अल्लाह हूँ, अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी!
وَأَلْقِ عَصَاكَ ۚ فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّىٰ مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ يَا مُوسَىٰ لَا تَخَفْ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ الْمُرْسَلُونَ10
तू अपनी लाठी डाल दे।" जब मूसा ने देखा कि वह बल खा रहा है जैसे वह कोई साँप हो, तो वह पीठ फेरकर भागा और पीछे मुड़कर न देखा। "ऐ मूसा! डर मत। निस्संदेह रसूल मेरे पास डरा नहीं करते,
إِلَّا مَنْ ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًا بَعْدَ سُوءٍ فَإِنِّي غَفُورٌ رَحِيمٌ11
सिवाय उसके जिसने कोई ज़्यादती की हो। फिर बुराई के पश्चात उसे भलाई से बदल दिया, तो मैं भी बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान हूँ
وَأَدْخِلْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ ۖ فِي تِسْعِ آيَاتٍ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهِ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ12
अपना हाथ गिरेबान में डाल। वह बिना किसी ख़राबी के उज्जवल चमकता निकलेगा। ये नौ निशानियों में से है फ़िरऔन और उसकी क़ौम की ओर भेजने के लिए। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग है।"
فَلَمَّا جَاءَتْهُمْ آيَاتُنَا مُبْصِرَةً قَالُوا هَـٰذَا سِحْرٌ مُبِينٌ13
किन्तु जब आँखें खोल देनेवाली हमारी निशानियाँ उनके पास आई तो उन्होंने कहा, "यह तो खुला हुआ जादू है।"
وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنْفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا ۚ فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ14
उन्होंने ज़ुल्म और सरकशी से उनका इनकार कर दिया, हालाँकि उनके जी को उनका विश्वास हो चुका था। अब देख लो इन बिगाड़ पैदा करनेवालों का क्या परिणाम हुआ?
وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ عِلْمًا ۖ وَقَالَا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي فَضَّلَنَا عَلَىٰ كَثِيرٍ مِنْ عِبَادِهِ الْمُؤْمِنِينَ15
हमने दाऊद और सुलैमान को बड़ा ज्ञान प्रदान किया था, (उन्होंने उसके महत्व को जाना) और उन दोनों ने कहा, "सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अपने बहुत-से ईमानवाले बन्दों के मुक़ाबले में श्रेष्ठता प्रदान की।"
وَوَرِثَ سُلَيْمَانُ دَاوُودَ ۖ وَقَالَ يَا أَيُّهَا النَّاسُ عُلِّمْنَا مَنْطِقَ الطَّيْرِ وَأُوتِينَا مِنْ كُلِّ شَيْءٍ ۖ إِنَّ هَـٰذَا لَهُوَ الْفَضْلُ الْمُبِينُ16
दाऊद का उत्तराधिकारी सुलैमान हुआ औऱ उसने कहा, "ऐ लोगों! हमें पक्षियों की बोली सिखाई गई है और हमें हर चीज़ दी गई है। निस्संदेह वह स्पष्ट बड़ाई है।"
وَحُشِرَ لِسُلَيْمَانَ جُنُودُهُ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ وَالطَّيْرِ فَهُمْ يُوزَعُونَ17
सुलैमान के लिए जिन्न और मनुष्य और पक्षियों मे से उसकी सेनाएँ एकत्र कर गई फिर उनकी दर्जाबन्दी की जा रही थी
حَتَّىٰ إِذَا أَتَوْا عَلَىٰ وَادِ النَّمْلِ قَالَتْ نَمْلَةٌ يَا أَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوا مَسَاكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَانُ وَجُنُودُهُ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ18
यहाँ तक कि जब वे चींटियों की घाटी में पहुँचे तो एक चींटी ने कहा, "ऐ चींटियों! अपने घरों में प्रवेश कर जाओ। कहीं सुलैमान और उसकी सेनाएँ तुम्हें कुचल न डालें और उन्हें एहसास भी न हो।"
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًا مِنْ قَوْلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَدْخِلْنِي بِرَحْمَتِكَ فِي عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ19
तो वह उसकी बात पर प्रसन्न होकर मुस्कराया और कहा, "मेरे रब! मुझे संभाले रख कि मैं तेरी उस कृपा पर कृतज्ञता दिखाता रहूँ जो तूने मुझपर और मेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि अच्छा कर्म करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी दयालुता से मुझे अपने अच्छे बन्दों में दाखिल कर।"
وَتَفَقَّدَ الطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِيَ لَا أَرَى الْهُدْهُدَ أَمْ كَانَ مِنَ الْغَائِبِينَ20
उसने पक्षियों की जाँच-पड़ताल की तो कहा, "क्या बात है कि मैं हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ, (वह यहीं कहीं है) या ग़ायब हो गया है?
لَأُعَذِّبَنَّهُ عَذَابًا شَدِيدًا أَوْ لَأَذْبَحَنَّهُ أَوْ لَيَأْتِيَنِّي بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ21
मैं उसे कठोर दंड दूँगा या उसे ज़बह ही कर डालूँगा या फिर वह मेरे सामने कोई स्पष्ट॥ कारण प्रस्तुत करे।"
فَمَكَثَ غَيْرَ بَعِيدٍ فَقَالَ أَحَطْتُ بِمَا لَمْ تُحِطْ بِهِ وَجِئْتُكَ مِنْ سَبَإٍ بِنَبَإٍ يَقِينٍ22
फिर कुछ अधिक देर नहीं ठहरा कि उसने आकर कहा, "मैंने वह जानकारी प्राप्त की है जो आपको मालूम नहीं है। मैं सबा से आपके पास एक विश्वसनीय सूचना लेकर आया हूँ
إِنِّي وَجَدْتُ امْرَأَةً تَمْلِكُهُمْ وَأُوتِيَتْ مِنْ كُلِّ شَيْءٍ وَلَهَا عَرْشٌ عَظِيمٌ23
मैंने एक स्त्री को उनपर शासन करते पाया है। उसे हर चीज़ प्राप्त है औऱ उसका एक बड़ा सिंहासन है
وَجَدْتُهَا وَقَوْمَهَا يَسْجُدُونَ لِلشَّمْسِ مِنْ دُونِ اللَّهِ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ فَهُمْ لَا يَهْتَدُونَ24
मैंने उसे और उसकी क़ौम के लोगों को अल्लाह से इतर सूर्य को सजदा करते हुए पाया। शैतान ने उनके कर्मों को उनके लिए शोभायमान बना दिया है और उन्हें मार्ग से रोक दिया है - अतः वे सीधा मार्ग नहीं पा रहे है। -
أَلَّا يَسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي يُخْرِجُ الْخَبْءَ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُخْفُونَ وَمَا تُعْلِنُونَ25
खि अल्लाह को सजदा न करें जो आकाशों और धरती की छिपी चीज़ें निकालता है, और जानता है जो कुछ भी तुम छिपाते हो और जो कुछ प्रकट करते हो
اللَّهُ لَا إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ ۩26
अल्लाह कि उसके सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं, वह महान सिंहासन का रब है।"
قَالَ سَنَنْظُرُ أَصَدَقْتَ أَمْ كُنْتَ مِنَ الْكَاذِبِينَ27
उसने कहा, "अभी हम देख लेते है कि तूने सच कहा या तू झूठा है
اذْهَبْ بِكِتَابِي هَـٰذَا فَأَلْقِهْ إِلَيْهِمْ ثُمَّ تَوَلَّ عَنْهُمْ فَانْظُرْ مَاذَا يَرْجِعُونَ28
मेरा यह पत्र लेकर जा, और इसे उन लोगों की ओर डाल दे। फिर उनके पास से अलग हटकर देख कि वे क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते है।"
قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ إِنِّي أُلْقِيَ إِلَيَّ كِتَابٌ كَرِيمٌ29
वह बोली, "ऐ सरदारों! मेरी ओर एक प्रतिष्ठित पत्र डाला गया है
إِنَّهُ مِنْ سُلَيْمَانَ وَإِنَّهُ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ30
वह सुलैमान की ओर से है और वह यह है कि अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है
أَلَّا تَعْلُوا عَلَيَّ وَأْتُونِي مُسْلِمِينَ31
यह कि मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और आज्ञाकारी बनकर मेरे पास आओ।"
قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَفْتُونِي فِي أَمْرِي مَا كُنْتُ قَاطِعَةً أَمْرًا حَتَّىٰ تَشْهَدُونِ32
उसने कहा, "ऐ सरदारों! मेरे मामलें में मुझे परामर्श दो। मैं किसी मामले का फ़ैसला नहीं करती, जब तक कि तुम मेरे पास मौजूद न हो।"
قَالُوا نَحْنُ أُولُو قُوَّةٍ وَأُولُو بَأْسٍ شَدِيدٍ وَالْأَمْرُ إِلَيْكِ فَانْظُرِي مَاذَا تَأْمُرِينَ33
उन्होंने कहा, "हम शक्तिशाली है और हमें बड़ी युद्ध-क्षमता प्राप्त है। आगे मामले का अधिकार आपको है, अतः आप देख लें कि आपको क्या आदेश देना है।"
قَالَتْ إِنَّ الْمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا قَرْيَةً أَفْسَدُوهَا وَجَعَلُوا أَعِزَّةَ أَهْلِهَا أَذِلَّةً ۖ وَكَذَٰلِكَ يَفْعَلُونَ34
उसने कहा, "सम्राट जब किसी बस्ती में प्रवेश करते है, तो उसे ख़राब कर देते है और वहाँ के प्रभावशाली लोगों को अपमानित करके रहते है। और वे ऐसा ही करेंगे
وَإِنِّي مُرْسِلَةٌ إِلَيْهِمْ بِهَدِيَّةٍ فَنَاظِرَةٌ بِمَ يَرْجِعُ الْمُرْسَلُونَ35
मैं उनके पास एक उपहार भेजती हूँ; फिर देखती हूँ कि दूत क्या उत्तर लेकर लौटते है।"
فَلَمَّا جَاءَ سُلَيْمَانَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٍ فَمَا آتَانِيَ اللَّهُ خَيْرٌ مِمَّا آتَاكُمْ بَلْ أَنْتُمْ بِهَدِيَّتِكُمْ تَفْرَحُونَ36
फिर जब वह सुलैमान के पास पहुँचा तो उसने (सुलैमान ने) कहा, "क्या तुम माल से मेरी सहायता करोगे, तो जो कुछ अल्लाह ने मुझे दिया है वह उससे कहीं उत्तम है, जो उसने तुम्हें दिया है? बल्कि तुम्ही लोग हो जो अपने उपहार से प्रसन्न होते हो!
ارْجِعْ إِلَيْهِمْ فَلَنَأْتِيَنَّهُمْ بِجُنُودٍ لَا قِبَلَ لَهُمْ بِهَا وَلَنُخْرِجَنَّهُمْ مِنْهَا أَذِلَّةً وَهُمْ صَاغِرُونَ37
उनके पास वापस जाओ। हम उनपर ऐसी सेनाएँ लेकर आएँगे, जिनका मुक़ाबला वे न कर सकेंगे और हम उन्हें अपमानित करके वहाँ से निकाल देंगे कि वे पस्त होकर रहेंगे।"
قَالَ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَيُّكُمْ يَأْتِينِي بِعَرْشِهَا قَبْلَ أَنْ يَأْتُونِي مُسْلِمِينَ38
उसने (सुलैमान ने) कहा, "ऐ सरदारो! तुममें कौन उसका सिंहासन लेकर मेरे पास आता है, इससे पहले कि वे लोग आज्ञाकारी होकर मेरे पास आएँ?"
قَالَ عِفْرِيتٌ مِنَ الْجِنِّ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَنْ تَقُومَ مِنْ مَقَامِكَ ۖ وَإِنِّي عَلَيْهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٌ39
जिन्नों में से एक बलिष्ठ निर्भीक ने कहा, "मैं उसे आपके पास ले आऊँगा। इससे पहले कि आप अपने स्थान से उठे। मुझे इसकी शक्ति प्राप्त है और मैं अमानतदार भी हूँ।"
قَالَ الَّذِي عِنْدَهُ عِلْمٌ مِنَ الْكِتَابِ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَنْ يَرْتَدَّ إِلَيْكَ طَرْفُكَ ۚ فَلَمَّا رَآهُ مُسْتَقِرًّا عِنْدَهُ قَالَ هَـٰذَا مِنْ فَضْلِ رَبِّي لِيَبْلُوَنِي أَأَشْكُرُ أَمْ أَكْفُرُ ۖ وَمَنْ شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ ۖ وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيٌّ كَرِيمٌ40
जिस व्यक्ति के पास किताब का ज्ञान था, उसने कहा, "मैं आपकी पलक झपकने से पहले उसे आपके पास लाए देता हूँ।" फिर जब उसने उसे अपने पास रखा हुआ देखा तो कहा, "यह मेरे रब का उदार अनुग्रह है, ताकि वह मेरी परीक्षा करे कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्न बनता हूँ। जो कृतज्ञता दिखलाता है तो वह अपने लिए ही कृतज्ञता दिखलाता है और वह जिसने कृतघ्नता दिखाई, तो मेरा रब निश्चय ही निस्पृह, बड़ा उदार है।"
قَالَ نَكِّرُوا لَهَا عَرْشَهَا نَنْظُرْ أَتَهْتَدِي أَمْ تَكُونُ مِنَ الَّذِينَ لَا يَهْتَدُونَ41
उसने कहा, "उसके पास उसके सिंहासन का रूप बदल दो। देंखे वह वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर जाती है, जो वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को नहीं पाते।"
فَلَمَّا جَاءَتْ قِيلَ أَهَـٰكَذَا عَرْشُكِ ۖ قَالَتْ كَأَنَّهُ هُوَ ۚ وَأُوتِينَا الْعِلْمَ مِنْ قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِينَ42
जब वह आई तो कहा गया, "क्या तुम्हारा सिंहासन ऐसा ही है?" उसने कहा, "यह तो जैसे वही है, और हमें तो इससे पहले ही ज्ञान प्राप्त हो चुका था; और हम आज्ञाकारी हो गए थे।"
وَصَدَّهَا مَا كَانَتْ تَعْبُدُ مِنْ دُونِ اللَّهِ ۖ إِنَّهَا كَانَتْ مِنْ قَوْمٍ كَافِرِينَ43
अल्लाह से हटकर वह दूसरे को पूजती थी। इसी चीज़ ने उसे रोक रखा था। निस्संदेह वह एक इनकार करनेवाली क़ौम में से थी
قِيلَ لَهَا ادْخُلِي الصَّرْحَ ۖ فَلَمَّا رَأَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةً وَكَشَفَتْ عَنْ سَاقَيْهَا ۚ قَالَ إِنَّهُ صَرْحٌ مُمَرَّدٌ مِنْ قَوَارِيرَ ۗ قَالَتْ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي وَأَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمَانَ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ44
उससे कहा गया कि "महल में प्रवेश करो।" तो जब उसने उसे देखा तो उसने उसको गहरा पानी समझा और उसने अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दी। उसने कहा, "यह तो शीशे से निर्मित महल है।" बोली, "ऐ मेरे रब! निश्चय ही मैंने अपने आपपर ज़ुल्म किया। अब मैंने सुलैमान के साथ अपने आपको अल्लाह के समर्पित कर दिया, जो सारे संसार का रब है।"
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ45
और समूद की ओर हमने उनके भाई सालेह को भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो।" तो क्या देखते है कि वे दो गिरोह होकर आपस में झगड़ने लगे
قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ ۖ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ46
उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगों, तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी मचा रहे हो? तुम अल्लाह से क्षमा याचना क्यों नहीं करते? कदाचित तुमपर दया की जाए।"
قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَنْ مَعَكَ ۚ قَالَ طَائِرُكُمْ عِنْدَ اللَّهِ ۖ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ47
उन्होंने कहा, "हमने तुम्हें और तुम्हारे साथवालों को अपशकुन पाया है।" उसने कहा, "तुम्हारा शकुन-अपशकुन तो अल्लाह के पास है, बल्कि बात यह है कि तुम लोग आज़माए जा रहे हो।"
وَكَانَ فِي الْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ48
नगर में नौ जत्थेदार थे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते थे, सुधार का काम नहीं करते थे
قَالُوا تَقَاسَمُوا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَأَهْلَهُ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ49
वे आपस में अल्लाह की क़समें खाकर बोले, "हम अवश्य उसपर और उसके घरवालों पर रात को छापा मारेंगे। फिर उसके वली (परिजन) से कह देंगे कि हम उसके घरवालों के विनाश के अवसर पर मौजूद न थे। और हम बिलकुल सच्चे है।"
وَمَكَرُوا مَكْرًا وَمَكَرْنَا مَكْرًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ50
वे एक चाल चले और हमने भी एक चाल चली और उन्हें ख़बर तक न हुई
فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ مَكْرِهِمْ أَنَّا دَمَّرْنَاهُمْ وَقَوْمَهُمْ أَجْمَعِينَ51
अब देख लो, उनकी चाल का कैसा परिणाम हुआ! हमने उन्हें और उनकी क़ौम - सबको विनष्ट करके रख दिया
فَتِلْكَ بُيُوتُهُمْ خَاوِيَةً بِمَا ظَلَمُوا ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ52
अब ये उनके घर उनके ज़ुल्म के कारण उजडें पड़े हुए है। निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है उन लोगों के लिए जो जानना चाहें
وَأَنْجَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ53
और हमने उन लोगों को बचा लिया, जो ईमान लाए और डर रखते थे
وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ وَأَنْتُمْ تُبْصِرُونَ54
और लूत को भी भेजा, जब उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "क्या तुम आँखों देखते हुए अश्लील कर्म करते हो?
أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِنْ دُونِ النِّسَاءِ ۚ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُونَ55
क्या तुम स्त्रियों को छोड़कर अपनी काम-तृप्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि बात यह है कि तुम बड़े ही जाहिल लोग हो।"